इस बार का दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 भी इससे अछूता नहीं रहा। चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में इलेक्शन स्ट्रेटजिस्ट इस काम को वार फुट पर अंजाम देने में जुटे हैं। अब स्ट्रेटजिस्टों के सहयोग से चुनाव जीतने की कशमाकश किसी वार से कम नहीं होता। दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार खास बात यह उभरकर सामने आई है कि आम आदमी पार्टी, भारतीय जतना पार्टी, कांग्रेस की तो छोड़िए छोटे—छोटे राजनीतिक दलों व स्वतंत्र उम्मीदवार ने भी अपनी जीत को सुनश्चित करने के लिए इन स्ट्रेटजिस्टों का सहयोग बढ़ चढ़कर लिया है।
चुनाव में इन रणनीतिकारों की बढ़ती भूमिका की वजह से बड़े से छोटे दलों व निर्दलीय प्रत्याशी तक अब चुनाव प्रोफेशनल तरीके से लड़ते हैं। इस काम को इलेक्शन स्ट्रेटजिस्ट प्रत्याशी की सोच, रणनीति, मतदाताओं के रुझान, जाति, वर्ग, धर्म व अन्य समुदायों के हितों व वोट समीकरणों को ध्यान में रखते हुए अंजाम देते हैं।
इलेक्शन स्ट्रेटजिस्ट आशीष गुप्ता का कहना है कि दिल्ली का चुनाव प्रचार अब अंतिम दौर में पहुंच गया है। इस दौर में स्ट्रेटजिस्टों की भूमिका माइक्रो मैनेजमेंट और मोहल्ला मैनेजमेंट करने पर है। आशीष गुप्ता का कहना चुनाव रणनीतिकार राजनीतिक दलों व निर्दलीय प्रत्याशियों के काम को तीन से चार चरणों में अंजाम देते हैं। इनमें पहला बूथ मैनेजमेंट, दूसरा कॉल सेंटर, तीसरा वार रूम और अंत में माइक्रो मैनेजमेंट और मोहल्ला मैनेजमेंट होता है।
बूथ लेवल इस स्तर पर काम को छह महीने पहले शुरू कर दिया जाता है। इस स्तर पर प्रत्याशी के लिए हर बूटा पर एक टीम तैयार किया जाता है। विरोधी प्रत्याशियों की नाकामियों व कमजोरियों को उजागर किया जाता है। इस लेवल पर विधानसभा सीटों के हिसाब से 15 लोगों की तक की टीमें बनाई जाती हैं। इनका काम हर बूथ पर एजेंट बनाना, वहां के प्रभावी लोगों से संपर्क साधना, विरोधी प्रत्याशियों की कमजोरियों, स्थानीय समस्याओं, सनसनीखेज तथ्यों को हासिल करना के साथ बूल लेवल के स्टाफ को ट्रेनिंग देने का काम किया जाता है। इस टीम में कंटेंट राइटर, ग्राफिक्स डिजाइनर, फैक्ट फाइंडर, पीआर आदि स्तर पर जरूरत के हिसाब से लोग रखे जाते हैं।
कॉल सेंटर तीन महीने पहले कॉल सेंटर स्थापित किया जाता है। इस सेंटर पर 10 से 12 स्टाफ चुनाव संपन्न होने तक काम करते हैं। इनका काम टेलीकॉलिंग, व्वाइस मेल, मेल व अन्य माध्यमों से लोगों से सीधे संपर्क साधना होता है। ताकि प्रत्याशियों के पक्ष में माहौल विकसित किया जा सके।
वार रूम चुनाव से दो महीने पहले वार रूम स्तर पर भी काम शुरू हो जाता है। यह एक कमांड सेंटर की तरह काम करता है। इस स्तर पर आठ से दस लोग काम करते हैं। इनमें प्रोजेक्ट़स हेंड, वेब डिजाइनर, कंटेंट राइटर, आइडिया जनरेटर व अन्य तरह के प्रोफेशनल व तकनीक जानकार शामिल होते हैं। इनका का बूथ लेवल टीम, कॉल सेंटर व अन्य माध्यमों से मिलने वाली जानकारियों को इस तरह से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों जैसे ट़्विटर, फेसबुक, व्हाट़सएप, इंस्टाग्राम, यू—ट्यूब, प्रिंट और एलोकट्रोनिक मीडिया पर वायरल करना होता है। खासकर विरोधी प्रत्याशियों के कैरेक्टर को खराब करने, निगेविटी का प्रचार प्रसार करने व उसके लाइफ से जुड़े उन पहलुओं को उजागर करना जिससे उसकी ईमेज खराब हो। इसके पीछे मुख्य मकसद अपने प्रत्याशियों की छवि को बेहतर बताकर उसकी जीत को सुनिश्चित करना होता है।
माइक्रोमैनेजमेंट व मोहल्ला मैनेजमेंट इस स्तर पर चुनाव प्रचार खत्म होने के साथ शुरू होता है। इस स्तर पर बूथ एजेंटों और मोहल्ला प्रमुखों की भूमिका अहम होती है। इस स्तर पर बूथ एजेंट का काम मतदान केंद्रों पर पार्टी के पक्ष में अधिक से अधिक वोटिंग कराना होता है। वहीं हर मोहल्ला प्रमुख के जिम्मे 100 घरों के लोगों को मतदान पर्ची मुहैया कराना से लेकर बूथ तक पहुंचाने की होती है। साथ ही इस बात को सुनिश्चित करना होता है कि प्रत्याशी के पक्ष में मतदान हो सके।