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ओपिनियन

क्या हो 6जी युद्ध के लिए भारत की रणनीति

साइबर सुरक्षा सबसे जरूरी है। इसके अभाव में सारी तैयारियां धरी रह जाएंगी। इसलिए साइबर सुरक्षा के लिए व्यापक रणनीति विकसित करना जरूरी है। इसमें साइबर सुरक्षा को मजबूत करने के साथ ही साइबर सुरक्षा जागरूकता संस्कृति को बढ़ावा देना भी शामिल है। असल में 6जी युद्ध सैन्य प्रौद्योगिकी में बदलाव का बड़ा मोड़ है, जो अप्रत्याशित क्षमताएं और रणनीतिक लाभ सुलभ कराता है।

जयपुरOct 15, 2024 / 07:49 pm

Gyan Chand Patni

सुधाकर जी
रक्षा विशेषज्ञ, भारतीय सेना में मेजर जनरल रह चुके हैं

सात अक्टूबर, 2023 को हमास का हमला और तदन्तर इजरायल की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी मोसाद (इंस्टीट्यूट फॉर इंटेलिजेंस एंड स्पेशल ऑपरेशंस) द्वारा हिजबुल्लाह के खिलाफ 17 व 18 सितम्बर 2024 को पेजर और वॉकी-टॉकी से हमलों से जंग का एक नया बेमिसाल पहलू दिखा है। असल में यह 6जी युद्ध (छठी पीढ़ी की युद्ध सैन्य रणनीति जिसमें हमले के लिए एयरोस्पेस और सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करना शामिल है) की अवधारणाओं के रूप में प्रकट हुआ है। ऐसे में विकसित होती सैन्य प्रौद्योगिकियां और उसका कार्यान्वयन 21वीं सदी में युद्ध के परिदृश्य में नई चुनौतियां पैदा कर रहा है, जबकि 5जी तकनीक ने (पांचवीं पीढ़ी का युद्ध) ने पहले से ही सैन्य अभियानों में आमूल परिवर्तन लाना शुरू कर दिया है। इस परिदृश्य में क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा चिन्ताओं से घिरे भारत के लिए 6जी युद्ध की तैयारी करना महत्त्वपूर्ण हो गया है।
बड़ा सवाल है कि 6जी युद्ध है क्या? 6जी युद्ध क्षेत्र की नई सीमा है जिसमें उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकियों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है जो 5जी की क्षमताओं से काफी आगे है। इसमें अल्ट्रा-हाई-स्पीड कम्युनिकेशन नेटवर्क, उन्नत कनेक्टिविटी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ), क्वांटम कंप्यूटिंग, एडवासंस्ड रोबोटिक्स और परिष्कृत साइबर क्षमताएं निहित हैं। 6जी युद्ध की खासियत के बारे में बात करें तो 6जी जंग के प्राथमिक समीकरण कई विशेषताओं से युक्त हैं। अपूर्व गति और कनेक्टिविटी- 6जी नेटवर्क से 100 गुना ज्यादा तेजगति से डेटा ट्रांसफर संभव-5जी की तुलना में, लम्बी दूरियों तक रियल-टाइम कम्युनिकेशन और निर्णय लेने में समर्थ होना। एआइ और मशीन लर्निंग इंटीग्रेशन का यहां काफी महत्त्व है। इससे मानव हस्तक्षेप के बिना तेजी से डेटा विश्लेषण, अपनी प्रोग्रामिंग के आधार पर निर्णय लेने और परिचालन निष्पादन की अनुमति जैसे काम हो सकते हैं। क्वांटम कंप्यूटिंग से एन्क्रिप्शन और डिक्रिप्शन प्रक्रियाओं में आमूल बदलाव होता है। इससे संचार नेटवर्क को अधिक सुरक्षित और साइबर युद्ध की क्षमताओं को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
यह जानना जरूरी है कि 6जी प्रौद्योगिकी एडवांस्ड रोबोटिक्स सिस्टम्स और ऑटोनॉमस व्हीकल्स को तैनाती में सक्षम बनाएगी। इससे ऑपरेशनल क्षमता बढ़ेगी और संघर्ष में जनहानि कम होगी। महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और संचार नेटवर्क की सुरक्षा पर जोर देते हुए साइबर युद्ध में अधिक परिष्कृत आक्रामक और रक्षात्मक क्षमता विकसित करने पर ध्यान दिया जाएगा। 6जी से भारत को जो रणनीतिक लाभ होंगे, वे कई तरह के हैं। कनेक्टिविटी को बेहतर बनाकर और रियल-टाइम डेटा के साझाकरण से सेना की विभिन्न शाखाओं के बीच आसपास की गतिविधियों के बारे में जागरूकता, कमान और नियंत्रण एवं समन्वय में सुधार होगा। सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण जरूरी है। 