
Raksha Bandhan 2022 : पूर्वजों के बलिदान की याद में 730 साल से नहीं बंधवा रहे राखी
Raksha Bandhan 2022 : पाली। पाली हमारा शहर व जिला। इसका नाम पाली क्यों पड़ा शायद कई लोग नहीं जानते होंगे। यह शहर आज से नहीं 6वीं सदी से भी पहले का है। इसमें उस समय करीब एक लाख पालीवाल ब्राह्मण रहते थे। उनके कारण ही इसका नाम पाली पड़ा। पालीवाल ब्राह्मण जो विक्रम संवत 1348, सन 1291-92 में पाली छोड़कर चले गए। उनको लोगों ने भूला दिया, लेकिन वे अपने पूर्वजों का आज भी रक्षाबंधन पर पाली में तर्पण करते हैं। इस दिन पूर्वजों के बलिदान देने के कारण 730 साल बाद भी रक्षाबंधन पर्व नहीं मनाते हैं।
पालीवाल ब्राह्मण समाज के सह कोषाध्यक्ष भूराराम पालीवाल बताते है कि पाली की समृद्धि को देखकर सन 1291-92 जलालुदीन खिलजी जो फिरोशाह द्वितीय के नाम से शासक बना था। उसने आक्रमण किया। श्रावणी पूर्णिमा रक्षाबंधन के दिन हजारों पालीवाल ब्राह्मणों ने युद्ध किया और बलिदान दिया। युद्ध में बलिदान देने वाले ब्राह्मणों की 9 मण जनेऊ व विधवा माताओं का 84 मण चूड़ा उतरा। उसे अपवित्र होने से बचाने के लिए पालीवाल ब्राह्मणों ने धौला चौतरा पर एक कुएं में जनेऊ व चूड़े डालकर उसे बंद कर दिया था। उस समय जो पालीवाल ब्राह्मण बचे। उन्होंने धर्म की रक्षा, स्वाभिमान के लिए पाली को छोड़ दिया था।
गुजरात व जैसलमेर गए
पाली से पालीवाल ब्राह्मणों की 12 गौत्रों में से 4 गौत्र गुजरात व 8 जैसलमेर में गए। अब पालीवाल ब्राह्मण रक्षाबंधन का दिन पालीवाल एकता दिवस के रूप में भी मनाते है। पाली में उन्होंने पुनागर भाखरी के पास 2017 में भूमि खरीदी। उस पर माता रुकमणि का मंदिर, धर्मशाला के साथ तर्पण करने के लिए तालाब का निर्माण कराया है।
Published on:
11 Aug 2022 04:47 pm
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