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0.150 प्वाइंट के अंतर से ओलंपिक पदक चूककर भी दुनिया का दिल जीता दीपा करमाकर ने

स्कूटर की गद्दी पर प्रैक्टिस कर ओलंपिक में चौथे स्थान आने वाली दीपा संघर्ष की जीती-जागती उदाहरण हैं।

Nov 24, 2017 / 05:22 pm

Prabhanshu Ranjan

dipa karmakar

नई दिल्ली। जिमनास्ट वो खेल, जिसे भारत की अधिसंख्य आबादी अबतक बेहतर तरीके से समझ नहीं सका है। खेल की बारीकियां तो दूर हम इस खेल की बुनियादी बातों से भी महरूम है। इसके बावजूद देश की एक बेटी ने इस खेल में वो नाम कमाया है, जो किसी भी खिलाड़ी का सपना होता है। इनकी उपलब्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इनके प्रदर्शन पर क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर ने एक बार कहा था कि जीतना और हारना खेल का हिस्सा है। आपने लाखों लोगों के दिल जीते और पूरे देश को आपकी उपलब्धि पर गर्व है। यहीं नहीं बीजिंग ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीत चुके भआरतीय निशानेबाज़ अभिनव बिंद्रा ने कहा उन्हें अपना हीरो बताया था। बात हो रही है दीपा करमाकर की। पूर्वोतर राज्य त्रिपुरा से निकल कर दीपा ने जिमनास्ट में वो कारनामा किया है, जिसके लिए उन्हें हमेंशा याद किया जाता रहेगा। दीपा 125 करोड़ की आबादी वाले इस मुल्क की इकलौती खिलाड़ी हैं, जो इस अनजान और अबूझ खेल में ओलंपिक में अंतिम चार में पहुंची थी। यूं तो दीपा के नाम पर रिकॉर्ड तभी बन गया था, जब उन्होंने रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर लिया। हालांकि इसके बाद खेल में इस महाकुंभ में दीपा ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए चौथा स्थान हासिल किया था।

 

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गुरबत से निकल कर गर्व करने तक का सफर
दीपा की कहानी को एक लाइन में ऐसा लिखा जा सकता है – गुरबत से निकल कर गर्व करने तक का सफर। विषम पहाड़ी राज्य त्रिपुरा से ताल्लुक रखने वाली दीपा का जन्म एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में 3 नवंबर 1993 को हुआ था। दीपा के पिता दुलाल करमाकर भी खेल से जुड़े हैं। दुलाल साई (स्पोर्टस अथॉरिटी ऑफ इंडिया) के कोच थे। दुलाल खुद तो बच्चों को वेट लिफ्टिंग की ट्रेनिंग दिया करते थे। लेकिन अपनी बिटिया को जिमनास्ट बनाने का सपना देख रहे थे। ये वो दौर था, जब भारत में जिमनास्ट का कोई नामलेवा नहीं था। इसके बावजूद दुलाल अपने फैसले पर अडिग रहे। दीपा जब छह साल की थी तब ही उनके पिता उन्हें जिम्नास्टिक सिखाने के लिए एक कोच के पास ले गए। हालांकि तब दीपा और उनके पिता को निराशा हाथ लगी थी जब दीपा के कोच ने उनके फ्लैट फुट देखकर उसे दूसरे खेलों में जाने की सलाह दी।

 

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पिता दुलाल ने हमेशा दी दुलार और सपोर्ट
दीपा को पिता दुलाल का सपोर्ट करियर के हर मोड़ पर मिला। बचपन में कोच द्वारा नकारे जाने के बाद जब दीपा गहरे में थी, तब उनके पिता ने उन्हें इस दौर से निकाला। उन्हें जिमनास्ट बनाने की ठान ली। दीपा ने भी पिता की इच्छा पूरी करने के लिए छह साल की उम्र से ही कड़ी मेहनत शुरू कर दी। उनकी मेहनत रंग लाई और उनकी सफलताओं का सिलसिला शुरू हो गया। दीपा ने जब अपना करियर शुरू किया, तब भारत में महिला जिमनास्टों की संख्या काफी कम थी। दीपा को कई लोगों ने राह मोड़ लेने की सलाह दी। लेकिन हौसलों की पक्की दीपा लगातार मेहनत करती रही। जिसका फायदा दीपा को मिला। आज वो देश की सर्वश्रेष्ठ जिमनास्ट हैं।

 

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दीपा के लिए कोच नंदी ने लड़ी लड़ाई
दीपा के लिए कोच नंदी ने लंबी लड़ाई भी लड़ी है। साल 2012 में जब दीपा के करियर पर खेल पदाधिकारियों की बुरी नजर पड़ी तब नंदी ने आगे से आकर उनके लिए काम किया। नंदी ने नौ फरवरी, 2012 को त्रिपुरा खेल परिषद के सचिव को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने दीपा के करियर पर मंडरा रहे खतरे के बारे में विस्तार से जानकारी दी थी। कोच नंदी ने उस पत्र में लिखा था कि भारतीय जिमनास्टिक संघ के मुख्य कोच रहे गुरदयाल सिंह बावा से दीपा के करियर को बड़ा खतरा है। नंदी खुद जिमनास्टिक में पांच बार के राष्ट्रीय विजेता रह चुके हैं। नंदी ने पत्र में लिखा, ‘जब मैंने बांग्लादेश में हुए टूर्नामेंट में दीपा को दूसरे स्थान पर डालने को लेकर जानबूझकर हुए पक्षपात का मुद्दा उठाया, तो बावा ने मुझे डरा-धमकाकर अगरतला वापस आने के लिए कहा।

