फिल्म बनाने से भी ज्यादा कठिन उसे सिनेमाघर तक पहुंचाना है
मनोज कहते हैं की छत्तीसगढ़ी फिल्म को बनाने से ज्यादा कठिन उसे सिनेमा घर तक पहुंच जाना है। उनकी चलती फिल्मों को राजनांदगांव और दुर्ग के सिनेमाघरों से उतार दिया गया था। शायद इसके पीछे का कारण यह है कि बॉलीवुड फिल्म्स के सामने छत्तीसगढ़ी भाषा में बनी फिल्मों को नगण्य समझा जा रहा है। इस बात को लेकर पहले भी कई फिल्म मेकर्स आंदोलन पर उतर चुके हैं। इसके अलावा मनोज यह भी चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों को उपलब्ध कराई जा रही सब्सिडी बढ़ाई जाए जो कि अन्य फिल्मों को मिलने वाली सब्सिडी से काफ़ी कम है।
छॉलीवुड में गुटबाजी और कास्टिंग काउच की प्रथा एक मिथक है
मनोज कहते हैं कि छॉलीवुड में गुट और कास्टिंग काउच जैसी प्रथा के उपस्थित होने की बात से वे असहमत हैं। मनोज का मानना है की छॉलीवुड इतनी बड़ी इंडस्ट्री नहीं है कि उनमें गुटबाजी हो, वाद विवाद तो हर बिजनेस में होते हैं पर गुट की प्रथा अब तक छॉलीवुड में नहीं आई है। इसके अलावा मनोज कहते हैं कि कास्टिंग काउच की प्रथा भी अब तक उन्होंने छत्तीसगढ़ में सुनी या देखी