हालांकि, निर्वाचन आयोग पहले से ही यह दावा कर चुका है कि उसकी वेबसाइट को हैक नहीं किया जा सकता है। आयोग ने साइबर सुरक्षा अधिकारियों के साथ मिलकर थर्ड पार्टी सिक्योरिटी की व्यवस्था भी की है। बावजूद इसके यदि यह मामला सामने आया है तो चिंता और भी अधिक बढ़ जाती हैै। असल में साइबर अपराधी ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पातÓ पर खरे उतर रहे हैं। हमारी व्यवस्था जितनी चुस्ती दिखाती है, वे उससे चार कदम आगे बढ़कर उसे भेद देते हैं। फर्जी मतदाता पहचान-पत्र बनाने की खबरें देश के हर प्रांत से आती ही रहती हैं, मगर इस बार इस मामले ने बड़ा प्रश्न चिह्न लगा दिया है। साइबर अपराधियों की यह कारगुजारी हमारे लोकतंत्र के लिए नि:संदेह खतरा हैं।
अब पता तो यह लगाया जाना चाहिए कि यह गिरोह किस पैमाने पर यह फर्जीवाड़ा कर रहा था? फर्जी मतदाता पहचान-पत्र बनवाने वाले लोग कहां के हैं और क्या इनके खिलाफ भी कोई कार्रवाई की जाएगी? इस बात की भी जांच जरूरी है कि ये पहचान-पत्र मौजूदा मतदाताओं के नाम खारिज करके तो नहीं बनाए गए?
इस मामले के बाद हमारी सरकारी साइबर सुरक्षा पर भी पुन: मंथन किया जाना चाहिए। पैन कार्ड, आधार कार्ड, आयकर रिटर्न, राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस जैसे कई अहम परिचय और पहचान-पत्र अब ऑललाइन ही बनाए जा रहे हैं। इनकी सुरक्षा दीवारों में घुसपैठ करने वालों को रोकना तो जरूरी है ही, व्यक्तिगत जानकारी चुराने की कोशिश करने वालों को कड़ा दंड देना भी आवश्यक है। ये अपराध बहुत घातक है क्योंकि ये व्यक्तिगत पहचान को खंडित करने के साथ ही गोपनीयता पर भी हाथ डालते हैं। इसके लिए साइबर पुलिसिंग को भी अधिक मजबूत और सक्षम बनाना होगा।