6जी प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने से भारत के सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण प्रयासों को बढ़ावा मिलेगा। इसमें मौजूदा प्लेटफाम्र्स को अपग्रेड करना, नए हथियार सिस्टम विकसित करना और लॉजिस्टिक समर्थन तथा रखरखाव में सुधार शामिल है। उन्नत साइबर सुरक्षा-साइबर खतरों के तेजी से बढऩे के बीच 6जी प्रौद्योगिकी साइबर हमलों के खिलाफ बेहतर रक्षात्मक उपकरण सुलभ कराएगी। विशेषकर क्वांटम कम्प्यूटिंग कम्युनिकेशन चैनल्स की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए एन्क्रिप्शन तरीकों को मजबूत करेगा। 6जी तकनीक में निवेश से भारत के स्वदेशी रक्षा उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। रक्षा अनुसंधान संगठनों, शिक्षा जगत और निजी कंपनियों के बीच सहयोग से नवाचार और तकनीकी प्रगति को बढ़ावा मिलेगा। अब यह प्रश्न खड़ा होता है कि 6जी युद्ध की रणनीति क्या हो? 6जी युद्ध के लिए भारत की रणनीति लघु, मध्यम और दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य पर आधारित हो सकती है।
6जी तकनीक के लिए जरूरी बुनियादी ढांचा विकसित करना एक महत्वपूर्ण चुनौती है। इसमें नए कम्युनिकेशन नेटवर्क, डेटा सेंटर्स का निर्माण और रिसर्च सुविधाओं का बढ़ाना शामिल है। इन सभी में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता है। एक अत्यधिक कुशल कार्यबल का होना आवश्यक है जो 6जी प्रौद्योगिकी क्षमता का दोहन कर सके। एआइ, क्वांटम कम्प्यूटिंग, साइबर सिक्योरिटी और अन्य प्रासंगिक क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करने की भारत को जरूरत है। साथ ही 6जी प्रौद्योगिकियों के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए एक मजबूत नियामक और नीतिगत ढांचा बनाया जाना महत्त्वपूर्ण है। इसमें डेटा प्राइवेसी, साइबर सिक्योरिटी समेत अन्य मुद्दों को सम्बोधित करना जरूरी है। वैश्विक सहयोग और प्रतिस्पर्धा के पक्ष की अनदेखी नहीं की जा सकती। 6जी प्रौद्योगिकी के वैश्विक परिदृश्य को नेविगेट करने में सहयोग और प्रतिस्पर्धा दोनों शामिल हैं।
भारत को अंतरराष्ट्रीय सहयोग हासिल करने के प्रयासों पर ध्यान देना चाहिए। इस पक्ष की अनदेखी नहीं की जा सकती। साथ ही अपने रणनीतिक हितों की रक्षा और तकनीकी संप्रभुता भी बनाए रखनी होगी। अनुसंधान और विकास में रणनीतिक उपाय की अवहेलना किसी भी कीमत पर नहीं की जा सकती। भारत को अनुसंधान और विकास में निवेश को प्राथमिकता देना चाहिए। सरकारी फंडिंग के साथ निजी क्षेत्र की भागीदारी से नवाचार को बढ़ावा दिया जा सकता है, जिससे 6जी प्रौद्योगिकियों के विकास में तेजी आ सकेगी। सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने से सरकार और निजी उद्यमों के बीच प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता के आदान-प्रदान में आसानी होगी। मजबूत 6जी इकोसिस्टम के निर्माण की दिशा में यह सहयोग महत्वपूर्ण है। तकनीक के मामले में उन्नत देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय सहयोग में शामिल होने से अत्याधुनिक अनुसंधान तक पहुंच में मदद मिलेगी। इससे 6जी क्षेत्र में भारत की वैश्विक स्थिति में भी इजाफा होगा। साइबर सुरक्षा सबसे जरूरी है। इसके अभाव में सारी तैयारियां धरी रह जाएंगी। इसलिए साइबर सुरक्षा के लिए व्यापक रणनीति विकसित करना जरूरी है। इसमें साइबर सुरक्षा को मजबूत करने के साथ ही साइबर सुरक्षा जागरूकता संस्कृति को बढ़ावा देना भी शामिल है। असल में 6जी युद्ध सैन्य प्रौद्योगिकी में बदलाव का बड़ा मोड़ है, जो अप्रत्याशित क्षमताएं और रणनीतिक लाभ सुलभ कराता है।
भारत के लिए, इस नए युग में आवश्यक ढांचा विकसित करने, शोध और विकास में निवेश, अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने पर ठोस ध्यान देने की जरूरत है। 6जी प्रौद्योगिकी को अपनाकर और इससे जुड़ी चुनौतियों का समाधान कर भारत अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा सकता है, राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है और वैश्विक तकनीकी परिदृश्य में प्रमुख खिलाड़ी के रूप में अपना दावा कर सकता है।

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