scriptबढ़ती आर्थिक विषमता ने बढ़ाई आम जन की मुश्किल | Growing economic disparity increased difficulty of common men | Patrika News
ओपिनियन

बढ़ती आर्थिक विषमता ने बढ़ाई आम जन की मुश्किल

केंद्र सरकार के सांख्यिकी तथा कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की 2019 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार सीमान्त व छोटे किसान अब कृषि मजदूर बन रहे हैं तथा इस प्रवृत्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। यह एक आश्चर्य की बात है कि इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए सरकार के पास कोई नीति नहीं है।

Feb 16, 2022 / 03:55 pm

Patrika Desk

economic

economic

प्रो. सी.एस. बरला
कृषि अर्थशास्त्री, विश्व बैंक और योजना आयोग से संबद्ध रह चुके हैं
बढ़ती आर्थिक विषमता कई समस्याओं को जन्म दे रही है। इससे आर्थिक मंदी भी पैदा हो जाती है। असल में अधिक लोगों की गरीबी मांग को कमजोर करती है और यदि मांग ही नहीं होगी, तो उत्पादन करने वाला अपना माल किसे बेचेगा और लाभ कहां से कमाएगा। इससे लोगों में असंतोष भी पैदा होता है, जिससे अपराध बढ़ते हैं। यह बात भी समझनी होगी कि गरीबी भी पर्यावरण के विनाश का एक कारण है। गरीबों के पास ईंधन की अपनी जरूरतों के लिए वन सम्पदा ही एकमात्र सहारा होती है। इससे वृक्षों की कटाई होती है। मुश्किल यह है कि सरकारों की नीतियों के कारण विषमता में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

प्राकृतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा आर्थिक घटकों के कारण आर्थिक विषमताएं विश्व के लगभग सभी देशों में व्याप्त हैं। इन विषमताओं के तीन रूप हो सकते हैं: वैयक्तिक, क्षेत्रीय तथा लैंगिक विषमताएं। भारत में इन तीनों ही प्रकार की विषमताओं ने गंभीर रूप ले लिया है। इस विषय पर अन्तरराष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रतिवेदन भी भारत सरकार को प्रस्तुत किए जा चुके हैं, लेकिन विषमता की समस्या पर चोट करने के लिए कोई ठोस नीति अभी तक नहीं बन पाई है।

प्राकृतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा आर्थिक घटकों के कारण आर्थिक विषमताएं विश्व के लगभग सभी देशों में व्याप्त हैं। इन विषमताओं के तीन रूप हो सकते हैं: वैयक्तिक, क्षेत्रीय तथा लैंगिक विषमताएं। भारत में इन तीनों ही प्रकार की विषमताओं ने गंभीर रूप ले लिया है। इस विषय पर अन्तरराष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रतिवेदन भी भारत सरकार को प्रस्तुत किए जा चुके हैं, लेकिन विषमता की समस्या पर चोट करने के लिए कोई ठोस नीति अभी तक नहीं बन पाई है।

यह भी पढ़ें – आपकी बात: राजनीति में बाहुबलियों का दबदबा कम क्यों नहीं हो रहा?


हम पहले भारत में व्याप्त वैयक्तिक विषमताओं की बात करें। कृषि में व्याप्त विषमताएं गंभीर हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां 52 प्रतिशत लोगों की जीविका प्रत्यक्ष रूप से खेती पर निर्भर है। पशु पालन को मिलाकर आज भी कृषि से जुड़े कार्यों में 60 प्रतिशत लोग संलग्न हंै, लेकिन हमारी जीडीपी में इनका योगदान 17-18 प्रतिशत ही है। कृषि से सम्बद्ध जनगणना के अनुसार देश के कृषकों में 86 प्रतिशत लोगों के पास 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है और कुल कृषि भूमि में उनका हिस्सा मात्र ३४ प्रतिशत है। इन किसानों की आय का लगभग एक तिहाई कृषि मजदूरी से प्राप्त होता है। इन सीमांत और छोटे किसानों को कृषि ऋण का एक तिहाई प्राप्त होता है।

यह भी पढ़ें – आपकी बात: कृषि में तकनीक को बढ़ावा देने से क्या बेरोजगारी बढ़ेगी?




