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सड़क दुर्घटनाओं में भारत की हिस्सेदारी, एक डरावना सच

राघवेंद्र कुमार, हेलमेट मैन ऑफ इंडिया
अब तक 65,000 से अधिक हेलमेट बांट चुके हैं

जयपुरDec 16, 2024 / 01:46 pm

Hemant Pandey

परिवहन मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लगभग 66% लोग युवा होते हैं, जिनकी उम्र 18-45 वर्ष के बीच होती है। इनमें से अधिकांश के कंधों पर पूरे परिवार का जिम्मा होता है। यह न केवल दुर्घटनाओं की गंभीरता को बढ़ाता है, बल्कि मृत्यु दर को भी प्रभावित करता है। इसके बावजूद, सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कई अहम कदम उठाए गए हैं।

परिवहन मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लगभग 66% लोग युवा होते हैं, जिनकी उम्र 18-45 वर्ष के बीच होती है। इनमें से अधिकांश के कंधों पर पूरे परिवार का जिम्मा होता है। यह न केवल दुर्घटनाओं की गंभीरता को बढ़ाता है, बल्कि मृत्यु दर को भी प्रभावित करता है। इसके बावजूद, सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कई अहम कदम उठाए गए हैं।

सड़क सुरक्षा का मुद्दा न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुका है। शहरीकरण की तेजी, वाहनों की बढ़ती संख्या और यातायात प्रबंधन में कमजोरी ने सड़क दुर्घटनाओं को भयावह रूप में बदल दिया है। भारत, जो अपने विशाल सड़क नेटवर्क के लिए जाना जाता है, दुर्भाग्यवश सड़क दुर्घटनाओं और उनसे होने वाली मौतों में भी अग्रणी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के अनुसार, हर साल दुनिया भर में सड़क दुर्घटनाओं के कारण लगभग 13 लाख लोग अपनी जान गंवाते हैं, इनमें से करीब 11% मौतें अकेले भारत में होती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट बताती है कि भारत में हर साल लगभग 1.5 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं। इसका मतलब यह है कि हर दिन औसतन 400 लोग सड़क हादसों में अपनी जान गंवाते हैं। विश्व बैंक की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में दुनिया के कुल वाहनों का केवल 1% हिस्सा है, लेकिन सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली कुल मौतों का 11% और कुल सड़क दुर्घटनाओं का 6% भारत में होता है।
भारत में सड़क दुर्घटनाओं के प्रमुख कारणों में लेन अनुशासन की कमी, तेज़ गति, नशे में गाड़ी चलाना, हेलमेट या सीट बेल्ट का उपयोग न करना और खराब सड़कें शामिल हैं। इनमें से सबसे बड़ा कारण लेन अनुशासन का न होना है। इसका जिक्र हाल में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी संसद में किया था. हमें समझना चाहिए कि हमारी एक गलती या लापरवाही पूरे परिवार पर भारी पड़ सकती है। परिवहन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, सड़क दुर्घटनाओं का लगभग 70% हिस्सा इसी कारण से होता है। इसके अलावा, तेज गति और शराब के सेवन के कारण होने वाली दुर्घटनाएं कुल हादसों का 40% तक होती हैं। हेलमेट और सीट बेल्ट जैसे सुरक्षा उपकरणों का उपयोग भी भारत में बहुत कम है। परिवहन मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लगभग 66% लोग युवा होते हैं, जिनकी उम्र 18-45 वर्ष के बीच होती है। इनमें से अधिकांश के कंधों पर पूरे परिवार का जिम्मा होता है। यह न केवल दुर्घटनाओं की गंभीरता को बढ़ाता है, बल्कि मृत्यु दर को भी प्रभावित करता है। इसके बावजूद, सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कई अहम कदम उठाए गए हैं।
