यह होती है क्रीमीटोगास्टर चींटी यह चींटी चार-पांच एमएम लंबाई की होती है। इनका निचला पेट दिल के आकार का होता है। सहायक वन संरक्षक दिलीपसिंह गौड़ ने बताया कि लैटिन भाषा में इसे गेस्टर बोला जाता है। इसलिए इसका नाम क्रिमेटोगास्टर हुआ। यह अपना आवास पेड़ के ऊपर फुटबॉलनुमा बनाती है। इसमें यह अपने अंडे और इल्लियां रखती है। इसका भोजन पक्षियों के अंडे, कीड़े आदि होता है। खतरा होने से अपने दिल के आकार के पेट को ऊपर उठाकर डंक निकालकर कंपन्न कर संकेतों का संपे्रषण करती है। चीडिय़ों, सरीसृप आदि को डंक चूभोकर भगाती और दूर करती है।
आश्चर्यजन होता है घोंसला पेड़ पर इस तरह बना इनका घोंसला अनूठा और आश्चर्यजनक होता है। सीतामाता के जंगल में इसके घोंसले 20 फीट तक ऊंचाई पर पेड़ों पर भी देखे गए हैं। यह अपना घोंसला मिट्टी, तिनके, घास, छाल, रेशों और अपनी लार को मिलाकर बनाती है। जो बारिश में भी अंदर से गीला नहीं होता है। इन चींटियों के घोंसले दो फीट वृत्ताकार तक भी होते है।
जैव समृद्धता का प्रतीक प्रतापगढ़ के जंगल जैव समृद्धता का द्योतक है। यहां कई जीव-जंतु पाए जाते है। यहां जंगल में कुछ स्थानों पर क्रीमीटोगास्टर नामक चींटियां भी पाई गई है। इनके संरक्षण को लेकर विभागीय कर्मचारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए है। वैसे स्टाफ को पर्यावरण संरक्षण के लिए कहा गया है।
– हरिकिशन सारस्वत, उपवन संरक्षक, प्रतापगढ़. दुर्लभ चींटियों में शामिल हैं क्रीमीटोगास्टर प्रजाति क्रीमीटोगास्टर नामक चींटियां काफी कम है। इन घोंसलों की संया यहां बहुत कम दिखे है। चूंकि यह दुर्लभ प्रजाति की चींटियां है। इसको बचाने के प्रयास होना चाहिए। इसके घोंसले खेजड़ी, बहेड़ा और पलाश के पेड़ों पर देखे गए हैं। इन घोंसलो को नुक्कसान नहीं पहुंचाएं और ना ही कौतूहलवश इसे छेड़ें। जिस पेड़ पर इसके घोंसले हो उन्हे नहीं काटना चाहिए। हर छोटे बड़े जीव का पर्यावरएा में अपना एक विशिष्ट योगदान है। जागरूक लाकर इनका संरक्षण किया जा सकता है।
– मंगल मेहता, पर्यावरणविद्, प्रतापगढ़.