हवाई यात्रा की तरह अब अंतरिक्ष की सैर भी बन जाएगी आसान!
भारत ने चंद्रमा और मंगल पर स्वदेशी मिशन सफलतापूर्वक भेजा है। ऐसी हालत में वह मानव अंतरिक्ष उड़ानों के क्षेत्र में हो रहे विकास और बढ़ती रुचि को केवल मूकदर्शक बनकर नहीं देख सकता, क्योंकि यह भविष्य की यात्रा का संभाव्य साधन है।
डॉ. एम. अन्नादुरै
पूर्व निदेशक, इसरो सैटेलाइट सेंटर, बेंगलूरु भोजन, आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा और संचार से आगे मानव सभ्यता लगातार आगे बढऩे के लिए सदैव आवागमन के साधनों का उपयोग करती रही है। पिछले कुछ वर्षों से आवागमन के साधन तेजी से उन्नत हुए हैं। भूमि, जल और हवा में चलने वाले यांत्रिक साधनों को समय के साथ अधिक आरामदायक और किफायती बनाया गया है। ऐतिहासिक रूप से भारतीय सभ्यता ऐसे साधन प्रदान करने में अग्रणी रही है।
हालांकि भारत में हवाई यात्रा की शुरुआती रफ्तार थोड़ी धीमी रही, लेकिन हवाई अड्डों की संख्या, हवाई मार्गों और यात्री विमानों में हालिया वृद्धि ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रा को किफायती बना दिया है। यद्यपि यात्री विमानों के निर्माण से लेकर रखरखाव तक भारत की अन्य देशों पर काफी निर्भरता है, जिससे भारी मात्रा में हमारा धन विदेशी मुल्कों को चला जाता है। मुश्किल यह है कि यह स्थिति अभी कम से कम एक दशक तक बनी रह सकती है। इस दौर में भारत उपग्रह बनाने, प्रक्षेपण यान तैयार करने और अपने स्वदेशी रिमोट सेंसिंग, संचार एवं नेविगेशन उपग्रहों के समूह का मालिक है। भारत ने चंद्रमा और मंगल पर स्वदेशी मिशन सफलतापूर्वक भेजा है। ऐसी हालत में वह मानव अंतरिक्ष उड़ानों के क्षेत्र में हो रहे विकास और बढ़ती रुचि को केवल मूकदर्शक बनकर नहीं देख सकता, क्योंकि यह भविष्य की यात्रा का संभाव्य साधन है। अंतरिक्ष कार्यक्रम में कदम रखने के लगभग 60 वर्षों के बाद भारत पुख्ता तौर पर अपने मूल रूप से परिकल्पित अंतरिक्ष में आत्मनिर्भर स्थिति का दावा कर सकता है। भारत ने इस स्थिति को सुदृढ़ करने और बनाए रखने के लिए एक कदम आगे बढ़ते हुए सक्रिय अंतरिक्ष प्रयासों में निजी उद्योगों को शामिल किया है। स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (स्पेडेक्स) के एक भाग के रूप में बेंगलूरु की एक निजी फर्म द्वारा पूरी तरह से निर्मित और परीक्षण किए गए दो उपग्रहों की ताजा खबर परिपक्व भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जीवंत उदाहरण है। अब भारत दूसरे राष्ट्रों के मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशनों और चंद्र अन्वेषणों में नए सिरे से बढ़ी रुचि को नजरअंदाज नहीं कर सकता।
अमरीका और रूस की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा शुरू किए गए मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशनों से आगे अब हम देख रहे हैं कि चीन मानवयुक्त मिशनों के लिए बहुत आक्रामक रूप से आगे बढ़ रहा है। अमरीका में भी स्पैसेक्स, एक्सिओम स्पेस और बोइंग जैसी निजी कंपनियां इस क्षेत्र में बहुत तेजी से घुस चुकी हैं। संयुक्त अरब अमीरात भी पीछे नहीं है। उसने अपने मंगल मिशन ‘होप’ में सफलता के बाद अपने मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशनों के लिए भारी निवेश शुरू कर दिया है। इन सभी मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशनों में हो रही प्रगति प्रारंभिक हवाई यात्रा के दिनों की याद दिलाती है। भविष्य में अंतरिक्ष यात्रा भी हवाई यात्रा की तरह परिवहन समाधान का हिस्सा हो सकती है। ऐसे उभरते हुए परिदृश्य में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को अपनी मूल सोच से आगे बढऩे की आवश्यकता है। इसका अर्थ है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन को मानवयुक्त अंतरिक्ष और चंद्र मिशनों के लिए तकनीकों का अधिग्रहण करने पर काम करना होगा। इसमें भारत सरकार का स्वदेशी तकनीकों के विकास के लिए सकारात्मक समर्थन और प्रोत्साहन आवश्यक होगा, ताकि भारत अपने मानवयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम में आत्मनिर्भर बन सके।
इसरो गगनयान मिशन अब मिशन मोड में प्रवेश कर चुका है और विभिन्न तकनीकों और बुनियादी ढांचे को तैयार कर लिया गया है। कई परीक्षण किए जा रहे हैं। चार भारतीय वायु सेना के पायलटों का चयन किया गया है और उन्हें रूसी मानवयुक्त मिशन प्रशिक्षण सुविधाओं में प्रशिक्षण दिया गया है। इनमें से ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला और ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालकृष्णन नायर को आगे के प्रशिक्षण के लिए ह्यूस्टन, अमरीका भेजा गया है। इनमें से एक पायलट कुछ महीनों में नासा, हंगरी और पोलैंड के एक-एक सदस्य के साथ एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर उड़ान भर सकता है। आशा है भारत भी अंतरिक्ष परिवहन के मामले में विश्व को आश्चर्यचकित कर देगा।
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