वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की ‘ग्लोबल रोड सेफ्टी स्टेटस रिपोर्ट 2023’ में 178 राष्ट्रों की सड़क सुरक्षा संबंधी विवेचना की गई है, जो 2008 में किए गए सर्वे पर आधारित है। इसमें किए गए सर्वे से भारत और साउथ ईस्ट एशिया के अन्य राष्ट्र स्वयं का आकलन कर सकते हैं। निम्न और मध्यम वर्ग के राष्ट्रों में सड़क दुर्घटना मृत्यु दर प्रति लाख व्यक्ति 21.5 से 19.5 है। ऐसी घातक दुर्घटनाओं का 90% निम्न और मध्यम आय वर्ग के राष्ट्रों में होता है। हम सभी को मालूम है कि यह तथ्य इस रिपोर्ट में भी उजागर होता है कि सड़कों पर सबसे असुरक्षित वर्ग पैदल यात्री, दुपहिया वाहन चालक और साइकिल चलाने वाले हैं। रिपोर्ट के अनुसार असुरक्षित वर्ग के लिए सुरक्षित लेन तथा फुटपाथ होना जरूरी है। रिपोर्ट का निष्कर्ष यही है कि भारत और अन्य राष्ट्रों में सड़क दुर्घटनाओं का उच्च स्थान होने का कारण है स्पष्ट नीति का अभाव, नियम पालन के प्रति समुचित नियमों का लागू न होना, और साथ ही राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव।
निम्न और मध्यम आय वर्ग के देशों में विभिन्न प्रकार के वाहन सड़कों पर होते हैं, अतः कारों और अन्य वाहनों की गति सीमा धीमी होनी चाहिए। यह एक बहुत बड़ा मुद्दा है, जिसे ध्यान में रखना पड़ेगा, और सभी राष्ट्रों को ट्रैफिक धीमा करने वाले उपाय जैसे रंबल स्ट्रिप, सर्कल्स और इंजीनियरिंग के अन्य प्रभावी उपायों को लागू करना बहुत जरूरी है। रिपोर्ट में यह भी उजागर होता है कि सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाना और उनकी गुणवत्ता को बेहतर करना अत्यधिक आवश्यक है, ताकि सड़कों पर व्यक्तिगत वाहनों की संख्या कम हो। ये सभी तथ्य हमारी आंखों के सामने हैं, किंतु कोविड से भी बड़ी हर साल होने वाली सड़क पर बढ़ती मृत्यु की महामारी के प्रति हमारे देश के कर्णधार तथा आम नागरिक प्रभावी ढंग से नहीं सोचते।
जिला, संभागीय और राज्य स्तर की रिपोर्ट सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय और सुप्रीम कोर्ट रोड सेफ्टी कमेटी को नियमित रूप से भेजी जाती हैं। यह रिपोर्ट एक खानापूर्ति होती हैं और वास्तव में उनका जमीनी सत्य और तथ्य कुछ और ही कहता है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां सामान्य सड़कों का अभाव, परिवहन बसों का न चलना, सड़कों का रखरखाव और गति सीमा निर्धारण जैसे साधारणतम सुविधाओं का भी पूर्ण अभाव दिखाई देता है। गांव की सड़कों पर ट्रैफिक नियमों की अनुपालना का पूरा अभाव रहता है। शहरी क्षेत्रों में भी चुनी हुई वीआईपी सड़कों को हर तरह से चमका दिया जाता है ताकि जो दिखता है वही सामान्य सत्य माना जाए। पर यह चमक किसके लिए? क्या इससे प्रतिदिन हो रही मृत्यु की संख्या कम होगी?
एक और आश्चर्यजनक फिर भी स्वीकृत तथ्य यह है कि निम्न और मध्यम वर्ग के देशों और विशेषकर हमारे देश में सड़कों पर कार चालकों को ज्यादा महत्व दिया जाता है। यह बात अलग है कि यहां सड़कें बनाने में इंडियन रोड कांग्रेस के मानकों का ध्यान नहीं रखा जाता। सड़कें अमीरी के सूचक कार मालिकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए बनाई जाती हैं। भारत में 75 प्रतिशत लोग दुपहिया वाहन चलाते हैं और रजिस्टर्ड कारों की संख्या हमारे देश में मात्र 13 प्रतिशत ही है, जैसा कि स्टैटिस्टा डॉट कॉम के 2020 के तथ्य बताते हैं। फुटपाथों का न होना, उनका दुरुपयोग होना, फुटपाथों पर अतिक्रमण, पैदल यात्री और साइकिल चालकों के लिए अलग लेन का न होना आदि इस भेदभावपूर्ण नीति के सूचक हैं। सरकारी व्यवस्था गरीबों की सुविधा के प्रति सजग नहीं है।
