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जब लोहार ने काटा भगवान परशुराम का फरसा, जानें फिर क्या हुआ

जब लोहार ने काटा भगवान परशुराम का फरसा, जानें फिर क्या हुआ

May 03, 2019 / 11:38 am

Pawan Tiwari

parshuram

जब लोहार ने काटा भगवान परशुराम का फरसा, जानें फिर क्या हुआ

भगवान परशुराम महान तपस्वी और योद्धा हैं। वे सप्त चिरंजीवियों में से एक हैं। उनका जिक्र रामायण में भी है और महाभारत में भी। वे शस्त्र के साथ ही शास्त्र के भी विशेषज्ञ हैं। परशुराम धनुर्विद्या के ज्ञाता हैं लेकिन फरसा उनका प्रिय शस्त्र है।
झारखंड में रांची से करीब 150 किमी की दूरी पर घने जंगलों में स्थित टांगीनाथ धाम के बारे में कहा जाता है कि यहां भगवान परशुराम का फरसा गड़ा हुआ है। यह इलाका नक्सल प्रभावित है। यहां स्थानीय भाषा में फरसा को टांगी कहा जाता है, इसलिए इस जगह का नाम टांगीनाथ धाम हो गया।
परशुराम का फरसा और पद चिह्न

इस जगह भगवान परशुराम का फरसा जमीन में गड़ा हुआ है। यहां परशुराम के पद चिह्न भी बताए जाते हैं। परशुराम महान तपस्वी हैं। उन्होंने तप से अद्भुत सिद्धि और शक्तियां प्राप्त की हैं। इस स्थान से एक अद्भुत कथा भी जुड़ी है।
जब सीताजी के स्वयंवर में भगवान श्रीराम ने शिव का धनुष तोड़ दिया था तब परशुराम अत्यंत क्रोधित हुए और स्वयंवर स्थल पर आ गए। उस दौरान श्रीराम शांत रहे लेकिन लक्ष्मण से परशुराम का विवाद होने लगा। बहस के बीच जब परशुराम को यह जानकारी होती है कि श्रीराम स्वयं विष्णु के अवतार हैं तो उन्हें इस बात का दुख होता है कि उनके लिए कटु वचन इस्तेमाल किए।
स्वयंवर स्थल से परशुराम जंगलों में चले जाते हैं। यहां वे अपना फरसा भूमि में गाड़ देते हैं और भगवान शिव की स्थापना करते हैं। यहां वे तपस्या करने लगते हैं। उसी जगह पर आज टांगीनाथ धाम स्थित है। लोगों का विश्वास है कि परशुरामजी का वही फरसा आज भी यहां गड़ा हुआ है।
नहीं लगता फरसे में जंग

यह फरसा यहां हजारों साल से बिना किसी देखभाल के गड़ा हुआ है लेकिन आज तक इस पर जंग नहीं लगा है। लोगों का कहना है कि फरसा भूमि में कितना गड़ा हुआ है, यह कोई नहीं जानता। इसके बारे में एक कहानी भी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार इस इलाके में लोहार आकर रहने लगे थे।
काम के दौरान उन्हें लोहे की जरूरत हुई तो उन्होंने परशुराम का यह फरसा काटने की कोशिश की। काफी कोशिश के बाद भी वे फरसा नहीं काट पाए, लेकिन इसका नतीजा बहुत बुरा हुआ। उस परिवार के सदस्यों की मौत होने लगी। इसके बाद उन्होंने वह इलाका छोड़ दिया। आज भी टांगीनाथ धाम के आसपास लोहार जाति के लोग नहीं रहते है। उस घटना का खौफ उनके मन में आज भी ताजा है।

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