नाडोल गांव एक हजार वर्ष पहले चौहान शासक राव लाखन ने बसाया था। जिसे नडूला राय, नडोल आदि नामों से जाना जाता था जो कालांतर में नाडोल हो गया। इसके साक्ष्य आज भी नाडोल स्थित जूना खेड़ा के उत्खनन कार्य में मिले हैं। यहां पर उत्खनन में मिट्टी के बर्तन, चतुर्भुज सरस्वती प्रतिमा, भगवान इंद्र की प्रतिमा, स्थानक पुरुष व शिव की प्रतिमा के साक्ष्य मिले हैं । नाडोल के जूना खेड़ा को पर्यटन क्षेत्र में शामिल किया जाए तो यहां पर रोजगार की संभावना भी बढ़ सकती है। जैन संत रूपमुनि के जन्म स्थली के रूप में नाडोल को पहचाना जाता है।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार गांव की स्थापना के साथ ही राव लाखन ने माता आशापुरा मंदिर की स्थापना की थी जिसे शाकंभरी के नाम से भी जाना जाता है। श्रद्धालुओं व ग्रामीणों के सहयोग से यहां भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। यह चौहान कुल की कुलदेवी है। इस कारण गुजरात, मध्यप्रदेश सहित राजस्थान के कई जिलों से श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मंदिर का संचालन ट्रस्ट द्वारा होता है। यहां पर यात्रियों के लिए ठहरने व भोजनशाला की सुचारू व्यवस्था है। इसी के साथ राव लाखन ने नीलकंठ महादेव, चारभुजा, सोमनाथ मंदिर की स्थापना भी की थी।
नाडोल गांव स्टेट हाइवे 68 पर बसने के कारण यातायात का दबाव अधिक रहता है। इस कारण कस्बे में हर रोज जाम की स्थिति बनी रहती है। कस्बे से बाइपास प्रस्तावित होने के बावजूद भी प्रशासन की अनदेखी व राजनीतिक जिम्मेदारों की उदासीनता के कारण बाइपास निर्माण कार्य प्रारंभ नहीं हुआ है। कस्बे में भामाशाह द्वारा करोड़ों रुपए की लागत से बनवाया गया चिकित्सालय भी चिकित्सकों की कमी से जूझ रहा है। इसी तरह पशु चिकित्सालय, आयुर्वेदिक चिकित्सालय भी केवल मात्र एक कर्मचारी के भरोसे ही संचालित हैं। सरपंच फूलकंवर राजपुरोहित ने बताया कि कस्बे में स्थाई पेयजल व्यवस्था नहीं होने के कारण हर वर्ष गर्मियों के दिनों में पेयजल की किल्लत रहती है। गांव में बालिका विद्यालय क्रमोन्नत करवाने, गंदे पानी की निकासी, सडक़ों की मरम्मत आदि सुविधाएं की आवश्यकता है।