शहरी विकास के कर्णधार शहर का विकास तो दूर लोगों की समस्याओं के निराकरण में भी विफल साबित हुए हैं। शहरी सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर रही है। परिषद में नई सरकार ने कमान थामी थीं तो शहरवासियों के दिलों में कई उम्मीदें थी। शहरी सरकार के मुखिया महेंद्र बोहरा को लेकर भी लोग आशान्वित थे, लेकिन आज के हालात देखें तो यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि शहरी सरकार शहरवासियों को सिर्फ दर्द ही दे पाई है। सीवरेज निर्माण की चाल और ठेकेदारों की मनमर्जियां किसी से छिपी नहीं है। नया गांव से लेकर पणिहारी तिराहे और घुमटी से लेकर मंडियारोड तक कोई भी सडक़ ऐसी नहीं है, जिसे निरापद कहा जा सके।
सीवरेज के गड्ढों ने तो हाल यह कर दिया है कि हर दिन किसी न किसी रोड पर कोई न कोई हादसा हो ही रहा है। मवेशियों को सडक़ों पर बल प्रदर्शन करते हुए देखकर तो शहरी सरकार के कारिंदों के कार्यशैली पर रोना आ जाता है। हर दिन ये मवेशी शहरवासी को चोटिल कर रहे हैं। कार्रवाई के नाम पर कभी कभार फौरी तौर पर मवेशी पकड़ लिए जाते हैं और कुछ दिन बाद फिर हालात जस के तस। मौजूदा बोर्ड के कार्यकाल से बहुत उम्मीद थी लेकिन कोई एक ऐसा काम नहीं गिनाया जा सकता, जिसमें विवाद नहीं है। सभापति के निवास के निकट तिलक नगर के हाल देखिए यहां थोड़ी सी टूटी सडक़ पर डामरीकरण किया जा रहा है, जबकि शहरभर की सडक़ें बिल्कुल बिखरी हुई है। ये तो चमड़े के सिक्के चलाने जैसा है। बारिश के बाद अब तक भी शहर के कई भूखंडों में पानी भरा है।
शहर मच्छरों और मौसमी बीमारियों की जकडऩ में है पर ना तो शहर के मुखिया के कानों की जूं रेंग रही और उनके ‘मार्गदर्शक’ के। ये हालत तो तब है जब प्रदेश में प्रचंड बहुमत से आई भाजपा की सरकार थी। इसके बाद भी सभापति और विधायक की ‘लोकप्रिय जोड़ी’ कोई करिश्मा नहीं कर पाई। खैर, अब तो मौजूदा बोर्ड अब अंतिम चरण में है। ये बोर्ड अपनी जिम्मेदारियों के प्रति कितना गम्भीर रहा। इससे पता चलता है कि इसे पांच साल में तीस आमसभाएं करनी थी लेकिन हुई इसकी एक तिहाई यानी मात्र 11। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कितने विधायी कार्य निपटाए गए होंगे। लोग किस तरह अपनी समस्याओं से निजात के लिए परिषद के चक्कर लगा लगाकर चप्पल रगड़ रहे होंगे। उन्हें दुश्वारियों के सिवा कुछ नहीं मिला।
ऐसा नहीं है कि नगर परिषद में भाजपा का बोर्ड ही पंगु हो। यहां प्रतिपक्ष के रूप में कांग्रेस भी हमेशा निष्क्रिय और मरणासन्न स्थिति में रही। प्रदेश में सत्ता भी बदल गई है। शहर के लोग तो आज भी खुद को वहीं खड़ा पाते हैं जहां पांच साल पहले थे। उनकी नियति में अब यही है कि वो नए बोर्ड को चुनें और उससे उम्मीद लगाएं कि वह इस शहर के घावों पर मरहम लगाए। टूटी और बिखरी सडक़ों से मुक्ति दिलाए।