भारत सरकार ने 2019 में मोटर वाहन संशोधन अधिनियम लागू किया, जिसमें यातायात नियमों के उल्लंघन के लिए भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया। इसके अलावा, सड़क सुरक्षा सप्ताह और सड़क सुरक्षा माह जैसे अभियान चलाए गए, ताकि लोगों को सड़क सुरक्षा के महत्व के प्रति जागरूक किया जा सके। सरकार ने सड़क पर सीसीटीवी कैमरों का उपयोग बढ़ाने और दुर्घटनाओं के हॉटस्पॉट्स की पहचान कर उन्हें सुधारने पर भी ध्यान केंद्रित किया है। सड़क सुरक्षा में व्यक्तिगत योगदान भी महत्वपूर्ण है। मेरे जैसे कई लोग हैं जो सड़क हादसों में कमी लाने के लिए प्रयासरत हैं। मैंने अब तक करीब 65 हजार हेलमेट वितरित किए हैं। इसका कारण यह है कि मोटरसाइकिल दुर्घटनाओं में अधिकांश मौतें सिर पर चोट लगने के कारण होती हैं और एक अच्छे गुणवत्ता वाले हेलमेट का उपयोग करके मौत के खतरे को 70% तक कम किया जा सकता है। मेरा मानना है कि हर व्यक्ति को सड़क पर सुरक्षित रहना चाहिए और इसके लिए हेलमेट पहनना सबसे सरल और प्रभावी तरीका है। इस पहल ने न केवल लोगों को जागरूक किया, बल्कि 36 लोगों की जान भी बचाई है। किशोरों और कम उम्र के बच्चों की भी मृत्यु मोटरसाइकिल पर अधिक होती है। इसे ध्यान में रखते हुए, मैंने अभियान चलाया था और 2019 में इसके बाद 4 साल तक के बच्चे को हेलमेट लगाने का नियम बनाया गया।
सड़क सुरक्षा में सुधार के लिए सख्त कानूनों और उनके प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता है। इसके साथ ही, सड़क डिज़ाइन में सुधार, ब्लाइंड स्पॉट्स और गड्ढों को ठीक करना, और बेहतर यातायात प्रबंधन प्रणाली लागू करना भी जरूरी है। युवाओं और बच्चों को यातायात नियमों के प्रति जागरूक करने के लिए शिक्षा और जागरूकता अभियानों की शुरुआत करनी चाहिए। भारत को सड़क सुरक्षा के क्षेत्र में वैश्विक दृष्टिकोण से सीखने की आवश्यकता है। स्वीडन का ‘विजन जीरो’ कार्यक्रम और जापान के सख्त यातायात नियम इसके बेहतरीन उदाहरण हैं। ये दिखाते हैं कि समग्र दृष्टिकोण अपनाकर सड़क दुर्घटनाओं को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।
हम दुनियाभर की सुविधाएं अपने यहां चाहते हैं, लेकिन उन सुविधाओं के पाने के पीछे का प्रयास नहीं करना चाहते हैं। आंकड़े यह भी बताते हैं कि हमारे देश में करीब 80% हेलमेट की गुणवत्ता बहुत खराब होती है। हम केवल पुलिस चालान से बचाने के लिए हेलमेट पहनते हैं, जबकि विदेशों में साइकिल चलाने पर भी हेलमेट लगाना अनिवार्य और वहां के लोग इसका पालन बिना पुलिस की मौजूदगी में भी करते हैं। सड़क सुरक्षा में सुधार करना न केवल सरकार की जिम्मेदारी है, बल्कि इसमें नागरिकों की भागीदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। जब तक हम सभी सड़क सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देंगे, तब तक दुर्घटनाओं में कमी लाना मुश्किल होगा। यह समय है कि हम सड़क सुरक्षा को लेकर अपनी जिम्मेदारी समझें और इस दिशा में सक्रिय कदम उठाएं। मेरे जैसे और भी लोग इस अभियान में अपना योगदान दे सकते हैं। इससे हम अधिक से अधिक लोगों को सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूक और प्रेरित कर सकेंगे। एक दिन इससे बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। भारत को सड़क सुरक्षा के वैश्विक मानकों के अनुरूप लाने के लिए समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। शिक्षा, तकनीकी सुधार और सामाजिक जागरूकता के माध्यम से यह संभव है कि हम सड़क दुर्घटनाओं की संख्या को कम कर सकें और अपने देश को सुरक्षित बना सकें। सड़क सुरक्षा केवल एक मुद्दा नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है।

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