 

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स्कूटर के ग्द्दों पर अभ्यास करती थी दीपा
जिमनास्ट ने लिए दीपा ने कितना कड़ा संघर्ष किया है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रैक्टिस के लिए जब दीपा को जरूरी उपकरण नहीं मिलते थे, तब वह पुरानी स्कटूरों की गद्दी पर अभ्यास किया करती थी। दीपा के कोच नंदी का कहना है कि भारत में जिमनास्ट जैसे खेलों में उभरते हुए युवा खिलाड़ियों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। शुरुआती दिनों में खिलाड़ियों को न तो प्यार्पत उपकरण मिल पाता है और नहीं वैसी सुविधाएं। इन चीजों को हासिल करने से पहले उस खिलाड़ी को साबित करना होता है। जिसे दीपा ने हासिल किया। दीपा को प्रैक्टिस के लिए जरूरी उपकरण तब मिले, जब वह ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर चुकी थी। इससे पहले तक दीपा स्कूटर के गद्दों पर प्रैक्टिस किया करती थी।

ग्लास्गो में जीता था कांस्य पदक
साल 2014 में ग्लास्गो में हुए कॉमनवेल्‍थ गेम्स में दीपा ने कांस्य पदक जीतने में कामयाबी हासिल की। भारत के लिए जिम्नास्ट जैसे पिछड़े खेल में पदक जीतना बड़ी उपलब्धि थी। इसके बाद उन्होंने पिछले साल नवंबर में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी शानदार प्रदर्शन किया। हालांकि उन्हें कोई पदक तो नहीं मिला लेकिन फाइनल तक पहुंचकर उन्होंने सबका ध्यान अपनी ओर जरूर खींचा। दीपा जिम्नास्ट के जिस इवेंट प्रोडुनोवा में शिरकत करती हैं, उसे काफी मुश्किल माना जाता है। दीपा की उपलब्धि इसलिए भी बड़ी हो जाती है कि 60 के दशक के बाद भारत का कोई भी खिलाड़ी ओलंपिक जिम्नास्टिक में शिरकत नहीं कर पाया है।

 

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52 साल बाद ओलंपिक पहुंच कर रचा इतिहास
दीपा साल 2016 में हुए रियो ओलंपिक में क्वालीफाई कर इतिहास रच दिया। दीपा ने वो कारनामा किया, जो पिछले 52 सालों में कोई भी नहीं कर सका। दीपा ऐसा करने वाली देश की पहली जिमनास्ट बन गई हैं। उन्होंने अंतिम क्वालीफायर और ओलंपिक परीक्षण प्रतियोगिता में प्रभावी प्रदर्शन किया। वह महिला कलात्मक वर्ग में चार उप डिविजन में से पहली में नौवें स्थान पर रही। रियो में दीपा पदक तो नहीं हासिल कर पाई, लेकिन उनके प्रदर्शन ने सभी खूब सराहा गया। रियो में दीपा ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए अंतिम चार में जगह बनाई थी। दीपा महज 0.150 प्वाइंट से रियो ओलंपिक में पदक से चूकी थी। दीपा के इस बेहतरीन प्रदर्शन को पीएम मोदी सहित खेल के कई दिगग्जों ने सराहा था।

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चोट ने भी किया है खूब परेशान
एक एथलीट के लिए चोटिल होना और फिर उससे उबर कर वापसी करना स्वभाविक बात है। दीपा भी कई बार चोटिल होने के बाद वापसी कर चुकी है। रियो के बाद दीपा चोटिल होने के कारण खेल से दूर रही थी। दीपा ने लंबे विश्राम के बाद फिर से चलना-फिरना शुरू कर दिया है। हालांकि वो छह माह के रिहेबिलिटेशन को पूरा किए बगैर वह ट्रेनिंग शुरू नहीं कर सकतीं। चोट के कारण वह इस साल की शुरुआत में एशियाई चैंपियनशिप में भी हिस्सा नहीं ले पाई थीं। साथ ही घुटने की चोट के कारण दीपा अक्टूबर में कनाडा में हुए विश्व चैंपियनशिप से भी बाहर रही। अब तक दीपा दीपा विभिन्न प्रतियोगिताओं में अब 77 पदक जीत चुकी हैं, जिनमें 67 स्वर्ण पदक हैं। उन्हें अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। दीपा अभी टोक्यो ओलंपिक की तैयारी में जुटी हुई है। कोच नंदी ने दीपा की भावी योजनाओं के बार में कहा कि हमारी पहली प्राथमिकता 2020 टोक्यो ओलंपिक में प्रवेश करना है और इसके साथ-साथ हमारी नज़र एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों पर भी है।

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