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भारत-अमरीका संबंध : दोनों देशों के मजबूत होते रिश्ते, चुनौतियां भी कम नहीं

उम्मीद है कि दोनों देश मिलकर अपने मतभेदों को कम करने और कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर सुलह की दिशा में काम करेंगे। ध्यान रहे, यह समय रिश्ते को रचनात्मक रूप से आगे ले जाने और इसे अपनी क्षमता तक पहुंचाने के साथ-साथ सहयोग करने के लिए सकारात्मक क्षेत्रों की तलाश करने का है।

Jun 08, 2023 / 07:51 pm

Patrika Desk

भारत-अमरीका संबंध : दोनों देशों के मजबूत होते रिश्ते, चुनौतियां भी कम नहीं

भारत-अमरीका संबंध : दोनों देशों के मजबूत होते रिश्ते, चुनौतियां भी कम नहीं

राजेश मेहता
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ, भू-राजनीति और सार्वजनिक नीति जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित विषयों पर लेखन

आने वाले दो से तीन महीने भारत-अमरीका संबंध के लिए बेहद अहम साबित होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 से 24 जून तक अमरीकी यात्रा पर जाएंगे। सितंबर में अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन की भारत यात्रा को लेकर भी जोरदार तैयारियां चल रही हैं। ये भावी यात्राएं स्वस्थ राजनीतिक संबंधों और भविष्य में संभावित साझेदारी का संकेत हैं। लेकिन भू-राजनीति के कुछ विषय जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन के प्रति भारतीय और अमरीकी दृष्टिकोण के लिहाज से भारत-अमरीका संबंध चुनौतियों का भी सामना कर रहे हैं।
भारत और अमरीका के संबंधों के विस्तार के कई क्षेत्र हैं। भारतीय प्रवासी अमरीकी अर्थव्यवस्था में बहुत योगदान देते रहे हैं। कई अमरीकी कंपनियों के लिए भारतीय तकनीकी विशेषज्ञ अपना कौशल और बुद्धिमत्ता प्रदान कर रहे हैं, जैसे गूगल, माइक्रोसॉफ्ट आदि। एसोसिएशन ऑफ अमरीकन यूनिवर्सिटीज ने भी एक टास्क फोर्स लॉन्च की है, जो अमरीका और भारत के बीच तकनीकी और औद्योगिक सहयोग साझेदारी का विस्तार करेगी। भारत में नव-नियुक्त अमरीकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने भारत और अमरीका के संबंधों को दुनिया के भविष्य के लिए बेहद अहम बताया है। मोदी के जून दौरे के क्रम में भारत और अमरीका महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों (आइसीईटी) पर पहल के तहत जेट इंजन, लंबी दूरी के तोपखाने और पैदल सेना के वाहनों के सह-उत्पादन की संभावनाओं पर चर्चा कर रहे हैं। वर्तमान में केवल चार देश विमानों के लिए जेट इंजन बनाते हैं और अगर इस सौदे की घोषणा की जाती है, तो भारत दुनिया का पांचवां देश होगा। यदि अमरीका जेट इंजन प्रौद्योगिकी को भारत को हस्तांतरित करने के लिए सहमत होता है, तो यह दुनिया को एक बहुत मजबूत संदेश भेजेगा। यह क्षमता चीन के पास भी नहीं है। हाल ही चीन अमरीकी कंपनियों के साथ आक्रामक हो रहा है और अमरीकी कंपनियां चीन से खुद को जोखिम मुक्त करने की योजना बना रही हैं। इस स्थिति में भारत एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। अमरीकी कंपनियां हमारे सस्ते श्रम और स्थान के लाभों को देखते हुए अपने आपूर्ति शृंखला संचालन को चीन से भारत में मोडऩा चाहेंगी। जैसे एपल ने भारत में उत्पादन शुरू कर दिया है और अगले साल तक 20 मिलियन आइफोन 14 का निर्माण कर लेगी। कई अन्य अमरीकी कंपनियां भी भारत को इस नजरिए से देख रही हैं।
