Opinion : हटाना होगा बच्चों पर होमवर्क व बस्ते का बोझ
राजस्थान के अलवर की घटना ने स्कूलों में बच्चों पर होमवर्क के बढ़ते दबाव की ओर तो ध्यान दिलाया ही है, पढ़ाई के तौर तरीकों पर भी प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए। एक दस वर्षीय बालक ने सिर्फ इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि वो होमवर्क पूरा नहीं कर पाया था और इसके कारण वो तनाव में […]
राजस्थान के अलवर की घटना ने स्कूलों में बच्चों पर होमवर्क के बढ़ते दबाव की ओर तो ध्यान दिलाया ही है, पढ़ाई के तौर तरीकों पर भी प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए। एक दस वर्षीय बालक ने सिर्फ इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि वो होमवर्क पूरा नहीं कर पाया था और इसके कारण वो तनाव में था। मासूम उम्र तनाव झेल नहीं सकी और उसने वो कदम उठाया जो भयावह था। ये प्रश्र बार बार मन में कौंधता है कि आखिर स्कूलों में होमवर्क का ये सिलसिला क्यों इतना कठोर होता जा रहा है। होमवर्क भी सीमित नहीं है। कहीं भी चले जाएं, हर विषय के शिक्षक रोजाना होमवर्क दे रहे हैं। इतना ही नहीं यदि कुछ छुट्टियां आती हैं तो ये व्यवस्था अपने चरम को पहुंच जाती है। माना बच्चों को पढ़ाई के प्रति सचेत रखने के लिए कुछ उपाय जरूरी हैं लेकिन इनसे इतना तनाव हो जाए कि कोई बच्चा मौत को गले लगाने जैसा कदम उठा ले, तो चिंता होनी ही चाहिए। लंबे समय से यह मांग उठ रही है कि स्कूलों को बैग फ्री किया जाए। छोटी-छोटी कक्षाओं में बच्चों के स्कूल बैग का वजन देख अचरज होता है। प्रकाशकों और स्कूलों के बीच खास समझौते इस वजन को कम करने को तैयार नहीं। लेकिन प्रशासन तो इस पर विचार कर सकता है। पढ़ाई के तौर तरीकों को ज्यादा प्रायोगिक बनाए जाने की आवश्यकता है। ऐसा तरीका जिसमें बच्चा स्कूल समय में ही ज्यादा से ज्यादा सीख सके। उसे होमवर्क का वजन भी अपने मन पर सहन नहीं करना पड़े।
जापान सहित अन्य कई ऐसे देश हैं जहां इस तरह के प्रयोग कारगर साबित हुए हैं। इसके अलावा अभिभावकों की काउंसिलिंग भी बेहद जरूरी हो गई है। ज्यादातर अभिभावक ये मानकर चलते हैं कि स्कूल भेजकर उन्होंने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली। बच्चे को समय देना भी वे जरूरी नहीं समझते। अपना काम खुद से करो- कहकर वे स्वयं को आधुनिक माता-पिता की श्रेणी में खड़े देखना पसंद करते हैं। स्कूल और घर की ये व्यवस्थाएं बाल मन पर बुरा प्रभाव छोड़ती हैं। बच्चा अपनी समस्याएं बताना भी बंद कर देता है। होमवर्क जैसे मामलों से इतर उन घरों में बच्चे ज्यादा प्रसन्न दिखते हैं जहां माता-पिता साथ बैठाकर उन्हें सिखाते हैं। मनोचिकित्सक मानते हैं कि आज के समय में स्कूलों में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को जांचा जाना भी बहुत जरूरी हो गया है। बच्चों में किसी प्रकार की कोई कमी या डिप्रेशन की जानकारी मिलने पर न सिर्फ अभिभावकों बल्कि शिक्षकों को भी सचेत किया जा सकता है। अब वक्त इन तमाम बातों पर चर्चा कर सही उपायों पर अमल करने का है।
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