scriptक्या राजनीति शिक्षा के विकास में बाधक है? | Is politics and politicization an obstacle to the development of education? | Patrika News
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क्या राजनीति शिक्षा के विकास में बाधक है?

अशोक कुमार, पूर्व कुलपति, गोरखपुर विश्वविद्यालय

जयपुरJan 07, 2025 / 02:05 pm

Hemant Pandey

शिक्षा के संबंध में राजनीति और राजनीतिकरण के बीच अंतर है। कोई भी राजनीति से अछूता नहीं रह सकता और कोई भी संस्था चाहे वह शैक्षणिक हो या सामाजिक या सांस्कृतिक, राजनीति से अलग नहीं हो सकती।

शिक्षा के संबंध में राजनीति और राजनीतिकरण के बीच अंतर है। कोई भी राजनीति से अछूता नहीं रह सकता और कोई भी संस्था चाहे वह शैक्षणिक हो या सामाजिक या सांस्कृतिक, राजनीति से अलग नहीं हो सकती।

शिक्षा और राजनीति का गहरा संबंध होता है ! शिक्षा और राजनीति, दोनों ही समाज के महत्वपूर्ण पहलू हैं। शिक्षा, व्यक्ति को ज्ञान और कौशल प्रदान करती है, जबकि राजनीति, समाज का नेतृत्व करती है। दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। शिक्षा के संबंध में राजनीति और राजनीतिकरण के बीच अंतर है। कोई भी राजनीति से अछूता नहीं रह सकता और कोई भी संस्था चाहे वह शैक्षणिक हो या सामाजिक या सांस्कृतिक, राजनीति से अलग नहीं हो सकती। राजनीति सभी मानवीय गतिविधियों में कार्यरत शक्ति पदानुक्रम को संदर्भित करती है। स्कूल, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय कहाँ स्थापित होगा एवं किस संस्था को आर्थिक सहायता मिलेगी आदि शिक्षा राजनीति है ! शैक्षणिक संस्थानों में सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों के सभी स्तरों पर काम में सत्ता के खेल को समझने के लिए छात्रों और शिक्षकों में राजनीतिक जागरूकता आवश्यक है।

भारत में शिक्षा का राजनीतिकरण एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है। इसे राजनीतिक लाभ के लिए शिक्षा में हेरफेर के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह कई रूप ले सकता है, जिसमें किसी विशेष विचारधारा को बढ़ावा देने, असहमति को शांत करने या शैक्षणिक संस्थानों पर नियंत्रण हासिल करने के लिए शिक्षा का उपयोग शामिल है। भारत में शिक्षा का राजनीतिकरण भाषा के मुद्दे के माध्यम से किया गया है। देश विभिन्न प्रकार की भाषाओं का घर है और इस बात पर लंबे समय से बहस चल रही है कि स्कूलों में शिक्षा का माध्यम कौन सी भाषा होनी चाहिए। कुछ समूहों ने तर्क दिया है कि राष्ट्रीय भाषा, हिंदी, शिक्षा का एकमात्र माध्यम होनी चाहिए, जबकि अन्य ने तर्क दिया है कि क्षेत्रीय भाषाओं को समान दर्जा दिया जाना चाहिए। यह बहस भी गरमा गई है और इसका राजनीतिकरण भी हुआ है और इसका भारत में शिक्षा प्रणाली पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।

