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प्रवाह: कब तक बचेंगे मास्टरमाइंड?

Pravah Bhuwanesh Jain column: राजस्थान में भ्रष्टाचार के कीर्तिमान ध्वस्त होते जा रहे हैं। परीक्षा में भ्रष्टाचार, तबादलों में भ्रष्टाचार, ठेकों में भ्रष्टाचार, नियुक्तियों में भ्रष्टाचार… चिंता की बात यह है कि सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार का दावा करने वाले मुख्यमंत्री भी अपने आपको ऐसे मामलों में असहाय पाते हैं। पढ़ें, राजस्थान के हालात की परतें उधेड़ता ‘पत्रिका’ समूह के डिप्टी एडिटर भुवनेश जैन का यह विशेष कॉलम- प्रवाह

Oct 31, 2022 / 02:17 pm

भुवनेश जैन

प्रवाह: कब तक बचेंगे मास्टरमाइंड?

प्रवाह: कब तक बचेंगे मास्टरमाइंड?

प्रवाह (Pravah): लोकतंत्र में सरकारें और भ्रष्टाचार कब पर्यायवाची बन गए, पता ही नहीं चला। देश के दूसरे राज्यों में भी कमोबेश ऐसी स्थिति हो सकती है, पर राजस्थान में तो भ्रष्टाचार के कीर्तिमान ध्वस्त होते जा रहे हैं। परीक्षा में भ्रष्टाचार, तबादलों में भ्रष्टाचार, ठेकों में भ्रष्टाचार, नियुक्तियों में भ्रष्टाचार… यहां तक जन कल्याण की योजनाएं भी आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई हैं। पिछले चार साल में शायद ही कोई दिन ऐसा निकला होगा जब भ्रष्टाचार के मामले सामने नहीं आए होंगे।

ताजा मामला राजस्थान की गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) का है। भरतपुर में सामने आए इस घोटाले में 800 रुपए की दवा की गोली 3 लाख में, डेढ़ सौ रुपए का जैल 14 हजार में दे दिया गया। बिल तक पास हो गए। विभाग की बेशर्मी देखिए… अब कहा जा रहा है कि हमने भुगतान रोक दिया। क्या एक जगह भुगतान रोक देने से सारे पाप धुल गए। क्या पूरे राजस्थान में ऐसा तो नहीं हो रहा… इसकी जांच की। दोषी अस्पताल, बिल पास करने वाले अधिकारियों व अन्य लोगों पर क्या कार्रवाई हुई ?
कार्रवाई हो भी नहीं सकती क्योंकि ऐसे दुस्साहसिक घोटाले करने वालों के ऊपर या तो मंत्री का वरदहस्त होता है या बड़े अफसरों का। भरतपुर के जिस अस्पताल का नाम घोटाले में सामने आ रहा है उसे पहले भी मंत्री की सिफारिश पर जिला प्रशासन ने दस वेंटीलेटर दे दिए थे।

‘पत्रिका’ ने खुलासा किया तब सरकार ने नई नीति जारी की और मशीनों का किराया लिया। इसी अस्पताल के मालिक को शिक्षा संस्थान के लिए जमीन दे दी गई, लेकिन तैयारी कर ली गई पैरामेडिकल संस्थान की। अब फाइल ही ‘ गुम’ कर दी गई है। कर लो क्या कर सकते हो। जब सैंया भए कोतवाल तो, डर काहे का!

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प्रवाह: दो पाटन के बीच

चिंता की बात यह है कि सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार का दावा करने वाले मुख्यमंत्री भी अपने आपको ऐसे मामलों में असहाय पाते हैं। चिकित्सा घोटाला सामने आने पर भुगतान रोक दिया… न किसी पर कार्रवाई, न सजा। ‘रीट ‘ घोटाला हुआ तो छूटभैये कर्मचारियों को पकड़ लिया। मास्टरमाइंड आज भी सत्ता सुख भोग रहे हैं। आरएएस भर्ती घोटाला हो, बजरी घोटाला या ट्रांसपोर्ट घोटाला… हर मामले में लीपा-पोती कर दी जाती है।

भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो सैकड़ों अफसरों- कर्मचारियों को रिश्वत लेते पकड़ता है, पर जिन दोषियों पर वरदहस्त होता है उनके खिलाफ चालान की मंजूरी तक नहीं दी जाती। बल्कि कुछ ही दिनों में फिर फील्ड पोस्टिंग दे दी जाती है जनता को लूटने के लिए। फिर पकड़ने-धकड़ने का दिखावा क्या केवल जनता को मूर्ख बनाने को किया जाता है?

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प्रवाह : आइने का सच

अभी भी समय है, मुख्यमंत्री साहस दिखाते हुए घोटालेबाजों को सजा दिलाने के लिए कदम उठाएं। अगले एक साल में जनता पिछले चार साल के सुख-दुख को एक-एक कर याद करेगी। वे ही चुनावी मुद्दे बनेंगे। जातिगत वोट प्रबंधन के छलावे अब शायद ही चल पाएं। राजनेताओं को इस भुलावे में भी नहीं रहना चाहिए कि जनता की याददाश्त कमजोर होती है। वह सब भूल जाएगी। bhuwan.jain@epatrika.com

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