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तीन बच्चों के संदर्भ को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना उचित होगा

कन्हैया लाल बेरवाल, कुलाधिपति, डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर और पूर्व आईपीएस

जयपुरDec 19, 2024 / 04:35 pm

Hemant Pandey

चीन में 1980 से परिवार में एक बच्चे की नीति थी, जिसे 2013 में बदलने पर चीन को विवस होना पड़ा। एक अनुमान में चीन के 2013 के आँकड़ों अनुसार चीन की 9.1 प्रतिशत जनसंख्या की उम्र 65 या उससे अधिक थी। भावी अनुमान के अनुसार यह 2027 तक 15 प्रतिशत व 2035 तक 20 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान था। अतः अन्य पारिवारिक समस्याओं के कारण चीन को एक बच्चे की नीति में छूट देनी पड़ी।

चीन में 1980 से परिवार में एक बच्चे की नीति थी, जिसे 2013 में बदलने पर चीन को विवस होना पड़ा। एक अनुमान में चीन के 2013 के आँकड़ों अनुसार चीन की 9.1 प्रतिशत जनसंख्या की उम्र 65 या उससे अधिक थी। भावी अनुमान के अनुसार यह 2027 तक 15 प्रतिशत व 2035 तक 20 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान था। अतः अन्य पारिवारिक समस्याओं के कारण चीन को एक बच्चे की नीति में छूट देनी पड़ी।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत ने हाल ही एक बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि प्रत्येक परिवार में कम से कम 3 बच्चे होने चाहिए। इसके बाद से देशभर में इस पर व्यापक चर्चा छिड़ गई है। लेकिन मेरा मानना है कि इस बात को सकारात्मक रूप से देखना चाहिए। उनके इस बयान का उद्देश्य न केवल जनसंख्या की वृद्धि दर को नियंत्रित करना है, बल्कि समाज में संतुलन बनाए रखना भी है। श्री भागवत का यह कहना है कि अगर हम इस दिशा में कदम नहीं उठाते, तो आने वाले समय में समाज असंतुलित हो सकता है, जिसका नकारात्मक प्रभाव हमारी सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा।

1 दिसंबर को नागपुर में आयोजित ‘कठाले कुल सम्मेलन’ में मोहन भागवत ने भारतीय परिवारों और जनसंख्या नीति पर विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि अगर देश की जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से नीचे गिरती है, तो समाज अपने आप नष्ट हो जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि यदि हम 2.1 की प्रजनन दर बनाए रखते हैं तो भविष्य में हम अपनी आबादी को पूरी तरह से रिप्लेस कर सकते हैं। उनका कहना था, “यह कम से कम तीन होना चाहिए, क्योंकि कोई भी इंसान 0.1 नहीं पैदा होता। फर्टिलिटी रेट (प्रजनन दर) यह बताता है कि एक महिला अपने जीवनकाल में औसतन कितने बच्चों को जन्म देती है। उदाहरण के लिए, अगर भारत की एक महिला औसतन 3 बच्चों को जन्म देती है, तो भारत का फर्टिलिटी रेट 3 होगा। यदि प्रजनन दर 2.1 के नीचे गिरती है, तो आने वाले समय में जनसंख्या घटने लगती है, जैसा कि कुछ समुदायों में देखा जा चुका है। भारत की वर्तमान प्रजनन दर लगभग 2 है, जो पिछले कुछ सालों में घटकर 1.975 तक आ चुकी है। यह दर कम होने से भारत में वृद्धों की संख्या बढ़ेगी, जिसके परिणामस्वरूप श्रमिकों की कमी हो सकती है। हालांकि, जब तक प्रजनन दर 2.1 के आसपास रहती है, तब तक यह संतुलन बना रहता है और समाज में जनसंख्या वृद्धि जारी रहती है।