इन दो प्रमुख मुद्दों के अलावा, भारत में कई अन्य कारकों, जैसे जाति व्यवस्था, समाज में महिलाओं की भूमिका और देश के आर्थिक विकास के माध्यम से भी शिक्षा का राजनीतिकरण किया गया है। राजनीतिकरण का तात्पर्य संस्थानों के मामलों में राजनीतिक विचारधाराओं के हस्तक्षेप से है, विशेषकर सत्तारूढ़ और प्रमुख राजनीतिक शक्ति द्वारा। इस तरह के किसी भी हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप शासन, पाठ्यक्रम डिजाइन आदि जैसे संस्थानों के मामलों पर एक विशेष राजनीतिक स्थिति को जबरदस्ती थोप दिया जाता है। इसलिए राजनीतिकरण के परिणामस्वरूप विनम्र, गैर-आलोचनात्मक छात्र पैदा होंगे जो पीड़ित होने के डर से शक्तिशाली विचारधाराओं पर सवाल नहीं उठा सकते हैं। शिक्षा का राजनीतिकरण शासक वर्ग के हाथों में संस्थागत मशीनरी के माध्यम से लोगों पर अपने विचार थोपने का एक उपकरण रहा है।
चाहे वह पाठ्य पुस्तक संशोधन हो या वित्त पोषण से संबंधित मामले, शिक्षा का राजनीतिकरण शैक्षिक प्रथाओं के समग्र स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। राजनीति का शिक्षा पर प्रभाव पढ़ता है ! सरकारें अक्सर पाठ्यक्रम में बदलाव करके अपने राजनीतिक विचारों को प्रचारित करती हैं। सरकारें शिक्षण संस्थानों पर नियंत्रण करके कुलपतियों, शिक्षकों की नियुक्ति और शोध के विषयों को प्रभावित करती हैं। सरकारें शिक्षण संस्थानों को फंडिंग देकर उनके कामकाज को प्रभावित करती हैं। राजनीतिक दल अक्सर छात्र संगठनों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। शिक्षा का भी राजनीति पर प्रभाव पड़ता है ! शिक्षित मतदाता अधिक जागरूक होते हैं और वे अपने मतदान का बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग करते हैं। शिक्षित लोग अक्सर अच्छे नेता बनते हैं। शिक्षा, समाज में परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

शिक्षा का राजनीतिकरण तब होता है जब शिक्षा को राजनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह शिक्षा की गुणवत्ता को कम करता है और छात्रों को राजनीतिक मतभेदों में फंसा देता है। शिक्षा का राजनीतिकरण के परिणाम के कारण शैक्षणिक स्वतंत्रता में कमी देखि जाती है ! शिक्षक और छात्र अपने विचार स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने में हिचकिचाते हैं। शिक्षा का ध्यान गुणवत्ता से हटकर राजनीतिक एजेंडे पर केंद्रित हो जाता है। छात्र राजनीतिक दलों के साथ जुड़ जाते हैं और एक-दूसरे के खिलाफ हो जाते हैं। शिक्षा और राजनीति के बीच एक संतुलन बनाए रखना बहुत महत्वपूर्ण है।
शिक्षा को राजनीति से स्वतंत्र रखते हुए, शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण बनाया जा सकता है। राशन यह है की शिक्षा और राजनीति के बीच संतुलन कैसे बनाए रखें ! शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता देनी चाहिए ताकि वे अपने निर्णय स्वयं ले सकें। पाठ्यक्रम में विविधता होनी चाहिए ! पाठ्यक्रम में विभिन्न दृष्टिकोणों को शामिल किया जाना चाहिए। शिक्षकों को अपने विचार स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की अनुमति होनी चाहिए। छात्रों को राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, लेकिन उन्हें राजनीतिक दलों के साथ जुड़ने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए।

शिक्षा को राजनीति से स्वतंत्र रखते हुए, शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण बनाया जा सकता है। शिक्षा और राजनीति के बीच एक संतुलन बनाए रखना, समाज के विकास के लिए आवश्यक है। आने वाले वर्षों में भारत में शिक्षा का राजनीतिकरण एक प्रमुख मुद्दा बने रहने की संभावना है। देश की विविध आबादी और इसका जटिल राजनीतिक परिदृश्य वास्तव में धर्मनिरपेक्ष और समावेशी शिक्षा प्रणाली विकसित करना कठिन बना देगा। हालाँकि, शैक्षिक सुधार को बढ़ावा देने के लिए कई समूह भी काम कर रहे हैं, और उम्मीद है कि भविष्य में शिक्षा के राजनीतिकरण पर काबू पाया जा सकता है।

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