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शोर-शराबे की जीवनशैली छीन रही है आपकी श्रवण क्षमता

श्रवण हानि के साथ जी रहे लोगों के लिए समय पर पहचान और समय पर पुनर्वास आवश्यक है ताकि वे समाज की मुख्यधारा में बने रहें। भविष्य में हमारी श्रवण क्षमता कैसी रहेगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम आज अपने कानों की देखभाल कैसे करते हैं। सुरक्षित सुनने और अच्छी श्रवण देखभाल से श्रवण हानि के कई मामलों से बचा जा सकता है। इसलिए अच्छा श्रवण स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए आज से ही कदम उठाएं।

जयपुरOct 15, 2024 / 07:59 pm

Gyan Chand Patni

डॉ. शुभकाम आर्य
वरिष्ठ ईएनटी विशेषज्ञ
सुनने की क्षमता में कमी के बढ़ते आंकड़े आज चिंताजनक स्थिति में आ चुके है। अब यह एक मुद्दा गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में उभर रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार लगभग 150 करोड़ से ज्यादा लोग कम सुनने की समस्या से पीडि़त हैं। अनुमान है कि 2050 तक दुनिया भर के लगभग 250 करोड़ लोग सुनने में कमी की समस्या से पीडि़त होंगे। कम से कम 70 करोड़ लोगों को श्रवण पुनर्वास की आवश्यकता होगी। इन दिनों बहरेपन की बढ़ती समस्या की मूल वजह में शोर-शराबे वाली जीवनशैली शामिल है।
ध्वनि प्रदूषण पूरे विश्व में सुनने की क्षमता के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन चुका है। मोबाइल, नाइट क्लब व म्यूजिक सिस्टम का तेज शोर लाखों युवाओं की सुनने की क्षमता क्षीण कर रहा है। इस चुनौती के खिलाफ लड़ाई में रोकथाम व बचाव के रूप में प्रिवेंटिव चिकित्सा रणनीति ही कारगर साबित हो सकती है। साथ ही सुनने में हो चुके नुकसान का जल्द पता लगाना की भी आवश्यकता है ताकि समय रहते सावचेत हो सकें और जरूरी होने पर श्रवण पुनर्वास किया जा सके। सुनने में धीरे-धीरे होने वाली कमी की तरफ अक्सर शुरुआत में ध्यान नहीं दिया जाता। स्थिति और खराब होने तक बहुत देर हो चुकी होती है। यदि ये सब ऐसे ही आगे चलता रहा और समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में श्रवण शक्ति में कमी के घातक दुष्प्रभाव भुगतने पड़ सकते हंै।
लंबे समय तक श्रवण हानि से व्यक्तिगत स्तर के साथ सामाजिक व आर्थिक पहलुओं पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। सुनने में कमी के चलते लोगों की संवाद करने और अध्ययन करने की क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ता है। श्रवण हानि से पीडि़त लगभग 80 फीसदी लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं। भारत जैसे विकासशील देशों में बहरेपन के शिकार वयस्कों को जीविकोपार्जन के लिए जूझना पड़ता है। उत्पादकता में कमी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचती है। डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि बिना समाधान के श्रवण हानि की वार्षिक वैश्विक लागत 980 अरब रुपए है। इसमें स्वास्थ्य क्षेत्र की लागत के अलावा शैक्षिक सहायता, उत्पादकता की हानि और सामाजिक लागत शामिल है। बच्चों में बहरेपन का देरी से पता चलने का एक कारण अशिक्षा व जागरूकता की कमी हो सकती है। बच्चों में, लगभग 60 प्रतिशत मामलों में श्रवण हानि ऐसे कारणों से होती है, जिन्हें सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों के कार्यान्वयन के माध्यम से रोका जा सकता है। श्रवण हानि का समय पर पता लगाना इसके प्रभावी इलाज के लिए महत्त्वपूर्ण है। खासकर उन लोगों को जिन्हें श्रवण हानि का अधिक जोखिम है। जैसे जो अक्सर तेज आवाज में संगीत सुनते हैं, शोरगुल वाली जगहों पर काम करते हैं। कुछ ऐसी दवाइयों का उपयोग करते हैं, जो श्रवण शक्ति को नुकसान पहुंचाती है या जिनकी उम्र 60 वर्ष से अधिक है। ऐसे लोगों को समय-समय पर अपनी श्रवण क्षमता की जांच करानी चाहिए।
श्रवण हानि के साथ जी रहे लोगों के लिए समय पर पहचान और समय पर पुनर्वास आवश्यक है ताकि वे समाज की मुख्यधारा में बने रहें। भविष्य में हमारी श्रवण क्षमता कैसी रहेगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम आज अपने कानों की देखभाल कैसे करते हैं। सुरक्षित सुनने और अच्छी श्रवण देखभाल से श्रवण हानि के कई मामलों से बचा जा सकता है। इसलिए अच्छा श्रवण स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए आज से ही कदम उठाएं।

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