Mahakumbh 2025 Ground Report: जिंदगी से हुए हताश, छोड़ी नौकरी, महाकुम्भ में मिली करियर को नई उड़ान
Mahakumbh Ground Report: धनंजय बिंद अपने जीवन के सबसे कठिन समय से गुजर रहे थे, जब उन्होंने 15,000 रुपए महीने की पेंटिंग की नौकरी को छोड़ने का निर्णय लिया। फिर महाकुम्भ में कुछ ऐसा हुआ कि उनके करियर को मिली नई उड़ान। आइए पूरी कहानी में उतरते हैं…
Prayagraj Mahakumbh 2025: नाम: धनंजय बिंद, पता: ग्राम- बौरी, जिला: गाजीपुर, उत्तर प्रदेश। धनंजय 2 महीने पहले तक अपनी जिंदगी में संघर्षों से जूझ रहे थे। वह पेंटर के तौर पर जालंधर में काम कर रहे थे। उन्हें महाकुंभ मेले में नई उम्मीद की किरण दिखी। जिसने उनकी जिंदगी को बदल दिया। इस कड़ी मेहनत और संघर्ष से भरी कहानी ने न केवल उनकी बल्कि उनके छोटे भाई मुरंजय बिंद की जिंदगी को भी पूरी तरह से बदल दिया।
महाकुंभ ने जिंदगी को दी नई दिशा, सपने को जीने का मिला मौका
धनंजय बिंद अपने जीवन के सबसे कठिन समय से गुजर रहे थे, जब उन्होंने 15,000 रुपए महीने की पेंटिंग की नौकरी को छोड़ने का निर्णय लिया। यह कदम उनके लिए एक बड़ा जोखिम था, क्योंकि नौकरी छोड़ने के बाद भविष्य क्या होगा, यह कोई नहीं जानता था। लेकिन फिर उन्हें महाकुंभ में कुछ नया करने का विचार आया। महाकुंभ, जो कई लोगों के लिए एक धार्मिक आयोजन या सिर्फ मेला होता है। वहीं, धनंजय और उनके भाई के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
धनंजय कहते हैं, “मैंने इस संघर्ष को अपनी उम्मीद और फ्यूचर बनाने के रूप में देखा। यह मेरे लिए एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन यह तय किया कि इस बदलाव का सामना मुझे करना ही होगा।”
महाकुंभ में छोटे व्यवसाय की शुरुआत
धनंजय बिंद ने अपने छोटे भाई मुरंजय बिंद को भी महाकुंभ में बुलाया। मुरंजय नेपाल में ईंट पथाई का काम करते थे। लेकिन भाई के साथ आकर उन्होंने यहां अपना बिजनेस शुरू किया। दोनों भाई एक ही बिजनेस में लगे, परंतु वे दोनों मेले में अलग-अलग जगहों पर अपनी दुकानें लगाते हैं। धनंजय दारागंज घाट पर अपनी रेड़ी लगाते हैं। उन्होंने 3,000 रुपए की छोटी सी लागत से ‘झाल-मुरी’ की रेड़ी खोल ली। इस काम से शुरुआत में बहुत अधिक पैसे नहीं मिल रहे थे, लेकिन फिर भी यह उनका अपना काम था और अब उनकी रोज की आमदनी 700 से 1000 रुपए के बीच हो जाती है।
मां-पिता का मैं ही सहारा, कुछ हो गया तो…
धनंजय बिंद के जीवन में एक और चुनौती थी- उनका परिवार। भाई विदेश में मजदूरी करता था। उनके माता-पिता वृद्ध हैं और उनकी देख-रेख की जिम्मेदारी केवल धनंजय पर ही थी। वे जालंधर से 1300 किलोमीटर दूर रहते थे, जहां अपने माता-पिता की तबियत खराब होने पर उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ता था। कभी-कभी वे अपने पड़ोसियों से मदद लेते थे, लेकिन इसके बावजूद मन में हमेशा चिंता रहती थी कि घर में कुछ अनहोनी हुई तो उसका ख्याल कौन रखेगा।
धनंजय की कहानी अकेली नहीं है। महाकुंभ में कई और लोग भी हैं जिन्होंने अपना वछोटा बिजनेस स्टार्ट किया है। इस महाकुंभ ने कइयों के लिए रोजगार के नए रास्ते खोले हैं। हजारों लोग यहां ऐसे हैं जिनके लिए नए अवसर पैदा हुए हैं। धनंजय बिंद आगे कहते हैं, “मैं और मेरे भाई ही नहीं, बल्कि यहां कई लोग हैं जिन्होंने नौकरी या मजदूरी छोड़कर अपना काम शुरू किया है। महाकुंभ ने हमें न केवल रोजगार दिया, बल्कि हमारी जिंदगी की दिशा भी बदलने में मदद कर रहा है।”
महाकुम्भ में करियर को किया रीस्टार्ट
धनंजय बिंद की यह जर्नी उन लोगों के लिए मोटिवेशन है जो जीवन में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। आज वह अपनी छोटी सी झाल – मुरी की दुकान से अपनी जिंदगी चला रहे हैं और अपने परिवार के लिए एक बेहतर फ्यूचर तैयार कर रहे हैं। महाकुंभ ने धनंजय के करियर को रीस्टार्ट करने में मदद की। यह मेला उनके परिवार को ही नहीं बल्कि उनके जैसे दूसरी फैमिली के भी जीवन को रोशन करने में मदद कर रहा है। धनंजय और मुरंजय की यह स्टोरी इस बात को पुख्ता करती हैं। इरादा मजबूत हो और मेहनत सही दिशा में हो, तो कोई भी कठिनाई हमें हमारी मंजिल तक पहुंचने से रोक नहीं सकती।
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