बीते दिनों गणतंत्र दिवस पर इनके बांधे साफे शहर में चर्चा का विषय रहे। जहां प्रजापति समाज की ओर से निकाली गई शोभायात्रा में शामिल सभी युवाओं ने तिरंगा रंग में तैयार साफे बांधे तो जीशान ने विशेष रूप से तिरंगे के रंग में 71 फीट लम्बे कपड़े का साफा भी तैयार किया था। इतना ही नहीं, इन दोनों भाइयों के हाथों से तैयार साफे गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओमप्रकाश माथुर को भी खासे पसंद आए थे।
वैसे देखा जाए तो पगड़ी का इतिहास राजस्थान की संस्कृति से जुड़ा है। इसे पाग, साफा और पगड़ी कहा जाता है। अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग तरह के साफे बांध जाते हैं। यहां तक कि समाजों में भी अलग-अलग साफे बांध जाते हैं। जहां रेबारी समाज के लोग लाल फूल का साफा बांधते हैं जबकि विश्नोई समाज सफेद रंग का साफा बांधते हैं। लंगा, मांगणियार, कालबेलिया आदि रंगीन छापेल डब्बीदार भांतवाले साफे बांधते हैं। कलबी लोग सफेद, कुम्हार और माली लाल, व्यापारी वर्ग लाल, गुलाबी, केसरिया आदि रंग की पगड़ी बांधते हैं। चरवाहे की पगड़ी लाल रंग की होती है।
साफों की एक खासियत ये भी है कि ये त्योहार व मौसम के अनुरूप अलग-अलग पहने जाते हैं। जहां बसन्त ॠतु में गुलाबी, ग्रीष्म ॠतु में फूल गुलाबी तथा बहरिया (जिसमें रंगों की धारियां एवं हल्के छींटे लगे हों), बारिश में मलयागिरी जो लाल चन्दन जैसा होता है, साफा बांधा जाता है। वहीं शरद ऋतु में अनार रग की पाग बांधी जाती थी तो हेमन्त ऋतु में विभिन्न रंगों का मोलिया बांधा जाता था। हालांकि, अब इसका इतना चलन नहीं है। इतना ही नहीं, अलग-अलग त्योहारों के लिए भी अलग-अलग पगड़ी पहनी जाती है। उदाहरण के तौर पर लाल किनारी वाली काली पगड़ी दिवाली के समय, लाल-सफेद पगड़ी फागुन में, चटक केसरिया पगड़ी दशहरे में, पीली पगड़ी बसंत पंचमी के समय तथा हलकी गुलाबी पाग शरद पूर्णिमा की रात को पहनी जाती है।
साफे का बढ़ते क्रेज का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब कई लोगों ने इसे व्यवसाय के रूप में अपना लिया है। अलग-अलग तरह के तैयार साफा (पगड़ी) लेने के लिए लोग इस कदर आतुर है कि पाली शहर में कई शोरूम तक खुल चुके हैं। वहां पर विभिन्न डिजाइन व कपड़ों के आकर्षक साफे तैयार मिलते हैं। ऐसे में उन्हें पहनने में भी आसानी रहती है।