के चंद्रशेखर राव: BJP को बहुमत न मिलने पर केंद्र में बनाएंगे गैर कांग्रेसी सरकार विपक्षी एकता के बगैर सत्ताधारी सरकार को हटाने का नहीं है इतिहास राजनीतिक नेतृत्व को लेकर सर्वमान्य धारणा यही है कि आम चुनाव में सत्ताधारी पार्टी को दोबारा सत्ता में आने से रोकने के लिए विपक्षी पार्टियों का एक मंच पर आना जरूरी होता है। इसके बगैर सत्ताधारी पार्टी को दिल्ली की कुर्सी से बेदखल करना बहुत मुश्किल है। कम से कम विगत 16 लोकसभा चुनाव का इतिहास तो यही बताता है। विपक्षी एकता के बल पर ही वर्ष 1977, 1989 और 1996 में सत्ताधारी कांग्रेस को हराना संभव हो पाया था।
ममता बनर्जी ने PM के खिलाफ खेला इमोशनल कार्ड, कहा- ‘मोदी ने बंगाल और मुझे अपमानित किया’ वैकल्पिक नेतृत्व पेश न करना विपक्ष की बड़ी भूल वैसे तो पीएम पद की रेस में विपक्षी पार्टियों की ओर से कई नेता है। इनमें राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, केसीआर, चंद्रबाबू नायडू, मायावती, अखिलेश, तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी, शरद पवार, के चंद्रशेखर राव आदि नाम शामिल हैं। लेकिन विपक्षी पार्टियों में चुनाव पूर्व मोदी के खिलाफ वैकल्पिक नेतृत्व पेश न कर, एनडीए गठबंधन को एक तरह से लोकसभा चुनाव में वाक ओवर दे दिया है। इसका लाभ चुनाव के दौरान एनडीए ने जमकर उठाया है और यह माना जा रहा है कि मोदी जैसा ताकतवर चेहरा विपक्ष के पास नहीं है।
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किसी के पास नहीं इसका जवाब छह चरणों के मतदान के बाद भी इस बात के संकेत अभी तक नहीं मिले हैं कि इस बार सरकार कौन बनाएगा। सियासी विश्लेषक भी इस बार अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं कि मोदी सत्ता में वापसी करेंगे या फिर कांग्रेस महागठबंधन में शामिल दलों के साथ मिलकर सरकार बनाएगी। जबकि सातवें चरण का मतदान होने में केवल पांच दिन शेष रह गए हैं। हालांकि अब तक का सियासी परिदृश्य यह ईशारा कर रहा है कि विपक्ष ने सत्ताधारी एनडीए को पहले ही वाक ओवर दे दिया है।