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स्तुत्य संकल्प

Gulab Kothari Article : जयपुर की धरोहर में प्राण फूंकने का प्रश्न है। जो सांसद, विधायक, पार्षद आदि वर्षों से जनता को अंगूठा दिखा रहे हैं, उन्हें भी अपने क्षेत्र के नागरिकों के साथ यथा-योग्य आहुतियां देनी हैं। रामगढ़ बांध को पुनर्जीवित करने की मुख्यमंत्री की घोषणा पर केंद्रित पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख – स्तुत्य संकल्प

Aug 19, 2023 / 01:45 pm

Gulab Kothari

Gulab Kothari Article 19 August 2023 Announcement to revive Ramgarh Dam of Jaipur is a praise resolution

Gulab Kothari Article 19 August 2023 Announcement to revive Ramgarh Dam of Jaipur is a praise resolution

Gulab Kothari Article : बधाई, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को! विधायिका और कार्यपालिका की विनाशकारी मंशा के विरुद्ध जयपुर के रामगढ़ बांध को पुनर्जीवित करने की घोषणा करने के लिए। स्वतंत्रता दिवस पर की गई यह घोषणा राज्य ही नहीं, देश के लिए भी एक नजीर साबित होगी। बधाई, जयपुर के नागरिकों! आपकी दुआओं का असर सामने आया।आभार मुख्यमंत्री का जिन्होंने राजस्थान पत्रिका के वर्ष 2011 में चलाए गए समाचार अभियान ‘मर गया रामगढ़’ में उठाए मुद्दों का संज्ञान लिया और वर्ष 2020 के अन्त में मेरे द्वारा पत्र लिखकर किए गए अनुरोध को स्वीकार किया। जयपुर शहर की पीड़ा समझकर बांध के पुनर्भरण की घोषणा ‘अमृत उत्सव’ का वरदान ही कहा जाएगा।


हमारे यहां हर पांच साल में सरकारें बदलती रहीं, सांसद- विधायक बदलते रहे, सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालय के आदेश जारी होते रहे, वरिष्ठ अधिकारियों को कोर्ट में बुलाकर फटकारते रहे, राजस्व मण्डल के पास आंवटन निरस्त करने के मामले अटके रहे। आज तक सैंकड़ों मामले अटके हैं। किसी नेता या ग्रामवासी को दूसरों की चिन्ता नहीं है। उनकी बला से जयपुर मर जाए, उनका गांव जिन्दा रहना चाहिए।

क्या वे नहीं जानते कि रामगढ़ के भराव क्षेत्र में 400 से अधिक एनिकट हैं। एक बार तो बाढ़ में सैंकड़ों गांव डूब चुके हैं। आज भी 70-80 किलोमीटर परिधि तक के कुंए, बांध सूखे पड़े हैं, खेत उजड़ गए और ग्रामीण मजदूरी करने को विवश हो गए। अंग्रेजों ने तो बटन दबाकर जयपुर की सप्लाई शुरू की थी, हमारे अधिकारियों ने गला दबा दिया। जिस बांध के पानी में 1982 के एशियाई खेलों (एशियाड) की नौकायन स्पर्धाएं हुई थीं उस पानी को हमारे अफसरों ने कुर्सी के मद में डूबकर भ्रष्टाचार में बहा दिया।

हम लोकतंत्र में जी रहे हैं। न्यायपालिका अपने ही फैसलों पर मौन है। चाहे उन्हें लागू करे, या नहीं करे। न्यायालयों में झूठी रिपोर्टें पेश होती हैं, अधिकारी झूठी कसमें खाते हैं। कोर्ट के आदेश के बावजूद अतिक्रमणों को चिन्हित करने के ‘ट्रेसमैप’ नहीं बने। मिट्टी खाली करने की बात ही नहीं, तब ढलान कहां बचेगा? मिट्टी निकालने का खर्च 2000 करोड़ रुपए बताकर फाइल बन्द कर दी। आप तो किसानों को मिट्टी ले जाने की छूट दे दो, खाली कर देंगे। तब बजरी का अवैध धन्धा भी बन्द हो जाएगा।

