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आपकी बातः समारोहों के दौरान भीड़ प्रबंधन पर ध्यान क्यों नहीं दिया जाता?

पत्रिकायन में सवाल पूछा गया था। पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आईं, पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।

Aug 11, 2022 / 04:23 pm

Patrika Desk

प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

प्रशासनिक लापरवाही का सबूत
मेले हों या समारोहों के दौरान भीड़ इकट्ठी होने पर हादसे होते रहे हैं। भीड़ प्रबंध पर ध्यान न देना पुलिस व प्रशासनिक लापरवाही मानी जा सकती है। हाल ही खाटूश्याम मंदिर हादसा प्रत्यक्ष प्रमाण है, जहां 5 लाख की भीड़ इकट्ठा होने पर पुलिस व प्रशासन की लापरवाही से 3 महिला श्रद्धालुओं की मौत हुई। भीड़ का आकलन कर उचित प्रबंधन हो तो न हादसे होंगे और न कोई अनहोनी घटित हो सकेगी।
-शिवजी लाल मीना, जयपुर
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खत्म हो वीआइपी कल्चर
वीआइपी कल्चर के चलते समारोह के दौरान भीड़ प्रबंधन पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जाता है । आजकल धार्मिक स्थलों पर भी वीआइपी दर्शन के लिए विशेष दरवाजे खुलने लगे हैं । आस्था, नैतिकता को भूल धार्मिक स्थलों के प्रबंधक भी भौतिक हो गए हैं और अर्थ अर्जन करने में लगे हुए हैं । ऐसे में सामान्य व गरीब लोगों पर समारोह के प्रबंधक विशेष ध्यान नहीं देते। इसी के परिणामस्वरूप प्राय: गरीब लोग भीड़ के पैरों तले कुचले जाते हैं। भारतीय संस्कृति व लोकतंत्र को देखते हुए धार्मिक स्थलों व अन्य समारोह में भी आम जनता व वीआइपी में भेद नहीं किया जाना चाहिए । धार्मिक स्थलों पर तो वीआइपी दरवाजे हमेशा के लिए बंद कर सभी दर्शनार्थियों को समान समझना चाहिए। तभी आस्था व विश्वास बढ़ेगा और भीड़ पर नियंत्रण संभव हो सकेगा।
-आजाद पूरण सिंह राजावत, जयपुर
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कर्त्तव्य के प्रति लापरवाही
इसका मुख्य कारण प्रबंधन समिति व प्रशासनिक व्यवस्था में समरूपता की कमी है। पूर्वानुमान के अनुरूप दोनों पक्षों की ओर से समुचित व्यवस्था के प्रति जागरूकता का अभाव होता है।अपने कर्त्तव्यों का पालन दोनों पक्ष नहीं करते।
-शिव नारायण आर्य, देवास (म.प्र.)
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प्रबंधकों की जिम्मेदारी तय हो
समारोह में प्रबंधकों व संबंधित अधिकारी की जिम्मेदारी तय नहीं होती है। अव्यवस्था और कुप्रबंधन के लिए संबंधित कमेटी तथा अधिकारियों का समस्त दायित्व सुनिश्चित हो।
-हनुमान पुरोहित, पाली
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न हो आम और खास में भेद
यह वर्तमान में बहुत ही ज्वलंत मुद्दा है। समारोहों के दौरान भीड़ प्रबंधन नहीं होना कर्त्तव्य के प्रति लापरवाही को दर्शाता है। प्रशासन को धार्मिक स्थलों एवं अन्य भीड़भाड़ वाले इलाकों में भीड़ प्रबंधन पर पूर्ण निगरानी रखनी चाहिए। धार्मिक स्थलों पर दर्शन हेतु आम व्यक्ति एवं खास व्यक्ति वाला भेद नहीं होना चाहिए। व्यवस्था बिगड़ने का एक मुख्य कारण यह भी है। ऐसे प्रबंधन में लगे व्यक्तियों को अपने कर्त्तव्य के प्रति पूर्ण निष्ठा रखते हुए लोगों को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए।
-रामसिंह गुर्जर, पलायथा, बारां
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पुलिस अधिकारी की लापरवाही जिम्मेदार
