सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) की रिपोर्ट के ये तथ्य तो और भी चिंताजनक हैं जिनमें कहा गया है कि गांबिया, उज्बेकिस्तान व केमरून देशों में बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार बताई गई कफ सिरप में मौजूद टॉक्सिन इन फार्मा कंपनियों की कफ सिरप में भी मौजूद थे। हैरत की बात यह है कि फार्मा कंपनियों की इस लापरवाही का पहले किसी ने संज्ञान तक नहीं लिया। जहर बने ये कफ सिरप देश की धरती से बाहर भी पहुंच गए। जाहिर है जिन पर दवाओं को प्रमाणित करने की जिम्मेदारी थी उन्होंने अपने काम को ठीक ढंग से अंजाम नहीं दिया। दवा उद्योग को पहले ही संदेह की नजर से देखा जाता रहा है। पिछले दिनों ही एक रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा गया था कि भारत में बने कफ सिरप से दो साल में दुनिया भर में 141 लोगों की मौत हो गई। इनमें अफ्रीकी देश गांबिया में मौत के मुंह में समाए 70 बच्चे भी शामिल हैं। ऐसी रिपोर्ट न केवल भारतीय दवा बाजार की बदनामी का कारण बनती है बल्कि दुनिया में भारत की छवि खराब भी करती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन तक ने भारत में बने कफ सिरप पर सवाल उठाए थे। सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो फार्मा कंपनियां विदेशों में भारत की छवि की परवाह नहीं कर रहीं, वे देश में किस तरह की दवाइयां तैयार कर रही होंगी?
सीडीएससीओ ने राज्यों के ड्रग कंट्रोल आयुक्तों को निर्यात के लिए बनने वाले कफ सिरप की जांच करते रहने को कहा है। लेकिन देश में बिकने वाले कफ सिरप के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई है। दवा कारोबार में जरा-सी भी हेराफेरी का खेल लोगों की जान का दुश्मन बन सकता है। ऐसे में न केवल कफ सिरप बल्कि सभी तरह की दवाओं के परीक्षण में किसी तरह की लापरवाही अक्षम्य ही कही जाएगी।