देश के सभी राज्यों में, कुछ राज्यों को छोड़कर, समुचित पब्लिक ट्रांसपोर्ट उपलब्ध नहीं है। प्राइवेट बसों के भरोसे बहुत दुरूह तरीके से सवारियां यात्रा करती हैं। जो यात्री सक्षम हैं, वह कारों और टैक्सियों का उपयोग करते हैं। हमारे देश में समुद्र के नीचे बनी चमत्कारी टनल का परिवहन मार्ग तो बहुत चर्चित है, किंतु आज आम आदमी के लिए अति आवश्यक, सहज, सुविधाजनक और सस्ते पब्लिक ट्रांसपोर्ट, जिसमें मेट्रो नेटवर्क और बसें शामिल हैं, के बारे में सरकार नहीं सोचती। स्पष्ट है कि हमारे जैसे देशों को अत्याधुनिक परिवहन तंत्र की नहीं, बल्कि आम आदमी की जेब के अनुसार परिवहन की आवश्यकता है। इस दृष्टि से मेट्रो और बसों का अच्छा नेटवर्क सबसे कारगर रहेगा। किन्तु हमारे देश के ट्रैफिक प्लानिंग के लिए जिम्मेदार विभाग, लोक निर्माण है, जो शहरी, ग्रामीण और स्टेट हाईवे बनाता है, पुलिस विभाग जो ट्रैफिक मैनेजमेंट के लिए जिम्मेदार होता है और स्वास्थ्य विभाग जो दुर्घटनाग्रस्त लोगों की देखभाल करता है, परस्पर सामंजस्य से काम नहीं करते हैं। एक विभाग के काम की जानकारी और आवश्यकता दूसरे विभाग से नहीं मिलती है। इसका बहुत बड़ा उदाहरण है हमारे देश की आपातकालीन व्यवस्था, जो सुचारु रूप से नहीं चलती है। इमरजेंसी रिस्पॉन्स और ट्रॉमा सेंटर की स्थिति कागजों पर अच्छी दिखाई जाती है, किंतु यह विषय एक अच्छे सर्वे की दरकार रखता है। उपलब्ध डेटा के अनुसार, अगर दुर्घटना के बाद एक घंटे के गोल्डन ऑवर में व्यक्ति को अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो दुर्घटना में 50 प्रतिशत कमी आ सकती है।
अपने देश के सम्पूर्ण सड़क और ट्रैफिक प्रबंधन के परिदृश्य को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, भारत सरकार (अनुसंधान विंग) की रिपोर्ट भारत में सड़क दुर्घटनाएं 2022 के माध्यम से समझा जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, दुर्घटनाओं की संख्या के मामले में उदाहरण स्वरूप देश के कई राज्यों में दुर्घटना का आंकड़ा काफी ऊंचाहै, जैसे कि तमिलनाडु में 13.9%, मध्य प्रदेश में 11.8%, केरल में 9.5%, उत्तर प्रदेश में 11.8% और कर्नाटक में 8.6% दुर्घटनाएँ हुईं। रिपोर्ट के अनुसार, देश के दस राज्यों में 2022 के दौरान कुल सड़क दुर्घटनाओं में 77.9% की संयुक्त हिस्सेदारी थी। हालांकि, उत्तर पूर्वी प्रदेशों में तुलनात्मक रूप से दुर्घटनाएं कम दर्ज हुईं, फिर भी असम में 2018 और 2022 के दौरान सबसे अधिक दुर्घटनाएँ दर्ज की गईं। 575 दुर्घटनाओं के साथ त्रिपुरा दूसरे स्थान पर था, उसके बाद मणिपुर 508 पर था। मेघालय, मिजोरम, सिक्किम और त्रिपुरा में 2021 की तुलना में 2022 में दुर्घटनाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। प्रायः राज्य कोशिश कर रहे हैं कि चुनी हुई बेस्ट प्रैक्टिसेज को अपना कर सड़क दुर्घटनाओं में कमी ला सकें।
सड़कों पर बढ़ रही वाहनों की भीड़ न केवल सामान्य नागरिक के जीवन को दुश्वार करती जा रही है, यह स्थिति पर्यावरण, स्वास्थ्य और जीवित रहने के सामान्य अधिकार के विरुद्ध है। हमारे देश में प्रति दिन 18 वर्ष के 26 युवा, 18 से 25 आयु वर्ग के 91 युवा, और 25 से 35 वर्ष के 117 युवा मृत्यु को प्राप्त होते हैं। हमारे अपने प्रदेश राजस्थान में वर्ष 2023 में 17,762 मृत्यु और 24,614 दुर्घटनाएँ हुईं। इस तरह प्रदेश में करीब 6% दुर्घटनाएं बढ़ी। स्पष्ट है कि अन्य प्रदेशों की तरह राजस्थान में भी सड़क सुरक्षा को लेकर जवाबदेही का अभाव है। हर वर्ष कितने ही संभावनाओं से युक्त नवयुवक भारत की प्रगति में अपनी भागीदारी दर्ज ही नहीं करा पाते हैं। युवा भारत का ये आंकड़ा हमें यह सोचने को बाध्य करता है कि इन लोगों के परिवार का क्या होता है? तो क्या हम इंतजार करते रहें कि हमारे देश का हर नगर दिल्ली जैसी जीवन प्रणाली में शामिल हो जाए, जहां सांस लेना भी दुश्वार हो चला है? क्या अच्छा ट्रैफिक मैनेजमेंट और मोटर व्हीकल एक्ट 2019 के नए और अच्छे नियमों को लागू करना इतना मुश्किल है? हर बात में भ्रष्ट तंत्र की बात करना हम सभी नागरिकों के लिए आम है। सड़क दुर्घटना मृत्यु दर हमें क्यों कर परेशान नहीं करती, यह बड़ी आश्चर्य की बात है। नागरिक के रूप में हम हर सुविधा की जरूरत को सरकार के खाते में डाल कर निश्चिंत हो जाते हैं, जबकि हम सभी सड़क उपयोगकर्ता हैं। सड़क के नियमों के पालन करना क्या हमारा कर्तव्य नहीं है? परिवहन एक साझी जिम्मेदारी है, जिसमें सड़क उपयोगकर्ता और सरकार दोनों की जिम्मेदारी शामिल है। ऐसा क्यों नहीं होता, यह एक यक्ष प्रश्न की तरह है जो सदा हमारे सामने खड़ा रहता है।