आज की परिस्थितियों में मेंटल हेल्थ यानी मानसिक तौर पर स्वस्थ रहना गंभीर मुद्दा है। भारत में इस दिशा पर ज्यादा गहराई से काम कभी नहीं हुआ, लेकिन जिस तरह के दौर से लोग गुजर रहे हैं, इस विषय पर गंभीरता से काम करने की जरूरत है। क्योंकि मानसिक तनाव, अवसाद कब जिंदगी को अपने शिकंजे में घेर लेता है, इसका सामान्य अवस्था में पता नहीं चलता। यदि परेशान व्यक्ति किसी से अपने मन की बात भी करता है तो उसे पागल है क्या, कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहा है, होश में तो है ना, क्या कोई नशा तो नहीं कर रहा जैसे न जाने कितने सवालों के भंवर में छोड़ दिया जाता है।
पहले से चिंताआें में घिरा व्यक्ति स्वयं को अकेला और निराश पाकर मन ही मन में घुटता रहता है और ऐसा कदम उठा लेता है, जो उसके लिए अंतिम विकल्प बन जाता है। मेरे स्वयं के जीवन मे भी दो बार ऐसे क्षण आए जब मैंने संसार को त्यागने का मन बना लिया। जो इंसान चुनौतियों से घबरा जाता है वह किस मायने में इंसान रह पाता है। सिर्फ यह सोचकर हम ऐसा फैसला कर लेते हैं कि जीवन में हमने जो सोचा वह पूरा न हो सका, तो उसके लिए हमने क्या प्रयास किए, उस पर चिंतन-मनन कर लें तो सभी सवालों का जवाब मिल जाएगा।
जीवन में जो हमें स्वीकार नहीं हो सकता या हम जिसकी अपेक्षा नहीं करते उसे दुख मानने लग जाते हैं। मन में आए कुविचारों को झटककर दुख पर विजय पाने की कोशिश करनी चाहिए या फिर उसके साथ जीना सीखना चाहिए। वेदों-पुराणों से पढ़ते-जानते-सुनते आए हैं कि आप सबको अपने कर्मों के कर्ज यहीं चुकाने हैं। जो काम किए उनका हिसाब भी यही देना होगा। अगर किसी से पीड़ा मिली है और वह आपको पीड़ा देकर खुश है तो यह मान लें कि वह आपके जीवन को उसके बिना जीने की शक्ति दे रहा है। अतः अवसाद को हराने के लिए मानसिक ताकत को कमजोर नहीं होने दें। बल्कि उन लोगों के मध्य रहें जिन्हें आपके होने का महत्व हो। निराशा को सकारात्मक सोच से हटाने का प्रयास करें, नहीं हो पाए तो विशेषज्ञ या काउंसलर की मदद लें। मन के भीतर उपजी नकारात्मक सोच से हार मानने के बजाए उसे हराकर जीत की खुशी मनाना होगा। सुकून पाने के लिए जिस काम में मन लगे वह करिए। किसी से होड़ मत करिए। आप जैसे भी हैं, जो भी हैं, अपने आपसे प्यार करें। अपने स्वाभिमान की कीमत समझें। संसार में कई प्राणी हैं जो आपके दिए गए समय और आदर की परवाह नहीं करते हैं, ऐसे में बिना किसी संकोच के उनसे दूरी बना लें। अपने परिवार के सदस्यों से घुलें-मिलें, उनके साथ घनिष्ठता बनाएं। दिल खोलकर उनसे संवाद करें।
स्वार्थ और निस्वार्थ के रिश्तों में फर्क समझें। जो आपसे कटु बोल रहा है तो समझ लीजिए उसका आपसे अभिन्न रिश्ता है। आपका जीवन केवल आपके लिए अमूल्य धरोहर नहीं है, ऐसे कई लोगों के लिए भी है, जो आपकी परवाह करते हैं। ऐसे में इस जीवन की हर हाल में रक्षा करने की जिम्मेदारी को आप स्वयं को समझना होगा। यदि आप सत्य की राह पर चलेंगे। झूठ और आडम्बर के मार्ग को छोड़ेंगे तो जीवन को समर्पण के साथ जीने की पारदर्शिता स्वतः आ जाएगी। फिर आपको कोई भी परिस्थिति अवसाद में नहीं ले जा पाएगी।