हार्ट फेल्योर हालत में पहुंचा था अस्पताल हार्ट चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू ने बताया कि बच्चा सीटीवीएस ओपीडी में आया तो हार्ट फेल्योर की स्थिति में था। ठीक से सांस नहीं ले पा रहा था एवं शरीर सूजा हुआ था। जांच के बाद पता चला कि बच्चे के दो वाल्व खराब हो गए हैं, जिसके कारण उसका हृदय ठीक तरह से ब्लड बॉडी में पंप नहीं कर पा रहा था। हार्ट का साइज तीन गुना बड़ा हो गया था, जिसको मेडिकल भाषा में कार्डियोमेगाली विद हार्ट फेल्योर कहा जाता है। कुछ दिन दवाईयों में रखकर एंटीफेल्योर ट्रीटमेंट दिया गया।
बच्चों के सर्दी खांसी को नज़र अंदाज़ ना करें बच्चे को रूम्हैटिक हार्ट डिजीज नामक बीमारी थी। यह बीमारी बचपन में सर्दी खांसी को नज़र अंदाज करने से होती है। स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया गले में संक्रमण करता है, जिससे सर्दी एवं खांसी हो जाती है। समय से इलाज न लेने पर शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा इस बैक्टीरिया के विरूद्ध एंटीबॉडी बनना शुरू होता है।
5 से 10 साल की उम्र में होता है संक्रमण के कारण हार्ट की बीमारी का पता 22 से 40 साल की उम्र में चलता है। यह बहुत ही धीमी बीमारी है। यह बीमारी हाइजीन (साफ-सफाई) पर ज्यादा ध्यान नहीं देने के कारण होती है। यह बीमारी उत्तर एवं मध्य भारत में सबसे ज्यादा है। डॉ. कृष्णकांत साहू बताते हैं कि जब वे केरल के हार्ट सेंटर में थे तो 100 में से 1 या 2 केस ही ऐसे मिलते थे। यह केस इसलिए महत्वपूर्ण है कि इस उम्र में सामान्यतः यह बीमारी नहीं होती।
ऐसे किया ऑपरेशन ऑपरेशन के पहले बच्चे को 17 से 18 दिनों तक एंटी फेल्योर ट्रीटमेंट में रखा गया। ओपन हार्ट सर्जरी करके इसके ख़राब माइट्रल वाल्व को काट करके निकाला गया। उसके स्थान पर टाइटेनियम से बना कृत्रिम वाल्व लगाया गया एवं ट्राइकस्पिड वाल्व को थ्री डी कंटूरिंग लगा कर रिपेयर किया गया।