यह भूजल पुनर्भरण को प्रभावित करने के अलावा जलीय जानवरों और सूक्ष्म जीवों के आवास को भी नष्ट कर देता है। प्रजनन वाले घडिय़ालों और कछुओं के लिए अवैध रेत खनन सबसे बड़ा खतरा बन रहा है। रेत के किनारों का खनन इनके लिए विनाशकारी है। इसकी वजह यह है कि घडिय़ाल और कछुए अपने अंडे रेत की क्यारियों के नीचे देते हैं, लेकिन अवैध रेत खनन उनके घोंसलों को नष्ट कर देता है। चिंताजनक बात यह है कि तीन राज्यों-उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में चल रहे राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में सबसे अधिक संख्या में पाए जाने वाले घडिय़ाल मानवीय हस्तक्षेप से हार रहे हैं।
बालू की निकासी को लेकर दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि निकाली गई बालू की मात्रा उसकी पुन: पूर्ति दर और नदी की चौड़ाई के अनुपात में होनी चाहिए। खनन के लिए भारी मशीनों के उपयोग की मनाही है और मैनुअल खनन को प्राथमिकता दी गई है। अवैध खनन की जांच के लिए नदी किनारों का सीमांकन और जीपीएस सक्षम वाहन के उपयोग का सुझाव दिया गया है। प्रशासन कई बार अवैध रेत खनन को रोकने के लिए रेत से लदे ट्रक को जब्त करता है और वाहनों के मालिकों पर जुर्माना लगाता है। स्वयं सहायता समूहों की भागीदारी और रेत भंडार के नियमित ऑडिट की भी सिफारिश की गई है। इन दिशानिर्देशों का पालन अमूमन नहीं हो पाता है, क्योंकि प्रवर्तन और निगरानी तंत्र कमजोर है। रेत खनन के लिए पर्यावरण मंजूरी देते समय राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआइएए) द्वारा तय की गई शर्तों की अनुपालन की निगरानी में खनिज संसाधन विभाग की विफलता साफ दिखती है।
पर्यावरण पर रेत खनन गतिविधियों के प्रभावों का आकलन और पर्यावरण प्रबंधन योजनाओं के क्रियान्वयन के प्रति राज्य सरकारों की प्रतिबद्धता नजर नहीं आती। कुछ राज्य निर्माण उद्योग की लगातार बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए चट्टानों और खदान के पत्थरों को तोड़कर उत्पादित रेत जैसे विकल्पों की तलाश कर रहे हैं। अवैध रेत खनन को रोकने के लिए राज्य सरकारों को नई खनिज और रेत नीति बनानी चाहिए। कुछ कंपनियों के एकाधिकार को खत्म करने और ग्रामीण स्तर की समितियों के लिए रोजगार पैदा करने के साथ-साथ रेत खनन के पर्यावरणीय नुकसानों को भी कम करना होगा।