‘पत्रिका’ ने खुलासा किया तब सरकार ने नई नीति जारी की और मशीनों का किराया लिया। इसी अस्पताल के मालिक को शिक्षा संस्थान के लिए जमीन दे दी गई, लेकिन तैयारी कर ली गई पैरामेडिकल संस्थान की। अब फाइल ही ‘ गुम’ कर दी गई है। कर लो क्या कर सकते हो। जब सैंया भए कोतवाल तो, डर काहे का!
प्रवाह: दो पाटन के बीच
चिंता की बात यह है कि सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार का दावा करने वाले मुख्यमंत्री भी अपने आपको ऐसे मामलों में असहाय पाते हैं। चिकित्सा घोटाला सामने आने पर भुगतान रोक दिया… न किसी पर कार्रवाई, न सजा। ‘रीट ‘ घोटाला हुआ तो छूटभैये कर्मचारियों को पकड़ लिया। मास्टरमाइंड आज भी सत्ता सुख भोग रहे हैं। आरएएस भर्ती घोटाला हो, बजरी घोटाला या ट्रांसपोर्ट घोटाला… हर मामले में लीपा-पोती कर दी जाती है।भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो सैकड़ों अफसरों- कर्मचारियों को रिश्वत लेते पकड़ता है, पर जिन दोषियों पर वरदहस्त होता है उनके खिलाफ चालान की मंजूरी तक नहीं दी जाती। बल्कि कुछ ही दिनों में फिर फील्ड पोस्टिंग दे दी जाती है जनता को लूटने के लिए। फिर पकड़ने-धकड़ने का दिखावा क्या केवल जनता को मूर्ख बनाने को किया जाता है?