लोक वाद्य संतूर को दिलाया शास्त्रीय संगीत में स्थान
पंडित शिवकुमार शर्मा कोशिश यह करते थे कि कोई उनका ध्यान न बंटाए, क्योंकि कार्यक्रम से पहले वे अपने साज पर पूरा ध्यान देना चाहते थे। उनका समर्पण संगीतकारों को प्रेरित करता रहेगा।
लोक वाद्य संतूर को दिलाया शास्त्रीय संगीत में स्थान
विश्व मोहन भट्ट
ग्रैमी अवार्ड से सम्मानित, मोहन वीणा के लिए प्रसिद्ध
एक बार फिर भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत बहुत उदास है। सबसे बड़े कलाकारों में से एक संतूर के पर्याय पंडित शिव कुमार शर्मा हमारे बीच नहीं रहे। विश्वास ही नहीं हो रहा। उन्होंने लयकारी, सुरकारी, संतूर को नया रास्ता दिखाया। कश्मीर के लोक संगीत से निकालकर उसे शास्त्रीय संगीत जगत में स्थापित कर देना वाकई कमाल की बात है। सौ तारों को कंट्रोल करना कोई आसान काम नहीं होता। उन्होंने दिखाया कि इस काम को कुशलता से कैसे किया जा सकता है।
पंडित शिवकुमार शर्मा से मैं मिलता ही रहता था। मैं यह देखता था कि कार्यक्रम से पूर्व भी वे बड़े शांत और चुपचाप रहते थे। वे अपने साज में डूबे रहते थे। संतूर में सौ तार होते हैं। इतने तारों की ट्यूनिंग का काम बहुत मुश्किल होता है। ऐसे काम के लिए पूरी तरह एकाग्रचित्त मन और शांति जरूरी है। कार्यक्रम शुरू होने से पूर्व भी वे तानपुरा स्टार्ट करके साज मिलाते रहते थे। कोशिश यह करते थे कि कोई उनका ध्यान न बंटाए, क्योंकि कार्यक्रम से पहले वे अपने साज पर पूरा ध्यान देना चाहते थे। उनका समर्पण संगीतकारों को प्रेरित करता रहेगा। हर वर्ष सप्तक फेस्टिवल, अहमदाबाद में उनसे मुलाकात जरूर होती थी। वे वहां कई बार दो-तीन दिन के लिए भी आते थे। एक बार हम वहां बैठे हुए चाय पी रहे थे। वे बोले कि मुझे गुजरात की चाय बहुत अच्छी लगती है। संस्कृति भी उनको पसंद आई, जैसे एक कप उठाना और उसकी आधी चाय प्लेट में डालकर अपने साथी को देना। वे छोटी-छोटी चीजों को बड़े गौर से, गहनता से देखते थे। आसपास की सफाई पर बड़ा ध्यान देते थे। वे संपूर्ण कलाकार थे। उनको एक खास गाड़ी चाहिए होती थी, जिसमें वे बैठते थे। होटल या एयरपोर्ट से लाने-ले जाने के लिए भी वे खास गाड़ी का नाम बताते थे। पंडित शिवकुमार शर्मा ने संतूर साज को जो नया आयाम दिया और जो लयकारी दिखाई, वह काम बहुत ही बिरले कलाकार कर पाते हैं। वे लयकारी में सिद्धहस्त थे। उन्होंने शुरुआत में तबला वादन भी किया था, इसलिए उनको लयकारी का ज्ञान था।
मुझे याद है कि एक बार वे जिस हवाई जहाज से यात्रा कर रहे थे, मैं भी उसी हवाई जहाज से यात्रा कर रहा था। शायद फ्लाइट दिल्ली से न्यूयॉर्क की थी। उनसे बातचीत हुई। उन्होंने बताया कि संतूर में किस-किस तरह की समस्याएं आती हैं। उन्होंने बताया कि सबसे बड़ी मुश्किल तो यह आती है कि उसकी ट्यूनिंग यानी उसके तारों को सही स्वर में कैसे रखा जाए, उसके स्वर कैसे स्थिर रह सकें। पं. हरि प्रसाद चौरसिया के बारे में मजाक में कहने लगे कि उनका काम तो बहुत आसान है। बांसुरी निकाली और शुरू हो जाते हैं। उनको ट्यूनिंग जैसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता, लेकिन अपने साज में तारों को मिलाना, ट्यूनिंग करना भी बड़ा दुष्कर कार्य है। सौ तारों को मिलाना और फिर सुर में होना, बहुत मुश्किल काम होता है। उन्होंने समझाया कि किस तरह धैर्य के साथ उसकी ट्यूनिंग की जाती है। १९९४ में जब मुझे ग्रैमी अवार्ड अमरीका में मिला था, तब मॉन्ट्रियल में मेरी उनसे एक कार्यक्रम में मुलाकात हुई। वहां दोनों के ही कार्यक्रम थे। वहां उन्होंने कार्यक्रम के दौरान ही कहा था कि ‘मुझे विश्व मोहन पर गर्व है।’ उस समय तबले पर जाकिर हुसैन भी थे। मेरे पिताजी की स्मृति में मैं जयपुर में एक कार्यक्रम करवाता हूं – मनमोहन भट्ट स्मृति समारोह। इस कार्यक्रम के लिए जब उनसे आग्रह किया तो वे बोले कि तुम्हारे लिए मैं जरूर आऊंगा। बिना किसी शर्त के वे आए। उनकी सहजता देखिए और संगीत के प्रति उनका प्रेम देखिए। मुझे याद है जब उन्होंने एक बार कहा था कि विश्व मोहन ने मोहन वीणा को पूरे विश्व में पहुंचा दिया। मेरे बड़े भाई दिवंगत शशि मोहन भट्ट सितार के कलाकार थे। पंडित शिव कुमार शर्मा ने एक बार उनके साथ ऑल इंडिया रेडियो जम्मू के कार्यक्रम में तबले पर संगत की थी।
पंडित शिवकुमार शर्मा ने अपने पिता से संतूर की तालीम ली थी। इस साज का प्रयोग कश्मीर में सूफी संगीत में होता था। पंडित शिव कुमार इसे शास्त्रीय संगीत में लेकर आए। बहुत कम लोगों को पता होगा कि वे नियमित रूप से एक घंटे तक योग भी करते थे। ए.आर. रहमान के जन-गण-मन की रेकॉर्डिंग के लिए हम सब कलाकारों को लेह-लद्दाख में इकट्ठा किया गया था। मैंने देखा कि वे सुबह नहाने के बाद एक घंटा योग आसन करते थे। उनकी फिटनेस का यही राज था।
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