Gulab Kothari Article Sharir Hi Brahmand: कर्म भी ब्रह्म का व्यावहारिक रूप है, अत: कर्म का भी प्रत्येक अंग रसमय हो। कर्म आनन्ददायक हो। कर्म का आनन्द ही पूर्ण मनोयोग है, भक्ति है। कर्म की इच्छा मन में उठती है। मन ईश्वर का मन्दिर है। मन सूक्ष्मतर है। यह प्राण और वाक् के बिना नहीं रहता। प्राण सूक्ष्म तथा वाक् स्थूल है। शरीर ही ब्रह्माण्ड शृंखला में सुनें पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख- वाक् ही सृष्टि
जयपुर•Jul 14, 2024 / 02:38 pm•
Gyan Chand Patni
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