मुख्यमंत्री जी को अपने ही अधिकारियों की झूठ, हठधर्मिता, भ्रष्टाचार और क्षुद्र स्वार्थों से निपटना पड़ेगा। न्यायालय कुछ नहीं कर पाएगा। झालाना बाईपास उदाहरण है। आधी सड़क पर (100 फीट) पक्के निर्माण हो चुके। न्यायालय में रिपोर्टें पहुंची, कमेटियों ने जांच रिपोर्टें भी दी, सभी फाइलों में दर्ज हैं।

रामगढ़ के भराव क्षेत्र में पक्के निर्माण भी हैं। निम्स जैसी संस्थाओं के बड़े भवन बन गए हैं। पानी का प्रवाह रोकने के लिए दो-ढाई फीट ऊंची पक्की सड़कें तक बना डाली। इनको हटाने के लिए कोर्ट के आदेश भी कई हैं, इनकी झूठी रिपोर्टें भी हैं। क्या आप किसी अधिकारी को सजा दे सकेंगे?

‘भय बिनु होइ न प्रीत।’ तत्कालीन मुख्य सचिव तक व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में आश्वासन देकर आए थे। बाहर आकर भूल गए। आज तो वे भी चले गए, तब के न्यायाधीश भी यहां नहीं हैं। जबकि सच्चाई यह भी है कि हाईकोर्ट ने राजस्व अधिनियम 1959 में संशोधन कर कानून बना दिया था कि राज्यों के सभी बांधों और भराव क्षेत्रों की वर्ष 1957 की स्थिति को बहाल किया जाए।

मुख्यमंत्री को लगा होगा कि उनके घोषणा करते ही काम शुरू हो जाएगा। क्या बिल्ली, छींके की रखवाली करेगी? आपको बता दूं कि बांध का हत्यारा कोई एक विभाग नहीं है। जल संसाधन और जलदाय विभाग तो है ही, जिला प्रशासन, जेडीए, सार्वजनिक निर्माण, भूजल, वन,जल एवं स्वच्छता सहयोग संगठन जैसे कई विभाग बन्दूकें ताने बैठे हैं। इनके घोटाले किसने पकड़े? कोर्ट को नहीं बता सके कि कथित सघन वृक्षारोपण कहां गया, 88 किलोमीटर के स्थान पर 17 किलोमीटर चैनल ही क्यों बनाकर छोड़ दी? राजस्व मंडल ने अभी तक 780 आंवटनों को निरस्त कहां किया?

मान्यवर! हमारे कानून भी बाबा आदम के जमाने के हैं। गांव का तालाब पंचायत का, पानी जलदाय विभाग का, खेती राजस्व विभाग की और मौज भ्रष्टाचारियों की! मंत्रियों की समझ से तो आप परिचित हैं ही। आपको सबसे पहले विभिन्न न्यायालयों के आदेशों की समीक्षा करनी चाहिए। अलग-अलग अधिकारियों को समयबद्ध काम सौंपना होगा। काम पूरा नहीं करने की स्थिति में सजा भी साथ ही सुना देनी होगी।

वर्ष 1959 के कानून की अनुपालना के आदेश सभी जिला-तहसीलों को साथ में ही भेज देने चाहिए। सभी सम्बन्धित विभागों के विशेष अधिकारियों की एक समिति मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनें जो आपको साप्ताहिक प्रगति से अवगत कराएं। पूरे प्रोजेक्ट का जिम्मा भी अलग से वरिष्ठ अधिकारी को समय सीमा के साथ सौंपा जाए।

