scriptनिष्काम कर्म के बल पर हो गए वामन से विराट | On the basis of selfless deeds, a short man gained tall stature | Patrika News
ओपिनियन

निष्काम कर्म के बल पर हो गए वामन से विराट

लाल बहादुर शास्त्री जयंती पर विशेष

Oct 02, 2023 / 11:41 pm

Nitin Kumar

निष्काम कर्म के बल पर हो गए वामन से विराट

निष्काम कर्म के बल पर हो गए वामन से विराट

अजहर हाशमी
कवि और साहित्यकार
………………………….

राष्ट्रीय राजनीति के रेकॉर्ड-रूम में लाल बहादुर शास्त्री साधारण घटना की तरह प्रविष्ट हुए पर प्रशंसनीय पुरुषार्थ से निरंतर निष्काम कर्म करते हुए असाधारण इतिहास के सदृश विशिष्ट हो गए। उन्होंने अपने अनवरत अध्यवसाय से सिद्ध कर दिया कि व्यक्तित्व के मूल्यांकन की कसौटी कद नहीं, कर्म है। लम्बा कद ही अगर मूल्यांकन का मानक होता तो बड़प्पन केवल ‘बलि’ की बपौती बनकर रह जाता। संस्कृति उसकी दैत्य-देह की दुहाई देती, सभ्यता उसके दान दंभ की दुंदुभि बजाती और इतिहास के पन्नों पर वामनावतार का वजूद नहीं होता। वामनावतार की कथा से निष्कर्ष निकलता है कि कद की लघुता नहीं, कर्म की गुरुता महत्त्वपूर्ण है। लाल बहादुर शास्त्री भारतीय राजनीति के वामनावतार ही थे।
लाल बहादुर शास्त्री का घर का नाम ‘नन्हे’ था। गुरु नानक का निम्नलिखित पद उन्होंने अपना जीवन-आदर्श बना लिया था – नानक नन्हे व्है रह्यो जैसी नन्ही दूब। और रूख सूख जाएंगे दूब खूब की खूब।। अर्थात् आदमी को सदैव नन्ही-सी दूब की तरह नन्हा यानी विनम्र रहना चाहिए। क्योंकि सूर्य के प्रचण्ड ताप से अथवा आंधियों की चपेट में आकर विशाल वृक्ष सूख जाते हैं या धराशायी हो जाते हैं परन्तु नन्ही-सी दूब सदाबहार बनी रहती है। वे जुझारू थे, इसलिए जीवट के साथ जेल से जनपथ तक जनकल्याण के लिए जूझते रहे। जीवट उनकी विशेषता थी और जूझना उनकी नियति। उन्होंने समस्याओं के समक्ष समर्पण नहीं किया प्रत्युत साहसपूर्वक सामना करके समाधान खोजे तथा राष्ट्रीय अस्मिता को अक्षुण्ण और सम्मान को सुरक्षित रखा। स्वाभिमान उन्हें कितना प्रिय था, इस संदर्भ में उनके कैशोर्य और तरुणाई की दो घटनाओं का उल्लेख मिलता है। पहली, किशोरावस्था में साथियों के साथ गंगा मेला देखने जाने और वापसी में किराया न होने पर साथियों को रवाना करने के बाद स्वयं तैर कर गंगा पार करने की है तो दूसरी आर्थिक अभाव में बीमारी के चलते पुत्री के निधन की है। उनके लिए देश अग्रगण्य था और देश की तुलना में परिवार नगण्य।
शास्त्रीजी स्वभाव से सरल, व्यवहार से विनम्र और आदत से अहंकार रहित थे। उनके संस्मरण-लेखक सुमंगल प्रकाश ने उल्लेख किया है कि 27 मई 1964 को नेहरूजी के निधन के पश्चात उनके उत्तराधिकार के प्रश्न पर 2 जून 1964 को संसद के सेन्ट्रल हॉल में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष कामराज की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में बैठने की कोई भी जगह खाली न देखकर शास्त्रीजी दरवाजे के पास की सीढ़ी पर बैठ गए थे। यह घटना जहां एक और शास्त्रीजी की निरभिमानता का प्रतीक है वहीं उनकी महानता का परिचायक भी है। वह भी एक संयोग ही था कि उस दिन सेन्ट्रल हॉल की कुर्सियों पर बैठने वाले व्यक्तियों में से किसी को भी प्रधानमंत्री पद प्राप्त नहीं हो सका। पर शास्त्रीजी के नाम पर सर्वसहमति हो गई थी। सेन्ट्रल हॉल के दरवाजे की सीढ़ी पर बैठने वाले शास्त्रीजी केंद्र सरकार के सर्वाधिक शक्तिमान पद पर आसीन हो गए थे। अपने विनम्र व्यवहार और निष्काम कर्म के बल पर वे वामन से विराट हो गए थे।

Hindi News / Prime / Opinion / निष्काम कर्म के बल पर हो गए वामन से विराट

ट्रेंडिंग वीडियो