उत्तर प्रदेश का मामला बीते वर्ष 29 मई 2018 को उत्तर प्रदेश की चार लोकसभा और 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए थे। इस दौरान कई मतदान केंद्रों पर वेरीफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) मशीन के खराब होने की सूचना सामने आई थी। इस पर उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने कहा था कि ज्यादा गर्मी की वजह से वीवीपैट मशीन प्रभावित हुईं।
मध्य प्रदेश का मामला वहीं, मध्य प्रदेश में अक्टूबर 2018 में भारतीय निर्वाचन आयोग को पता चला कि वहां सप्लाई की गईं वीवीपैट मशीनों के फेल होने की संख्या करीब 7 फीसदी थी। इस जानकारी के सामने आनेे के बाद विपक्षी दल कांग्रेस ने कहा था कि इन आंकड़ों के सामने आने के बाद ईवीएम और वीवीपैट के संबंध में उठे सवाल और पुख्ता हो गए हैं।
राज्य चुनाव अधिकारियों द्वारा जुलाई से अगस्त के बीच किए गए परीक्षणों में इस बात का खुलासा हुआ था कि वीवीपैट के खराब होने की दर 7.68 फीसदी थी जबकि कंट्रोल यूनिट्स की दर 1.2 फीसदी। वहीं, ईवीएम यूनिट्स अपेक्षाकृत 1 फीसदी से भी कम दर के साथ ज्यादा बेहतर थीं।
इसके बाद 27 नवंबर 2018 को कई जिलों से ईवीएम के खराब होने समेत वीवीपैट पर्ची पर प्रत्याशी का निशान न दिखने का मामला सामने आया था। मतदान दल ने मशीन के खराब होने की पुष्टि भी की थी।
इससे पहले 2017 में भिंड जिले में वीवीपैट मशीन के डेमो के दौरान कथितरूप से केवल भाजपा के चुनाव चिन्ह को ही दिखाए जाने का मामला सामने आया था। इसके बाद चुनाव आयोग ने मामले की जांच की और पाया कि मशीन से छेड़छाड़ की गई थी।
इसलिए किया जाता है वीवीपैट का इस्तेमाल मतदान के दौरान वीवीपैट मशीन का इस्तेमाल पारदर्शिता बरतने के लिए किया जाता है। इसका मकसद होता कि मतदाता को यह यकीन दिला दिया जाए कि उसने जिसे वोट डाला है, वोट उसी के पास पहुंचा है।
2019 चुनाव में वीवीपैट आगामी 11 अप्रैल से लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इसके लिए देशभर में करीब 10 लाख मतदान केंद्र बनाए जाएंगे। 2014 आम चुनाव की तुलना में इनमें 10.1 फीसदी का इजाफा हुआ है। इस बार चुनाव में 23.30 लाख बैलट यूनिट्स, 16.30 लाख कंट्रोल यूनिट्स के साथ ही 17.40 लाख वीवीपैट मशीनों का इस्तेमाल किया जाएगा।
जानिए क्या है वीवीपैट