नोडल अधिकारी सभी सम्बन्धित तहसीलों के कार्यों का स्वयं अवलोकन करें। अब तक कितनी झूठी रिपोर्टें कोर्ट में पेश की गईं, उन्हें भी सामने लाएं। बांध की मिट्टी हटाने के लिए किसानों को मुफ्त में ट्रक भर कर ले जाने की छूट दें। 2000 हजार करोड़ रुपए बच जाएंगे। यह अवश्य निश्चित कर लें कि बजरी माफिया इस काम में बाधा न बन पाए।

मुख्यमंत्री की इस स्तुत्य घोषणा को हमें भी मूर्त रूप देना है। जयपुर की धरोहर में प्राण फूंकने का प्रश्न है। जो सांसद, विधायक, पार्षद आदि वर्षों से जनता को अंगूठा दिखा रहे हैं, उन्हें भी अपने क्षेत्र के नागरिकों के साथ यथा-योग्य आहुतियां देनी हैं।

सांसद दीया कुमारी जी के पुरखों ने यह बांध बनवाया था इसलिए उन्हें विशेष रूप से जनता का नेतृत्व करना चाहिए। सरकार के काम में कैसे भूमिका निभाई जाए, विचार करना है। यह कार्य राजनीति से ऊपर है, बड़ा भी है, जयपुर की कलंगी है। पत्रिका का अभियान तब तक जारी रहेगा, जब तक शहरवासी बांध की चलती चादर में स्नान नहीं कर लेंगे! रामगढ़ जी उठेगा!

इतना ही नहीं, राज्य के 79 बांधों को एक-दूसरे से जोडऩे की खबर से तो लगता है कि राजस्थान की लॉटरी खुली है। वर्षों से नदियों को जोडऩे की चर्चा सुन रहे हैं, किन्तु इस खबर ने कुछ समीकरण बदले हैं। पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के माध्यम से नदियों को जोडऩा एक बात है, बांधों को जोडऩा बड़ी बात।

पिछले 75 वर्षों में हम लोगों को पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं करा पाए। सियासत बड़ी, व्यक्ति छोटा पड़ गया। राज्य सरकार का यह निर्णय स्वागत योग्य है। शायद इसी तरह की योजना शेष राजस्थान के लिए भी बने। एक बात हमारे कृषि अधिकारियों को भी ध्यान में रखने की है।

पानी का अनावश्यक उपयोग किसान नहीं करे, इसके लिए उसे शिक्षित भी किया जाए। मिट्टी जल से पैदा होती है और फसल भी जल से। गंगानगर सेम की समस्या से जूझ रहा है, अपने अहंकार के कारण। क्योंकि वहां पानी और खाद-कीटनाशक का भी रिश्ता है। आज घर-घर में कैंसर हो गया।

कृषि अधिकारी इस सुविधा का लाभ उठाएं, यह भी जरूरी है। आज वे बीमा-खाद-दवा के दलाल बनते जा रहे हैं। किसानों के हितों के विरुद्ध काम करना इनके लिए साधारण बात है। इन्हें मांग के अनुसार जिले की पैदावार को नियोजित करना चाहिए। न अधिक, न बहुत कम। जिन बीजों के नुकसान सामने आ चुके, उन पर और कीटनाशकों पर निषेध/नियंत्रण प्रावधान बनाने चाहिए। केवल पानी अभ्युदय का आधार नहीं हो सकता।

राजस्थान में कुल 690 बांध हैं। कौन कहता है कि जल संकट है। केवल भ्रष्टाचार है। क्या सम्पूर्ण राजस्थान को यह पानी कम है। इसके अलावा बह कितना रहा है! यह तो अफसरों के दिल का दर्द बह रहा है। जैसे अनाज सड़ रहा है।

जो भी हो, एक पुराने अभियान को नए पंख लगे हैं। आने वाली पीढिय़ां भाग्यशाली होंगी।आभारी होंगी सरकार की, कि उनको बीसलपुर के जल पर बहुत ज्यादा निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। बीसलपुर को भी बाहर का जल नहीं पीना पड़ेगा।

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