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Patrika Opinion: आजादी के जश्न के बीच संकल्पित होने का दिन

धर्म-पंथ और जाति, भाषा व क्षेत्र की विविधताओं के बावजूद इस देश के प्रत्येक नागरिक की पहचान यह है कि वह भारतीय है। इन तमाम उपलब्धियों के बीच आज भी कई सवाल खड़े होते हैं।

जयपुरAug 14, 2024 / 11:55 pm

harish Parashar

आजादी किसे अच्छी नहीं लगती? गुलामी की जंजीरों से मुक्त होने का दिन १५ अगस्त भारतवासियों के लिए इसी आजादी के अहसास का दिन है। स्वाधीन भारत के पिछले सालों की उपलब्धियों पर नजर डालें तो लगता है कि हमने उन सब मोर्चों पर तरक्की के कीर्तिमान कायम किए हैं जिनके आधार पर किसी भी देश को मजबूती मिलती है। मूलभूत सुविधाओं के विस्तार से लेकर शिक्षा, चिकित्सा, खेती-किसानी व उद्योग-धंधों तक में खूब नवाचार हुआ है। यही वजह है कि देश लगातार प्रगति की ओर बढ़ा है।
जब देश आजाद हुआ तो हमारे पास न तो पर्याप्त अनाज था और न ही अनाज उत्पादन के लिए पर्याप्त आधारभूत सुविधाएं। आज भारत न केवल अपनी समूची आबादी को खाद्यान्न उपलब्ध कराता है बल्कि खाद्यान्न उत्पादन के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर है। हमारे वैज्ञानिक अंतरिक्ष में और खिलाड़ी ओलंपिक में परचम फहरा रहे हैं। दुनिया के हर कोने में भारतीय अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं। इन तमाम उपलब्धियों के साथ जब हम आजादी का जश्न मनाते हैं तो एक तरह से इस विशाल देश के नागरिक होने के गौरव का उत्सव भी मनाते हैं। धर्म-पंथ और जाति, भाषा व क्षेत्र की विविधताओं के बावजूद इस देश के प्रत्येक नागरिक की पहचान यह है कि वह भारतीय है। इन तमाम उपलब्धियों के बीच आज भी कई सवाल खड़े होते हैं। सवाल ये कि आखिर इतने सालों बाद भी हमारी बड़ी आबादी गरीबी में जीने को क्यों मजबूर है? जिस देश में पिता की संपत्ति में बेटियों को बराबरी का हक मिला वहां बेटियां आखिर क्यों यौन हिंसा का शिकार हो जाती हैं? प्रेम व भाईचारे का दुनिया को संदेश देने वाले इस देश में वैमनस्यता बढ़ाने वाली घटनाएं आज भी क्यों होती हैं? गांवों में सडक़, पानी, बिजली, शिक्षा व चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी क्यों बड़ी आबादी को शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर करती है? और बड़ा सवाल यह भी कि बेरोजगारी व महंगाई जैसी समस्याएं क्यों सुरसा के मुंह की तरह विकराल होती जा रही हैं?
चिंता इस बात की भी कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में जातिवाद की जड़ें गहराने लगी हैं। जाति व धर्म के नाम पर उन्माद कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। यहां तक कि यह उन्माद हमारे यहां चुनाव प्रक्रिया को भी प्रभावित करने लगा है। आजादी का जश्न मनाना भी तब ही सार्थक होगा जब हम एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में अपने दायित्वों का निर्वहन करें और हमारे हुक्मरान जवाबदेह शासन को लेकर संकल्पित हों।

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