भारत का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यहां 25 साल से कम उम्र के लोगों की संख्या बहुत अधिक है। लगभग 47% भारतीय 25 साल से कम उम्र के हैं, जिससे भारत दुनिया का सबसे बड़ा युवा बाजार बन जाता है। इससे न केवल देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सकती है, बल्कि भारत वैश्विक स्तर पर एक बड़ी शक्ति भी बन सकता है। इसके अलावा, बढ़ती जनसंख्या से लेबर फोर्स भी बढ़ेगी, जो उत्पादन और विकास में सहायक हो सकती है।
श्री भागवत का यह बयान जनसंख्या नीति के महत्व को रेखांकित करता है और समाज में संतुलन बनाए रखने के लिए इसे जरूरी माना जा रहा है। हालांकि, जनसंख्या वृद्धि के साथ कई चुनौतियाँ भी उत्पन्न होती हैं, लेकिन सही प्रबंधन और योजनाओं के माध्यम से हम इन चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। भारत को अपनी युवा आबादी का सही तरीके से उपयोग करना होगा, ताकि वह भविष्य में डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ उठा सके और वैश्विक स्तर पर अपनी शक्ति बढ़ा सके। यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम इस संदर्भ में सोच-समझ कर कदम उठाएं और जनसंख्या नीति को सही दिशा में लागू करें ताकि हम आने वाले समय में अपनी सामाजिक, आर्थिक और वैश्विक स्थिति को बेहतर बना सकें।
चीन में 1980 से परिवार में एक बच्चे की नीति थी, जिसे 2013 में बदलने पर चीन को विवस होना पड़ा। एक अनुमान में चीन के 2013 के आँकड़ों अनुसार चीन की 9.1 प्रतिशत जनसंख्या की उम्र 65 या उससे अधिक थी। भावी अनुमान के अनुसार यह 2027 तक 15 प्रतिशत व 2035 तक 20 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान था। अतः अन्य पारिवारिक समस्याओं के कारण चीन को एक बच्चे की नीति में छूट देनी पड़ी। अभी चीन जन्मदर बढ़ाने के लिए चिंतित है , बच्चों के जन्म पर सब्सिडी, प्रसव सहायता व परिजनों को टैक्स में छूट, चाइल्ड केयर सिस्टम का विस्तार आदि कई सुविधाओं की रूपरेखा तैयार की है व जनसंख्या वृद्धि पर गम्भीरता से विचार कर रहा है।
दुनिया के कई अन्य देश भी घटती आबादी के कारण परेशान हैं । कई पश्चिमी देशों और ख़ास कर यूरोपीय देशों में घटती आबादी सरकारों के लिए चिंता का विषय बन चुकी हैं। इन देशों में सरकार भी आबादी बढ़ाने का भरसक प्रयास कर रही है। लेकिन फिर भी वहाँ की आबादी घटती ही जा रही है ।संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार क़रीब दो दर्जन देशों की जनसंख्या तेज़ी से घटती हुई नज़र आ रही है। चीन के साथ ही जापान, इटली, लिथुवानिया, ग्रीस आदि कई देश घटती जनसंख्या से परेशान हैं ।
भारत 2023 में 1.4 अरब जनसंख्या के साथ दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है। भारत में 50% से अधिक जनसंख्या तीस वर्ष से कम उम्र के हैं और औसतन आयु 28.4 वर्ष है। भारत की जनसंख्या में युवाओं का बड़ा हिस्सा 35 वर्ष से कम आयु के, लगभग दो तिहाई हैं। ये युवा शक्ति जनसांख्यिकी लाभ के अवसर प्रदान कर सकती है यदि इन्हें अच्छी शिक्षा, कौशल विकास व रोज़गार के पर्याप्त अवसर प्रदान किये जाए। भारत में तेज़ी से बढ़ रही श्रम शक्ति को पर्याप्त रोज़गार के अवसर प्रदान करने की भी नितांत आवश्यकता है। उद्योग, उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करके रोज़गार के अवसर पढ़ाए जा सकते हैं।
यदि भारत अपनी युवा शक्ति का सही तरीक़े से उपयोग करता है तो यह आर्थिक विकास का इंजन बन सकती है। भारत की बढ़ती जनसंख्या विशेषकर कार्यशील आयु वर्ग आर्थिक विकास को बढ़ा सकती है। युवा श्रम शक्ति उत्पादकता और नवाचार को बढ़ावा दे सकती है। बड़ी जनसंख्या एक विशाल घरेलू उपभोक्ता बाज़ार बन सकती है। भारत जापान व यूरोपीय देशों की श्रम शक्ति की कमी को पूरा करने में समर्थ है। शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण में निवेश कर भारत को आईटी और सेवाओं में एक वैश्विक प्रतिभा केन्द्र में बदला जा सकता हैं । युवा जनसंख्या रचनात्मक और उद्यमिता को बढ़ावा देती है। डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी योजनाएं सक्षम जनसंख्या से ही सफल हो सकती है। महिलाओं की शिक्षा और श्रमशक्ति व उनकी पूर्ण भागीदारी भी उत्पादकता और जीडीपी वृद्धि में सहायक हो सकती है। भारतीय श्रम बाज़ार में लैंगिक असमानता ख़त्म कर जनसांख्यिकीय लाभांश बढ़ाया जा सकता है ।
दक्षिण भारत जैसे केरल और तमिलनाडु में बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है जिससे बुज़ुर्ग देखभाल की समस्याएं सामने आ रही है। उत्तर भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश व बिहार में उच्च जन्मदर जिसमें जनसंख्या के कारण संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है। कुछ जाति पंथ अंधविश्वास के कारण भी जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि व असमान वितरण में बढ़ावा दे रहे हैं, जिसे नियंत्रण की आवश्यकता है। भारत की बढ़ती जनसंख्या तभी लाभांश बन सकती है जब उसे उचित नीति और योजना के माध्यम से नियोजित किया जाए। लाभांश बनने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और महिलाओं के सशक्तिकरण में निवेश की आवश्यकता है। भारत की जनसंख्या ही भविष्य का विकसित भारत का स्वप्न साकार करेगी।

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