इसके विपरीत, रवांडा और रूस जैसे देशों में, सत्ताधारी नेताओं ने विशाल जीत हासिल की, लेकिन यहां लोकतंत्र की प्रक्रिया अलग थी। रवांडा में पॉल कगामे ने चौथी बार बड़े अंतर के साथ चुनाव जीतकर यह साबित किया कि अफ्रीकी देशों में भी सशक्त नेतृत्व का एक लंबा इतिहास है। वहीं, रूस में व्लादिमीर पुतिन ने 87% वोटों से अपनी पांचवीं जीत दर्ज की, जो कि उनकी मजबूत सत्ता को दर्शाता है।
इस वर्ष दुनिया में नए नेताओं का उभार भी देखने को मिला। बोत्सवाना में डुम्बा बोको ने 58 वर्षों से राज कर रही सत्ताधारी पार्टी को हराकर सत्ता में बदलाव की दिशा तय की। मेक्सिको में, क्लाउडिया शिनबाउम ने ऐतिहासिक जीत के साथ देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त किया। इसी तरह आइसलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका, लिथुआनिया, पुर्तगाल, पनामा, यूनाइटेड किंगडम, सेनेगल, ईरान आदि कई देशों में नए नेतृत्व क उदय हुआ।
भारत, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, यहां 2024 के आम चुनावों के दौरान 65 करोड़ से अधिक नागरिकों ने मतदान किया। मतदाताओं की यह संख्या अमरीका की कुल आबादी से करीब दोगुनी तथा पूरे यूरोप की कुल आबादी से ज्यादा है। इसी साल हुए यूरोपियन यूनियन के चुनाव में जहां करीब 180 मिलियन मतदाताओं ने वोट डाले, वहीं भारत में इससे 3 गुणा से अधिक मतदाताओं ने वोटिंग की। तीन महीने की पोलिंग प्रक्रिया, डेढ़ करोड़ लोगों का पोलिंग स्टाफ, 10 लाख से ज्यादा पोलिंग स्टेशन, 50 लाख से अधिक वोटिंग मशीन, ढाई हजार से ज्यादा पॉलिटिकल पार्टीज़, 8 हज़ार से ज्यादा कैंडिडेट्स के साथ भारत की वाइब्रेंट डेमोक्रेसी ने दुनियाभर को आश्चर्यचकित किया। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार बनी। मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने।
2024 के चुनावों ने यह भी दिखाया कि विश्व भर में लोकतंत्र कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। बांग्लादेश और सीरिया में हुए तख्तापलट तथा उससे पहले वहां के चुनाव को देखें तो नजर आता है कि वहां चुनावी प्रक्रिया दबाव और राजनीतिक हस्तक्षेप का शिकार हुई, जिसके चलते नतीजे जनकांक्षाओं के विपरीत रहे। बेलारूस और अज़रबैजान जैसे देशों में, जहां असल विपक्ष की कोई जगह नहीं थी, वहां चुनावों का उद्देश्य केवल सत्ता का पुनर्निर्माण बनकर रह गया। इसी तरह, वेनेज़ुएला में चुनावी प्रक्रिया के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध हुआ, लेकिन फिर भी निकोलस मादुरो की सरकार ने सत्ता में वापसी की। यह स्थिति न केवल लोकतंत्र के लिए खतरा है, बल्कि ये उदाहरण बताते हैं कि चुनाव भी सत्ता के संरक्षण का उपकरण बनते जा रहे हैं। कुछ देशों में चुनाव केवल एक औपचारिकता बनकर रह गए हैं, जबकि कुछ में विपक्ष और स्वतंत्र मीडिया के अधिकारों को खतरे का सामना करना पड़ा है।