सरकारी योजनाओं के लिए बाध्य क्यों किए जा रहे निजी अस्पताल
बेहतर तो यह है कि राज्य सरकार राइट टु हेल्थ बिल और चिकित्सा से जुड़े अन्य विषयों पर विशेषज्ञ चिकित्सकों की मदद लेकर महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं की गहन समीक्षा करे जिससे निजी अस्पतालों एवं चिकित्सा संस्थाओं को विश्वास में लिया जा सके।
सरकारी योजनाओं के लिए बाध्य क्यों किए जा रहे निजी अस्पताल
डॉ. सुरेश पांडेय
वरिष्ठ चिकित्सक और कई पुस्तकों के लेखक
इमरजेंसी एवं सामान्य चिकित्सा सेवाओं से जुड़े हुए निजी चिकित्सालय चिकित्सा क्षेत्र की रीढ़ की हड्डी के रूप में कार्य कर रहे हंै। इसके बावजूद चिकित्सा संगठनों एवं निजी अस्पताल संचालकों को विश्वास में लिए बिना जल्दबाजी में ‘राइट टु हेल्थ ‘ बिल विधानसभा में पारित करवाने के प्रयास हो रहे हैं। इससे आम जनता को परेशानी होगी। साथ ही रोगी और चिकित्सक के संबंध कमजोर होंगे एवं युवा चिकित्सकों का राज्य से पलायन होने से चिकित्सा व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। बेहतर तो यह है कि सरकार राइट टु हेल्थ बिल अथवा अन्य विषयों पर विशेषज्ञ चिकित्सकों की सहायता लेकर महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं की गहन समीक्षा करे।
राइट टु हेल्थ बिल में आपातकाल यानी कि मेडिकल इमरजेंसी के दौरान निजी अस्पतालों को मुफ्त इलाज करने के लिए बाध्य किया गया है। निजी अस्पताल के चिकित्सकों के अनुसार मेडिकल इमरजेंसी की परिभाषा और इसके दायरे को तय नहीं किया गया है। राइट टु हेल्थ बिल में प्राधिकरण का गठन प्रस्तावित है। प्राधिकरण में विषय के चिकित्सा विशेषज्ञों को सम्मिलित करना चाहिए। राइट टु हेल्थ बिल में यह भी प्रावधान है कि यदि मरीज को किसी अन्य अस्पताल में रेफर करना है, तो एम्बुलेंस की व्यवस्था करना अनिवार्य है। सवाल यह है कि एम्बुलेंस का खर्र्च कौन वहन करेगा? खर्च का सरकार भुगतान करेगी, तो क्या प्रावधान हंै, यह स्पष्ट किया जाना आवश्यक है।
बिल में निजी अस्पतालों को भी सरकारी योजना के अनुसार सभी बीमारियों का इलाज नि:शुल्क करना है। सरकार अपनी योजनाओं को सरकारी अस्पतालों के जरिये लागू कर सकती है। इसके लिए प्राइवेट अस्पतालों को बाध्य क्यों किया जा रहा है? असल में योजनाओं के पैकेज अस्पताल में इलाज और सुविधाओं के खर्च के मुताबिक नहीं हैं। ऐसी स्थिति में निजी अस्पताल इलाज और ऑपरेशन के खर्च कैसे निकालेंगे? इससे निजी अस्पतालों के ट्रीटमेंट, मेडिकेशन, ऑपरेशन आदि की गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ेगा। बैंक लोन की ईएमआइ, स्टाफ की तनख्वाह, एनओसी की नवीनीकरण फीस और निजी अस्पताल के रख-रखाव पर लाखों रुपए का खर्च होता है। इसके कारण निजी अस्पताल के संचालक अनेक आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हैं। ऐसी स्थिति में अगर राइट टु हेल्थ बिल को निजी अस्पतालों पर जबरन लागू किया गया, तो प्रदेश के अनेक निजी अस्पताल बंद होने की कगार पर पहुंच सकते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि सभी तरह के गंभीर रोगियों का इलाज हर निजी अस्पताल में संभव नहीं है। ऐसे में निजी अस्पताल इन गंभीर रोगियों का उपचार कैसे कर सकेंगे? इसके लिए सरकार को स्पष्ट नियम बनाने चाहिए। दुर्घटना में घायल मरीज को अस्पताल पहुंचाने वालों को ५ हजार रुपए प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है। दूसरी तरफ प्राइवेट अस्पताल वालों को इमरजेंसी में आए रोगी का संपूर्ण इलाज नि:शुल्क करना होगा। ऐसा कैसे संभव होगा?
निस्संदेह नागरिकों को स्वास्थ्य का अधिकार देना एक प्रशंसनीय पहल है। बेहतर तो यह है कि इसके लिए समस्या की जड़ तक पहुंचते हुए एक नया राइट टु हेल्थ बिल इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन एवं अन्य चिकित्सा विशेषज्ञों से परामर्श लेकर ड्राफ्ट किया जाए। राज्य सरकार अपने संसाधनों से नागरिकों को स्वास्थ्य का अधिकार दे। राज्य के प्रत्येक नागरिक को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाना सरकार का नैतिक दायित्व है। देश की जनता सरकार को टैक्स देती है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह टैक्स के पैसों से सभी नागरिकों के लिए गुणवत्तापूर्ण एवं त्वरित स्वास्थ्य सेवा की व्यवस्था करे। इसके लिए सरकार को स्वास्थ्य क्षेत्र का बजट बढ़ाना चाहिए।
भारत सरकार कुल जीडीपी का लगभग 2 प्रतिशत स्वास्थ्य के लिए खर्च करती है। यह स्वास्थ्य बजट श्रीलंका, भूटान, नेपाल जैसे गरीब देशों से भी कम है। विकसित देशों जैसे अमरीका में सरकार अपने नागरिकों के स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष नौ लाख रुपए खर्च करती है, जबकि भारत की सरकार मात्र 5300 रुपए खर्च करती है। यदि सरकार अपने नागरिकों को विकसित देशों जैसी स्वास्थ्य सेवाएं देना चाहती है, तो सबसे पहले उसे बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटित की गई धनराशि को बढ़ाना होगा। बेहतर तो यह है कि राज्य सरकार राइट टु हेल्थ बिल और चिकित्सा से जुड़े अन्य विषयों पर विशेषज्ञ चिकित्सकों की मदद लेकर महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं की गहन समीक्षा करे जिससे निजी अस्पतालों एवं चिकित्सा संस्थाओं को विश्वास में लिया जा सके।
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