जयपुर की ही बात करें तो मैरिज गार्डन संचालकों से व्यावसायिक उपयोग की अनुमति, पार्किंग स्थल व भवन मानचित्र के अनुमोदन के साथ नगर निगमों की ओर से जारी अनापत्ति प्रमाण पत्र मांगा जा रहा है। किसी भी ऐसे स्थल की वैधानिकता सुनिश्चित करना निश्चित ही संबंधित निकायों का काम है। इस तरह की जांच-पड़ताल होनी भी चाहिए। लेकिन ऐन सावों से पहले इस तरह से नोटिस दिए जाने में भ्रष्टाचार की बू आना स्वाभाविक है। सच तो यह भी है कि बढ़ते शहरीकरण के बीच विवाह व दूसरे बड़े सामाजिक कार्यक्रमों के आयोजन के लिए पर्याप्त जगह की उपलब्धता भी मुश्किल भरी हो गई है। आगंतुकों की सुगम पहुंच, पार्किंग सुविधा व उपयुक्त जगह को देखते हुए ही विवाह स्थल बुक किए जाते हैं। आगामी महीनों में सावों की धूम रहेगी। जयपुर में सरकारी स्तर पर बने सामुदायिक केन्द्रों की संख्या नाम मात्र की है। इनमें भी सुविधाओं का अभाव है। ऐसे में महंगे होटल व मैरिज गार्डन बुक करना लोगों की मजबूरी हो जाती है। विवाह स्थलों को नोटिस देने का ध्यान आखिर उस वक्त क्यों नहीं आता जब ये नियमों को ताक पर रखकर आबादी क्षेत्र में पसर जाते हैं।
क्या विवाह स्थलों के लिए पृथक से क्षेत्र तय नहीं होने चाहिए? यह सवाल भी सामने आता है कि साल भर तक इस मामले पर चुप्पी साधे बैठे विभिन्न निकायों ने अचानक सावे शुरू होने के कुछ दिन पहले इस तरह के नोटिस क्यों जारी किए? नगर निगमों और अन्य शहरी निकायों को पहले से इस बात को सुनिश्चित करना चाहिए था कि मैरिज गार्डन नियमों के तहत संचालित हों। अचानक मिलने वाले नोटिसों के पीछे मंशा कुछ और ही नजर आती है।
– शरद शर्मा sharad.sharma@in.patrika.com