इस प्रेम कहानी ने भारत, रूस और अमेरिका के राजनीतिक व कूटनीतिक संबंधों में तनाव पैदा कर दिया था। ब्रजेश सिंह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विदेश मंत्री दिनेश सिंह के चाचा थे, जबकि स्वेतलाना 20वीं शताब्दी के तानशाह जोसेफ स्टालिन की बेटी थी। ब्रजेश सिंह और स्वेतलाना की प्रेम कहानी 1963 में शुरू हुई थी । मॉस्को के केंटोसेवो हॉस्पिटल में मुलाकात के बाद शुरू हुई इस प्रेम कहानी में कई मोड़ आये। सोवियत सरकार ने दोनों की शादी की इजाजत नहीं दी । स्वेतलाना की कभी ब्रजेश सिंह से शादी नहीं हुई लेकिन उन्होंने ताउम्र ब्रजेश सिंह को अपना पति माना । बाद में 1966 में ब्रजेश सिंह की मौत हो गई ।
ब्रजेश सिंह की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए स्वेतलाना प्रतापगढ़ के कालकांकर आईं और गंगा तट पर उनकी अस्थियां विसर्जन की। कहा जाता है कि ब्रजेश कुमार की अस्थियों का जब विसर्जन हुआ तो हजारों लोगों की भीड़ स्टालिन की बेटी को देखने के लिए जमा हुई। स्वेतलाना कार चला रही थी और गांववाले की कार के पीछे धक्का-मुक्की कर रहे थे। स्वेतलाना ने अपनी किताब में इसका जिक्र किया है। अस्थियां विसर्जन करने के बाद भारत में बसने की इच्छा जताई, मगर इंदिरा गांधी की तत्कालीन सरकार ने इसकी इजाजत नहीं दी। स्वेतलाना ने उस समय राम मनोहर लोहिया से भी मुलाकात की जिसके बाद लोहिया ने स्वेतलाना के पक्ष में संसद में भाषण दिया, हालांकि लोहिया को अपने प्रयासों में सफलता नहीं मिली और स्वेतलाना को भारत छोड़कर अमेरिका जाना पड़ा। जिस समय स्वेतलाना इंदिरा सरकार से भारत में बसने के लिए शरण मांग रही थी, उस समय सोवियत संघ में स्टालिन की आलोचक ख्रुश्चेव की सरकार थी और वह स्टालिन परिवार का नामोनिशान मिटाने पर तुला था। सोवियत संघ और भारत के रिश्ते उस समय काफी अच्छे थे और भारत को सोवियत संघ की नाराजगी का डर था ।
हालांकि बाद में अमेरिका से ही स्वेतलाना ने ब्रजेश सिंह की दूसरी इच्छा अस्पताल बनाने को पूरा किया और वह अस्पताल उस समय के बेहतर अस्पतालों में एक था । बाद में यह अस्पताल बंद हो गया और आज यहां एक निजी स्कूल चल रहा है और इस स्कूल के दीवारों पर स्वेतलाना और ब्रजेश सिंह की तस्वीरें लगी है । 22 नवंबर, 2011 को स्वेतलाना की मौत हो गई थी ।