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प्रतापगढ़

प्रतापगढ़ के जंगल में मिले पांडवों के हजारों साल पुराने शैलचित्र

Pratapgarh News: हाल ही मे प्रतापगढ़ में पांडवों के गुफा चित्र मिले हैं।

प्रतापगढ़Oct 24, 2024 / 08:03 am

Supriya Rani

राकेश वर्मा. कांठल के वन कई वर्षों से विभिन्न जीव श्रृंखला के विकास व पर्यावास के लिए अनुकूल रहे हैं। जिसके प्रमाण यहां की जैव विविधता और आदि मानव बसावट के साक्ष्य दे रहे हैं। यहां के जंगलों में हजारों वर्ष पुराने शैलचित्र मिले हैं। हाल ही मे यहां पांडवों के गुफा चित्र मिले हैं।
यह शैलचित्र स्वयं पांडवों ने उत्कीर्ण किए या महाभारत कथाओं से प्रेरित होकर गुफा मानवों द्वारा प्रारंभिक ऐतिहासिक काल में बनाए गए होंगे, यह कह पाना कठिन है लेकिन यहां पुरातत्व विभाग से सर्वे और वैज्ञानिक अध्ययन की आस है। जिससे इनकी वास्तविकता का पता चल सके।

इस तरह ढूंढे गए हैं ये शैलचित्र

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जिले के पर्यावरणविद् मंगल मेहता ने जंगल में कुछ शैलचित्र ढूंढे हैं। इनमें एक में आगे एक महिला व उसके पीछे पांच पुरुष चल रहे हैं। संभावना जताई जा रही है कि यह चित्र पांडवों के अज्ञातवास को दर्शा रहा है क्योंकि इसमें एक चित्र स्त्री का है, अगुआई करने वाले ज्येष्ठ पुरुष हाथ में एक पात्र लिए हुए हैं और चार मानव उनका अनुगमन कर रहे हैं।
महाभारत की कथा में आया है कि सूर्यदेव ने युधिष्ठिर को एक अक्षय पात्र के रूप में वरदान दिया था। संभवत: वहीं पात्र धारण किए हुए शैलचित्र में दिख रहे हैं। इसी तरह की मूर्तियां दक्षिण भारत के मंदिर की दीवारों पर बनाई गई है। कांठल क्षेत्र के जंगलों में पांडवों के पदार्पण से जुड़ी कहानियों का प्रचार लोक जनजीवन में वर्षों से प्रचलित है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह चित्र पांडवों का हो सकता है।

अनुकूल वातावरण में पनपती सभ्यताएं

पुरातत्वविदें के अनुसार, नदियों, जंगलों के समीप विकसित हुई प्राचीन सभ्यताएं, विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताएं नदियों किनारे जंगलों के समीप विकसित हुई। जहां भोजन और सुरक्षित आवास उपलब्ध रहे हो। यहां भी नदी-नालों के किनारे आदिमानव आश्रय स्थल पाए गए है।
यहां गुफाओं में शैल चित्र प्राप्त हुए हैं एवं इनके आसपास कई किलोमीटर दूर तक कुछ प्रागैतिहासिक चिन्ह, मूर्तियां, भित्ति चित्र, उपकरण, कप माक्र्स, चारदीवारी युक्त आवास, भूमिगत चेंबर, कुई, बावड़ी, स्टोन एज के मोर्टार, ओखली रिंग स्टोन, विचित्र से मिट्टी के पात्र के टुकड़े इन साइट्स के आसपास देखे गए हैं।

होना चाहिए अनुसंधान व अन्वेषण

देख-रेख के अभाव में यह पुरातात्विक स्थल नष्ट हो रहे हैं। हजारों साल पुराने ये रंग अब भी फीके तो नहीं पड़ रहे, लेकिन चट्टानों का क्षरण तो हो ही रहा है। पुरातत्व विभाग के साथ स्थानीय प्रशासन को भी इस और ध्यान देकर प्रतापगढ़ के ऐसे प्रागैतिहासिक स्थलों को चिन्हित किया जाना चाहिए। पुरातत्वविदों के शोध तथा कार्बन डेटिंग या तकनीकी गणना होने पर ही शैलचित्रों के काल का सटीक आंकलन हो पाएगा।

विभाग की ओर से ऐसे स्थलों का होना चाहिए अन्वेषण

प्रतापगढ़ के जंगलों में कुछ प्रागैतिहासिक और रहस्यमयी स्थलों की खोज की है। सीतामाता अभयारण्य में भी ऐसी कुछ जगहें पूर्व ज्ञात है। इन सब के संरक्षण और सर्वे के उद्देश्य से पुरातत्व विभाग और प्रशासन को पत्र लिखे हैं। लेकिन अब तक कोई सकारात्मक कदम नजर नहीं आए हैं। इन स्थलों का जिले के इतिहास व राज्य पुरातत्व स्थल सूची में शामिल होकर यहां विभाग द्वारा अन्वेषण व अनुसंधान होना चाहिए। – मंगल मेहता, पर्यावरणविद्, प्रतापगढ़़

विभाग को भेजी है यहां की जानकारी

जंगल में कुछ स्थानों पर गुफा में शैलचित्र मिलने की जानकारी मिली है। ऐसे में यहां की पूरी जानकारी और फोटो को हमने पुरातत्व विभाग को भिजवाए हैं। इसके साथ ही विभाग को इसके बारे में और भी अवगत कराया जाएगा जिससे यहां के शैलचित्रों के बारे में और जानकारी भेजी जाएगी। – हरिकिशन सारस्वत, उपवन संरक्षक, प्रतापगढ़

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