अब तक आए चुनावी नतीजों के मुताबिक बीजेपी के खाते में 19.54% जबकि जेडीयू को 15.14% वोट मिल चुके हैं। वहीं, आरजेडी को 22.9% वोट मिले थे। ऐसे में ये कहा जा सकता है कि अगर एलजेपी ने जेडीयू के खिलाफ प्रत्यासी नहीं खड़े किए होते तो नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने की संभावना होती।
एलजेपी ने चुनाव के दौरान जिन सीटों पर जेडीयू को बड़ा नुकसान पहुंचाया है उनमें महुआ, मटिहानी, महिषी, जहानाबाद, कुर्था प्रमुख रूप से शामिल हैं। महुआ में जेडीयू को एलजेपी के चलते हार का मुंह देखना पड़ा। यहां जीत तो आरेजडी उम्मीदवार की हुई, लेकिन एलजेपी उम्मीदवार संजय कुमार सिंह को 12 हजार वोटों ने जेडीयू को नुकसान पहुंचाया।
एलजेपी के सिंगल एजेंडे जेडीयू की हार ने मंत्री तक को नहीं बख्शा। जहानाबाद सीट से जेडीयू के मंत्री कृष्णनंदन वर्मा चुनाव हार गए। यहां भी आरजेडी को एलजेपी प्रत्याशी के वोट काटने की वजह से जीत हासिल करने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई।
जेडीयू के लिए कुर्था, सासाराम और नोखा सीट भी बुरी खबर लेकर आई। यहां भी लोजपा उम्मीदवारों के चलते जेडीयू प्रत्याशियों के खाते में हार ही नसीब हुई।
अपने चुनावी भाषणों में चिराग पासवान ने नीतीश सरकार और खुद नीतीश पर कई तीखे बाण चलाए। उन्होंने जहां नीतीश कुमार पलटूराम का नाम दिया तो वहीं उनकी सरकार को भ्रष्टाचारी सरकार भी करार दिया।
चिराग के इस नारे ‘नीतीश कुआं तो तेजस्वी खाई, LJP-BJP सरकार बनाईं’ का असर जनता पर हुआ और नतीजों में इसकी झलक देखने को मिल रही है।
चिराग को बी टीम के रूप में इस्तेमाल करने के पीछे बीजेपी की बड़ी भूमिका बताई जा रही है। बीजेपी चाहती थी कि वो प्रदेश में छोटे और जुड़वां भाई की भूमिका से निकलकर बड़े भाई भूमिका में आए। इसके लिए जेडीयू के वोटों को काटना जरूरी था। लिहाजा टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार तक बीजेपी ने लोजपा को ज्यादा समझाने की कोशिश नहीं की।