आमतौर पर भीड़ पर तब तक कोई ध्यान नहीं दिया जाता, जब तक कि उसे संभालना मुश्किल न हो। इसलिए जहां तक हो सके, भीड़ को छोटे-छोटे समूहों में विघटित कर देना चाहिए। जहां तक संभव हो भीड़ के संचालन की वीडियो रेकॉर्डिंग होनी चाहिए, जिसे जरूरत पड़ने पर जांच के लिए पेश किया जा सके। दुर्भाग्य से पुलिस नागरिकों का विश्वास अर्जित करने में विफल रही है। अक्सर पुलिस और राजनेताओं की सांठ-गांठ देखने को मिलती है। मात्र तकनीक के बल पर लोगों का विश्वास पुन: हासिल करना मुश्किल है।
-अनोप भाम्बु, जोधपुर
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अपने ही बनाए नियमों की करते हैं अनदेखी
भीड़ प्रबंधन करने वाले भीड़ का हिस्सा बन कर रह जाते हैं। भीड़ प्रबंधन करने वाले लोग वीआइपी लोगों का ध्यान रखने के लिए नियमों को ठेंगा दिखाते हैं। समारोह में व्यवस्था कम लोगों की होती है और अधिक से अधिक जनता को इकट्ठा करने का प्रचार किया जाता है। भीड़ का प्रबंधन करने वाले लोगों पर अन्य कामों की जिम्मेदारी भी सौंपी जाती है, जिससे वे अपना पूरा दायित्व निभा नहीं पाते।
-डॉ. माधव सिंह, श्रीमाधोपुर, सीकर
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सुरक्षा तंत्र बढ़ाया जाए
विशेष अवसरों और समारोह की वजह से जब भीड़ बढ़ती है तो सुरक्षा तंत्र की कमी-सी लगने लगती है। इन्हें समय-समय पर बढ़ाया जाना चाहिए।
-संजय डागा, हातोद
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लोग जल्दबाजी करने लगते हैं
समारोहों, मेलों और त्योहारी मेलों के स्थलों पर भीड़ होना स्वाभाविक है और प्रशासन की ओर से भीड़ प्रबंधन की पूरी व्यवस्था भी आम तौर पर की जाती है। फिर भी भगदड़ मच ही जाती है। सीकर के खाटूश्यामजी मंदिर में हुआ हादसा ताजा उदाहरण है। लोगों में धैर्य नहीं होता, सभी ‘पहले मैं’ के चक्कर में एक-दूसरे पर सवार होकर आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं और भीड़ बेकाबू होकर अनियंत्रित हो जाती है, जिसे नियंत्रित करना प्रबंधकों के वश में नहीं होता। केरल के सबरीमाला मंदिर में हुआ हादसा हो या कुंभ मेले के दौरान इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ हो, सभी हादसे अक्सर सुबह के समय ही होते हैं। आधे से अधिक लोग नींद में अलसाये होते हैं और उस समय प्रबंधक भी नहीं होते हैं। समारोह -स्थलों पर अगर प्रबंधकों की मार्निंग ड्यूटी भी लगा दी जाए तो भी भगदड़ पर काबू पाया जा सकता है। साथ ही, लोगों को भी धैर्य रखना होगा। समारोह स्थल की गाइडलाइन का पालन करेंगे तो ही सभी सुरक्षित रहेंगे।
-विभा गुप्ता, मैंगलोर
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स्व-अनुशासन भी जरूरी
मंदिरों में दर्शन के दौरान लोगों को स्वयं अनुशासन का पालन करना चाहिए और मंदिर के पदाधिकारियों को भी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए विशेष प्रबंध करने चाहिए।
– गजानन पाण्डेय, हैदराबाद
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भीड़ जरूरी है तो भीड़ प्रबंधन भी
समारोहों के दौरान भीड़ जुटना स्वाभाविक है। भीड़, किस प्रयोजन से जुटी है यह बहुत मायने रखता है। मेले में, संगीत समारोहों मे भीड़ अच्छी लगती है तो मंदिरों और चुनावी सभाओं मे जुटने वाली भीड़ परेशानियां पैदा करने वाली होती हैं। इन जगहों पर व्यवस्थाओं के चुस्त-दुरुस्त होने के बावजूद अधिक भीड़ होने पर इंतजाम की पोल खुल ही जाती है। जब कोई बड़े दर्दनाक हादसे हो जाते हैं तब व्यवस्थाओं पर सवाल उठने लगते हैं और गलतियां निकाली जाती हैं। भीड़ की वजह से गत दिनों हुई घटनाओं से सबक लेते हुए समाराहों में उचित प्रबंधन के लिए विचार किया ही जाना चाहिए।
– नरेश कानूनगो, देवास, म.प्र.

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