संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था ने भी इस दिशा में कोई ठोस उपाय किए हों, ऐसा कहीं नजर नहीं आया। आज दुनिया दो खेमों में साफ बंटी हुई है। लिहाजा कौन, किसको समझाए? अमरीका, रूस और चीन से लेकर ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी सबके अपने-अपने स्वार्थ। ऐसे में भारत की यह पहल स्वागतयोग्य है। मोदी ने पिछले दिनों रूस और यूक्रेन के आला नेताओं से मुलाकात की तो भारत के शांति मिशन की बात सामने आई। अमरीका समेत तमाम देशों का मानना है कि विश्व में भारत की बात गंभीरता से सुनी जाती है। यूक्रेन में युद्ध के दौरान जब भारतीय छात्रों को वापस लाना था तो मोदी की पहल पर रूस ने एक निश्चित समय के लिए हमले बंद कर दिए थे। हाल ही संयुक्त राष्ट्र ने भी भारत के बढ़ते प्रभाव को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है। भारत के रूस से जितने अच्छे संबंध हैं, अमरीका के साथ भी संबंधों में उतनी ही मधुरता है। ऐसे में भारत के प्रयास रंग लाते हैं तो यह भारत के साथ-साथ दुनिया के लिए सुकून भरी खबर होगी। भीषण युद्ध के दौरान भी भारतीय प्रधानमंत्री ने रूस और यूक्रेन की यात्रा करके यह स्पष्ट किया था कि भारत किसी भी खेमे में खड़े होने की बजाय शांति एवं अपने हितों को प्राथमिकता देगा। अजीत डोभाल की यात्रा ऐसे समय में हो रही है, जब संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के लिए भी दुनियाभर के नेता अमरीका में जुटने वाले हैं।
बात आगे बढ़ी तो उम्मीद की जानी चाहिए कि रूस-यूक्रेन युद्ध खात्मे की शुरुआत हो जाएगी। यह रूस और यूक्रेन की जनता के साथ-साथ मानवता के लिए भी एक खुशखबरी होगी तथा इसका श्रेय भी भारत को अवश्य ही मिलेगा। रूस-यूक्रेन युद्ध के माहौल के बीच यदि शांति की खबर बाहर आती है तो पिछले 11 महीने से इजरायल और फिलीस्तीन के बीच चल रहे युद्ध की समाप्ति के प्रयासों को भी अवश्य ही बल मिलेगा।