वैसे तो भाजपा सरकार में शुरू से ही राष्ट्रवाद की विचारधार को सर्वोपरि रखा गया है। अटल सरकार में जब मुरलीमनोहर जोशी ने एचआरडी मिनिस्ट्री का बागडोर संभाली तो शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में इसकी झलक देखने को मिली। शैक्षिण संस्थानों से लेकर सांस्कृतिक स्तर तक हिंदुत्व से लेकर राष्ट्रवाद को प्राथमिकता दी गई। वाजपेयी सरकार के दौरान भी सिलेबस में कई नई चीजें जोड़ी गईं। उस वक्त कहा गया था कि कांग्रेस शासन गलत इतिहास परोसता रहा है और इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश की गई। जिस वजह से शिक्षा के भगवाकरण का आरोप भी लगा।
मोदी सरकार में इसी नीति पर आगे बढ़ा मंत्रालय
वाजपेयी सरकार के बाद वर्ष 2014 में मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने शानदार वापसी की और इस कार्यकाल में भी एचआरडी मिनिस्ट्री पर भी एक बार फिर राष्ट्रवाद का असर देखने को मिला। संघ के एजुकेशनल एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश की गई। वेद, पुराण, उपनिषद जैसे मटीरियल की स्टडी के साथ पुरातन भाषाओं और क्षेत्रीय भाषाओं को संरक्षित करने पर फोकस किया गया।
मोदी सरकार के बीच ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक एमएस गोलवरकर के राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाने की कोशिश भी की गई। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से गठित इंडियन काउंसिल फॉर फिलॉसफिकल रिसर्च (आईसीपीआर) का मानना है कि राष्ट्रवाद पर गोलवरकर के विचारों को गलत समझा गया है और विरोधियों ने उसे गलत परिप्रेक्ष्य में पेश किया है। उसे सही परिप्रेक्ष्य में समझे जाने की जरूरत है।
भाजपा सरकार में राष्ट्रवाद का असर इस तरह दिखा कि एचआरडी मिनिस्ट्री का नाम बदलने का ही सुझाव दिया गया। महाराष्ट्र के नागपुर स्थित रिसर्च फॉर रिसरजेंस फाउंडेशन ने एचआरडी मंत्रालय का नाम बदलकर 1985 के पहले की तरह शिक्षा मंत्रालय कर देने का सुझाव भी दिया।
मोदी दोबारा सत्ता में लौटे हैं इस बार पिछली सरकार की तुलना में और ज्यादा पावर के साथ। इस बार संघ और भाजपा ने अपनी जीत का श्रेय भी राष्ट्रवाद को दिया है। ऐसे में मुमकिन है कि एचआरडी मिनिस्ट्री के कामकाज पर ‘राष्ट्रवाद’ की छाया दिखे। मोदी की पिछली सरकार में इस मंत्रालय को पहले स्मृति ईरानी और फिर प्रकाश जावड़ेकर ने संभाला और इसी एजेंडे पर काम भी किया। इस बार भी शिक्षा में वेद, पुराण, उपनिषेद की समावेश बढ़ेगा तो संस्कृति में भी राष्ट्रवाद की झलक दिखाई दे सकती है।