इतिहासकार पं. गोचर शर्मा के अनुसार राजवंश की नौवी पीढ़ी के महाराजा पद्मसिंह राठौड़़ सन् १७७३ से 1800 ई. तक शासक रहे, किवंदती है कि सन् 1776 ई में महाराजा ने दक्षिण भारत स्थित तिरुपति व्यंकटेश बालाजी के दर्शनार्थ आंध्र प्रदेश के चितुर जिले के तिरुकला पर्वतश्रेणी की गोद में स्थित दर्शन करने गए थे। पुराणों के अनुसार देवी पद्यावती प्रभु व्यंकटेश की पत्नी है, तिरुपति के पास एक छोटा सा गांव है तिरुचुरा, वहां मां पद्यावती का एक अत्यंत ही सुंदर मंदिर है। यह मंदिर अलमेलमंगापुरम के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि तिरुपति बालाजी से मांगी गई मुराद तभी पूर्ण होती है जब मां पद्यावती के दर्शनकर देवी मां पद्यावती, ज्योतिरूप महान..विघ्न हरो मंगल करो…करो मात् कल्याण…के साथ वंदन कर आशीर्वाद प्राप्त करे।
कहा जाता है कि तिरुचुरा गांव में स्थित तालाब में खिले कमल (पद्म) के फूलों से देवी पद्यावती का जन्म हुआ था। मां पद्मावती श्री महालक्ष्मी का एक विशेष स्वरूप है। देवी पद्मावती कमल के पुष्प पर विराजित है तथा इनके दोनों हाथों में कमल के फूल है। महाराजा पद्मसिंह को मां लक्ष्मी का यह स्वरूप बहुत ही प्रिय लगा अतएवं यात्रा से लौटने के बाद उन्होंने रतलाम के राजमहल में माता मंदिर का निर्माण करवाया।