बाइडन प्रशासन ने कमान संभालते ही डेटा पारदर्शिता की नीति अपनाई और महामारी प्रबंधन स्वास्थ्य विशेषज्ञों को सौंप कर उनके परामर्श पर गौर किया। प्रशासन ने टीकाकरण, संक्रमण और मृत्यु दर के डेटा हाइलाइट किए ताकि सही जानकारी के साथ उचित निर्णय किए जा सकें कि कब और कहां ‘अनलॉक’ करना है। भारत में फरवरी 2021 में मृत्यु दर प्रतिदिन सौ से कम थी। मार्च में संक्रमण के बढ़ते डेटा से जाहिर था कि जिस देश में टीकाकरण नहीं हुआ, वहां नए मामलों का इस प्रकार बढऩा दूसरी लहर की आहट है। इसके बावजूद संकेतों को दरकिनार कर हर जगह बढ़ती भीड़ ही दिखाई दी। कोविड-19 महामारी प्रबंधन का जिम्मा निभाने वाले सार्वजनिक चेहरे थे-राजनेता, नौकरशाह और सेलिब्रिटीज जो तथ्यों से परे सिर्फ जुमलेबाजी में ही लगे रहे। वैज्ञानिकों को अंतिम पंक्ति में ही रखा गया। भारत के गांवों में कोरोना से मौतों की सही संख्या सामने नहीं आ पा रही है, इसलिए ग्रामीण इलाकों में आवश्यकता के अनुरूप आपूर्ति नहीं पहुंच पाती। तथ्यों को नकारने के घातक परिणाम सामने आए हैं।
दरअसल, सार्वजनिक संकट का समाधान सरकारी और निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयासों से ही संभव है। बाइडन प्रशासन ने संघीय रणनीति अपनाते हुए पहले ही दिन डिफेंस प्रोडक्शन एक्ट लागू किया, निजी क्षेत्र को निर्देश दिए कि वैक्सीन अभियान को गति देने के लिए आवश्यक वस्तुओं जैसे कांच की शीशियों और सिरिंज का निर्माण तेज किया जाए। 2020 में ट्रंप प्रशासन द्वारा चलाए गए ‘ऑपरेशन वार्प स्पीड’ से भी कोविड-19 वैक्सीन विकसित करने को गति मिली थी। राज्यों को अपनी-अपनी वैक्सीन रणनीति बनाने की छूट दी गई। संघीय सरकार ने वैज्ञानिकों और निजी क्षेत्र के साथ समन्वय स्थापित कर बल्क में वैक्सीन खरीद की, और ‘हाइब्रिड लीडरशिप’ का उदाहरण पेश किया।
महामारी की रोकथाम के लिए 2020 में भारत के त्वरित प्रयासों की काफी सराहना हुई थी लेकिन लोग कोरोना खत्म हुए बिना ही उस पर जीत पक्की मान बैठे। न तो वैक्सीन बनाने पर निवेश किया गया और न ही इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार पर। वैक्सीन निर्माताओं को वैक्सीन बनाने के लिए मामूली वित्तीय या अनुबंधीय सहायता दी गई। कोरोना की दूसरी लहर के साथ वैक्सीन खरीद का जिम्मा राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों पर छोडऩे के फैसले को बदल केंद्र सरकार का स्वयं वैक्सीन खरीदने और सभी वयस्कों को निशुल्क लगवाने का निर्णय सही दिशा में उठाया गया कदम है।
संकट से निपटने की अमरीकी रणनीति दिखाती है कि तथ्यों व साक्ष्यों पर आधारित नेतृत्व का आंकड़ों, वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के प्रति सम्मान और समन्वय के साथ विज्ञान और आपदा प्रबंधन के प्रयासों के लिए वित्तीय मदद से देश का भाग्य बदला जा सकता है। भारत को भी रणनीति बदलने की जरूरत है। साथ ही जनता और नीति-निर्धारकों को साक्ष्यों से अवगत कराने वाले निर्भीक विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों को शक्तियां और संसाधन मुहैया कराए जाने चाहिए ताकि भारत अंतरराष्ट्रीय मानकों से कहीं पीछे न रहे।