कृषि प्रौद्योगिकी में सुधारों से ये वंचित रहते हैं। नाबार्ड द्वारा किए गए अध्ययनों के अनुसार इन किसानों की मासिक आय 2018-19 तक केवल 9,700 रुपए थी। इसके विपरीत मध्यम वर्ग के कृषकों की मासिक प्राय: ३५,००० तथा बड़े किसानों की आय (औसत) 4 लाख रुपए थी। इस प्रकार कृषि भूमि के विषम वितरण के कारण 86 प्रतिशत सीमांत तथा छोटे किसान कुल कृषि आय का केवल 3.1 प्रतिशत प्राप्त कर पाते हैं। इनकी संख्या 12.४ करोड़ है।

केंद्र सरकार के सांख्यिकी तथा कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की 2019 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार सीमान्त व छोटे किसान अब कृषि मजदूर बन रहे हैं तथा इस प्रवृत्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। यह एक आश्चर्य की बात है कि इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए सरकार के पास कोई नीति नहीं है।

फ्रांसीसी अर्थशास्त्रियों का हालिया अध्ययन: हाल ही में लुकिस चांसल, थॉमस पिकेटी, एमानुअल सूज तथा गेब्रियल जूमन की टीम ने भारत में आय और संपत्ति की विषमताओं पर अपनी रिपोर्ट दी है। पहले उनकी आय सम्बन्धी रिपोर्ट को लें। 2021 में भारत में औसत आय का अनुमान 2.04 लाख रुपए का था, लेकिन नीचे वाले 50 प्रतिशत व्यक्तियों की आय का औसत मात्र 53,610 रुपए ही था, जबकि उच्चतम 10 प्रतिशत लोगों की औसत आय 11.66 लाख रुपए थी। आश्चर्यजनक बात यह थी कि उच्चतम १ प्रतिशत लोगों का भारत की कुल आय का 22 प्रतिशत मिल रहा था। इन अर्थशास्त्रियों ने यह स्पष्ट बतलाया कि आय वितरण की विषमता पर उपलब्ध सरकारी आंकड़ों की गुणवत्ता गत कुछ वर्षों में कम हुई है।

इस टीम ने यह भी कहा कि गत कुछ वर्षों में भारत में धन कुबेरों के प्रति बरती जा रही उदारता के कारण अन्य वर्गों की अपेक्षा उच्चतम 1 प्रतिशत लोगों को आय का अधिक भाग मिलने लगा है।

सम्पत्ति वितरण में विषमताएं
अर्थशास्त्रियों की इस टीम ने बतलाया कि भारत में एक व्यक्ति के पास विद्यमान सम्पत्ति का मूल्य 9.८3 लाख रुपए है, लेकिन ४० प्रतिशत निम्नतम लोग इस औसत से काफी दूर हैं। इनके पास मात्र 66 हजार रुपए की सम्पत्ति है। इनकी सम्पत्ति देश की कुल सम्पत्ति का केवल 6 प्रतिशत है। मध्यम वर्ग के पास मौजूद सम्पत्ति का औसत मूल्य 7.23 लाख रुपए है जबकि इनकी संख्या सभी परिवारों में लगभग 50 प्रतिशत है। मध्यम वर्ग के इन 50 प्रतिशत परिवारों का देश की कुल सम्पत्ति में 29.5 प्रतिशत भाग है। एक चौंकाने वाली बात इस अध्ययन हो यह प्राप्त हुई है कि 10 प्रतिशत धनी व्यक्तियों के पास देश की कुल सम्पत्ति का 65 प्रतिशत भाग केंद्रित है, लेकिन १ प्रतिशत धन कुबेरों के पास कुल संपत्ति का 33 प्रतिशत है।

लैंगिक विषमताएं
विश्व के लगभग सभी देशों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की मजदूरी दर कम पाई जाती है, हालांकि भारत में कानूनी तौर पर इस भेदभाव की गलत मानते हैं। विश्व बैंक की हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना काल में महिला श्र्रमिकों का अनुपात भारत में 26.3 प्रतिशत से घटकर 20.3 प्रतिशत रह गया। हालांकि 2021 तक श्रीलंका व बांग्लादेश में यह 33.7 प्रतिशत व 30.5 प्रतिशत था। यह भी बतलाया गया कि भारत में महिला श्रमिकों को पुरुष श्रमिकों की तुलना में 18 प्रतिशत कम मजदूरी मिलती है। इस प्रकार अकुशल महिला – श्रमिकों को न केवल कम अवधि के लिए रोजगार मिलता है, बल्कि उनकी मजदूरी दर भी पुरुष श्रमिकों से कम है।

Hindi News / Prime / Opinion / बढ़ती आर्थिक विषमता ने बढ़ाई आम जन की मुश्किल

ट्रेंडिंग वीडियो