पुलिस तो आज दो काम करती नजर आ रही है। ऊपर की छत्रछाया को रोके रखना और अपराधियों की गतिविधियों में भागीदारी बनाए रखना। किसी भी अपराध में किसी बड़े अफसर को बर्खास्त होते नहीं सुना। अर्थात इनके हाथों ऐसा कोई अपराध होता ही नहीं। नीचे वालों को निलम्बित कर दो, कल फिर काम पर।
आजकल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार को फिर से लौटा लाने की बात जोर-शोर से कर रहे हैं। करना भी चाहिए। योजनाएं भी अनगिनत चल रहीं है। नावें कितनी भी अच्छी हों, यदि उनमें छेद हो रहे हैं तो पानी तो नाव को ले डूबेगा। कितने ही विधायकों ने कांग्रेस के मुंह पर कालिख पुतवा दी और इनके नित नए अपराध सामने आ रहे है। लेकिन अपनी ही औलाद को कौन बुरा बताता है।
गांधीनगर (जयपुर) थाने में विधायक राजकुमार शर्मा के विरुद्ध मामला चल रहा है। राजधानी के ही चांदी की टकसाल थाने में मंत्री महेश जोशी के खिलाफ मामला लम्बित है। इनके पुत्र के खिलाफ भी मामला तो गंभीर ही था। स्वयं मंत्री शांति धारीवाल के लगेज में जिंदा कारतूस मिले थे। अब कह रहे हैं कि अगले चुनाव में टिकट मेरे बेटे को दे दें।
कोटा के पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल के खिलाफ कोर्ट के आदेश लागू होने के मामले में सरकार मौन है। आज भी उनके अवैध निर्माण ज्यों के त्यों खड़े हैं। कोर्ट और क्या कर सकता है? केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के खिलाफ चितौड़ में भीड़ को बलवा करने के लिए उकसाने का मामला दर्ज है। संजीवनी क्रेडिट कॉआपरेटिव सोसायटी में निवेशकों की रकम हड़पने के मुद्दे की एसओजी जांच कर रही है।
बजाज नगर थाने में विधायक वेदप्रकाश सोलंकी पर जमीन हड़पने का मामला दर्ज है। नीम का थाना में मंत्री राजेन्द्र गुढ़ा एवं साथियों के विरुद्ध अपहरण और मारपीट का मामला लंबित है। बाड़ी थाने में विधायक गिर्राज प्रसाद मलिंगा के खिलाफ सहायक अभियंता से मारपीट का मामला फाइलों में बंद पड़ा है। अभियंता के तो मारपीट में कई फ्रेक्चर हो गए थे। विधायक को खरोंच तक नहीं आई।
नीम का थाना विधायक सुरेश मोदी के विरुद्ध नीम का थाना प्लाट का फर्जी पट्टा बनवाने का मामला है। विधायक प्रतापलाल गमेती के विरुद्ध बलात्कार का मामला लंबित है। सबके सब दूध के धुले हैं! बजरी खनन के मामलों में तो नित्य नए नाम सामने आते हैं। बेगूं विधायक राजेन्द्र सिंह विधूड़ी व पुलिस के संवाद तो जगजाहिर हैं। अपराधियों को बचाने के लिए नेता ही पुलिस को फोन करते हैं। कई विधायक अपने क्षेत्र के व्यापारियों से ही उगाही करते रहते हैं।
अफसरों की ‘शौर्य गाथाओं’ की सूची बहुत लंबी है। काम, सरकार की घोषणाओं से नहीं होते अफसरों के मूड और मर्जी से होते हैं। हाल ही मेरे सामने राजधानी के जगद्गुरु रामनजाचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार एवं प्रोफेसर्स की नियुक्ति का मुद्दा आया। वित्तीय स्वीकृति वर्षों से अटकी पड़ी थी।
मंत्री ने मुख्यमंत्री के सचिव को कहकर देख लिया। मैडम भी टस से मस नहीं हुई। सीधी अंगुली घी नहीं निकलता। अंत में मुख्यमंत्री के दखल से ही आदेश जारी हो पाए। उस अधिकारी ने सिद्ध कर दिया कि विश्वविद्यालय मेरी स्वीकृति के बिना नहीं चलेगा। सरकार की नीयत जाए भाड़ में। अधिकारियों की इस दादागिरी को बनाए रखने के लिए ही शायद कुलपतियों को वित्तीय अधिकार से वंचित कर रखा है।
सरकार के पास समय कम हैं। केवल घोषणाएं और फाइलों के आंकड़े चुनाव में सहायक नहीं होंगे। कार्रवाई तो करनी ही पड़ेगी। अपराधी मंत्रियों- अधिकारियों को समय रहते दण्डित करें। मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि वे राजस्थान को भी उत्तरप्रदेश की तरह अपराधमुक्त करके रहेंगे। मान्यवर! यही वह चप्पू है जो आपकी नैया को पार करेगा।
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