भाजपा में शामिल हुए पूर्व राज्यसभा सांसद संजय सेठ और सुरेंद्र सिंह नागर
…और सपा से दूर होते चले गये दिग्गगज
समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद से अखिलेश यादव के लिये कुछ भी सही नहीं रहा है। अब तक शिवपाल यादव (Shivpal Yadav), अमर सिंह (Amar Singh), रघुराज प्रताप सिंह (Raja Bhaiya), नरेश अग्रवाल (Naresh Agarwal) सहित बड़ी संख्या में दिग्गज सपा नेताओं ने या तो अपना दल बना लिया या फिर विपक्षी दल में शामिल हो गये। इसके अलावा पूर्वांचल के कद्दावर क्षत्रिय नेता और एमएलसी यशवंत सिंह भी कभी मुलायम के बहुत करीबी हुआ करते थे। लेकिन, आज इन सभी ने अखिलेश से दूरी बना ली है। मुलायम के विश्वस्त साथी भगवती सिंह भी अब बूढ़े हो चुके हैं। इन्हें भी अखिलेश पसंद नहीं। ऐसे में सपा में क्षत्रिय नेता अब न के बराबर रह गए हैं। मायावती बढ़ा रहीं सपा की टेंशन
विधानसभा चुनाव (UP Vidhansabha Chunav 2017) और निकाय चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को आशातीत सफलता नहीं मिली। मायावती (Mayawati) ने भी अखिलेश को ‘कमजोर’ बताते हुए न केवल उनसे गठबंधन तोड़ लिया, बल्कि सपा के वोट बैंक को हथियाने की रणनीति पर पर काम भी शुरू कर दिया है। अल्पसंख्यकों के साथ ही सपा का यादव वोट बैंक भी मौजूदा वक्त में डगमगाता दिख रहा है। यादव बिरादरी के अन्य दलों में गए कई पुराने नेता भी सपा में वापसी के बजाय बसपा को ही पसंद कर रहे हैं। बीते दिनों मायावती ने जौनपुर से सांसद श्याम सिंह यादव (Shyam Singh Yadav) को संसदीय दल का नेता बनाकर यादव वोट बैंक पर निशाना बनाया है। मुनकाद अली को बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर मायावती ने स्पष्ट संकेत दे दिये हैं कि उनकी नजर सपा के परम्परागत वोट बैंक पर है।
राज्यसभा में बहुमत का आंकड़ा छूने की जुगत में बीजेपी, सपा-बसपा के यह सांसद बीजेपी में हो सकते हैं शामिल
मुलायम की तरह ‘चतुर’ खिलाड़ी नहीं हैं अखिलेशराजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) की तरह राजनीति के चतुर खिलाड़ी नहीं हैं। उन्हेंं जमीनी हकीकत पता नहीं होती और वह सलाहकारों से घिरे रहते हैं। इसीलिए उनके पास सटीक सूचनाएं नहीं पहुंच पातीं। मुलायम जिस तरह से पार्टी (Samajwadi Party) कार्यकर्ताओं को सम्मान देते थे, वह भाव भी अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) में दिखता। दूसरे अखिलेश की उम्र भी अनुभवी नेताओं को जोड़े रखने में आड़े आ रही है। पुराने और खांटी नेता अखिलेश घुलमिल नहीं पाते। वह अपनी बात सहजता से उनके सामने नहीं रख पाते। यही वजह है कि कार्यकर्ता और कद्दावर नेता उनसे दूरी बना रहे हैं। सबसे बड़ी बात है कि सत्ता का मोह भी संस्कार की राजनीति पर भारी है। सत्ता पक्ष से मिलने वाली सुख-सुविधाओं की वजह से भी बड़े नेता सपा का दामन छोड़ रहे हैं।