यह सब कैसे हुआ? अच्छा प्रश्न।
दुनिया ने विज्ञान के हर क्षेत्र में जो प्रगति देखी है, उसमें तंत्रिका विज्ञान भी शामिल है, धारणा और सोच की यांत्रिकी को अभी भी पूरी तरह से समझना बाकी है। यहां तक कि बुनियादी मानव इंद्रियों की सूची अभी भी बहस का विषय है। पांच पारंपरिक इंद्रियों से परे, कई लोग तर्क देते हैं कि संतुलन – अंतरिक्ष में रहने के दौरान खुद को अनुकूल बनाने वाला शरीर का तंत्र – बहुत पहले शामिल किया जाना चाहिए था।
मैकमास्टर विश्वविद्यालय में मेरे सहयोगियों और मैंने हाल ही में हमारी अनुभूति अथवा संवेदना में एक शिकन का पता लगाया है, जिससे हम इस बारे में अधिक जान सकते हैं कि संतुलन की भावना कैसे काम करती है और यह हमारी अनुभूति में कितना योगदान देती है।
शिकन यह है: जब हम करवट लेकर एक तरफ को लेटते हैं तो मस्तिष्क बाहरी दुनिया से संबंधित जानकारी पर अपनी निर्भरता को कम कर देता है और इसके बजाय स्पर्श से उत्पन्न आंतरिक धारणाओं पर निर्भरता बढ़ाता है। उदाहरण के लिए, जब हम अपनी बाहों को क्रास करते हैं, तो हमें यह पता लगाने में अधिक कठिनाई होती है कि क्या वाइब्रेटर पहले हमारे दाएं हाथ में गया या बाएं हाथ में। कुछ आश्चर्यजनक रूप से, जब हम अपनी आंखें बंद करते हैं, तो प्रदर्शन में सुधार होता है। आंखों पर पट्टी बांधने से बाहरी दुनिया से हमारा संपर्क कम हो जाता है जो हमारी आंतरिक शरीर-केंद्रित अनुभूति को हावी होने देता है।
जब लोग करवट लेकर लेटते हैं, तो हाथों को क्रास करने से उनके प्रदर्शन में भी सुधार होता है। अपने आप में, यह जानकारी दैनिक जीवन को प्रभावित करने की संभावना नहीं रखती है। लेकिन तथ्य यह है कि इस अंतर समझने से हम अपनी इस जिज्ञासा को सार्थक तरीके से शांत कर पाएंगे कि हम खुद को उन स्थानों के अनुकूल कैसे बनाते हैं जहां हम रहते हैं। उदाहरण के लिए यह नींद सहित अन्य क्षेत्रों में खोज के रास्ते खोल सकता है।
हमारा प्रयोग बहुत सरल था, हमने देखा और आंखों पर पट्टी बांधकर अनुसंधान प्रतिभागियों की यह पहचानने की क्षमता का परीक्षण किया कि हाथों को क्रास करने पर और बिना क्रास किए हम किस हाथ को पहले उत्तेजित कर रहे थे। हम करीब 20 साल से इसी तरह के प्रयोग अपनी लैब में कर रहे हैं।
इस मामले में, परिणाम अन्य प्रयोगों में हमने जो देखा था, उसके अनुरूप थे। प्रतिभागियों ने प्रदर्शन किया जब उनके हाथ क्रास थे। यहां एक बड़ा अंतर तब नजर आया जब प्रतिभागी एक तरफ को करवट लेकर लेटे थे; जब उनके हाथों को क्रास किया गया तो हमने स्पर्श को महसूस करने की क्षमता में भारी सुधार देखा।
आंखों पर पट्टी बांधने की तरह, साइड में लेटने से दुनिया के बाहरी प्रतिनिधित्व का प्रभाव कम हो गया और प्रतिभागियों ने अपने भीतरी संकेतों पर अधिक ध्यान दिया। सीधे खड़े होकर और लेटकर कार्य करने के बीच का यह अंतर, जिसका हम वैज्ञानिक रिपोर्ट में वर्णन करते हैं, हमें आश्चर्यचकित करता है कि जब हम लेटते हैं तो क्या मस्तिष्क जानबूझकर सबसे सक्रिय अभिविन्यास कार्यों – बाहरी प्रतिनिधित्व- को धीमा कर देता है ताकि हम आराम से सो जाएं।