अपने ग्राहक आधार का विस्तार करने की इच्छुक अमरीकी कंपनियों के लिए भारत का बढ़ता उपभोक्ता बाजार बेहद आकर्षक है। यही वजह है कि भारत सरकार ने विदेशी निवेश को आकर्षित करने के उद्देश्य से नीतियां भी लागू की हैं। गौरतलब है कि भारत में मूलभूत सुविधाओं की कमी के साथ नियामक और कानूनी प्रणाली चीन की तरह विकसित नहीं है। उम्मीद है कि दोनों नेताओं की आगामी यात्राओं के दौरान इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, अमरीका और भारत की सरकारें घनिष्ठ आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने और निवेश को सुविधाजनक बनाने के लिए कदम उठाएंगी।
दक्षिणी-एशिया पृथ्वी पर एकमात्र स्थान है, जहां परमाणु शक्ति संपन्न तीन देश (भारत, पाकिस्तान और चीन) सीमा विवादों में उलझे हुए हैं। इन सीमा विवादों के कारण भारत को सतर्क रहना पड़ता है। अमरीका के इन तीनों ही देशों के साथ दिलचस्प संबंध हैं। रक्षा सहयोग के मामले में भारत को अमरीका के समर्थन से अत्यधिक लाभ होगा और इससे दोनों देशों के बीच विश्वास बढ़ेगा। मुश्किल यह है कि लंबे समय से चले आ रहे कुछ भू-राजनीतिक मुद्दे दोनों देशों के बीच बातचीत में बाधक बन सकते हैं। पश्चिमी देश रूसी तेल आयात में कटौती कर रूस के राजस्व को सीमित करना चाहते हैं। समस्या है कि भारत को रूसी तेल के आयात में 2022 में काफी वृद्धि हुई है। आंकड़ों से पता चलता है कि अब रूस से आयात सऊदी अरब, इराक, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और अमेरिका से सामूहिक रूप से खरीदे गए तेल के आंकड़े को भी पार कर गया है। भारत अमरीका के साथ अधिक साझेदारी की तलाश करेगा, वह रूस के साथ अपने स्थिर संबंधों को तोडऩे के लिए अनिच्छुक होगा। हाल ही में रूस ने अपनी विदेश नीति में भारत को अपना मुख्य समर्थक चिह्नित किया है।
हाल ही में अमरीकी सामरिक विशेषज्ञ एशले टेलिस ने लिखा है कि अमरीका ने हमेशा से इस उम्मीद के साथ भारत का समर्थन किया है कि चीन के साथ टकराव की स्थिति में वह मदद करेगा। लेकिन, टेलिस का मानना है कि भारत ऐसे संघर्ष में हस्तक्षेप नहीं करेगा और इसकी बजाय अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखेगा। वहीं दूसरी ओर अमरीका हमेशा से पाकिस्तान का समर्थक रहा है। वह मानवाधिकारों और लोकतंत्र से संबंधित मुद्दों को वैश्विक मंचों पर उठाता रहा है।
अमरीका-भारत संबंध आर्थिक गति को बनाए रखने की भारतीय क्षमता, एशिया की तीन परमाणु शक्तियों के बीच संबंध, यूक्रेन-संकट, बौद्धिक-पूंजी की मुक्त गतिशीलता, आपसी विश्वास और प्रौद्योगिकी पर निर्भर करेंगे। उम्मीद है कि दोनों देश मिलकर अपने मतभेदों को कम करने और कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर सुलह की दिशा में काम करेंगे। ध्यान रहे, यह समय रिश्ते को रचनात्मक रूप से आगे ले जाने और इसे अपनी क्षमता तक पहुंचाने के साथ-साथ सहयोग करने के लिए सकारात्मक क्षेत्रों की तलाश करने का है।

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