नवनीत शर्मा हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय में अध्यापनरत ……………………………………………………………… ‘सभी जन एक हैं…’ दूरदर्शन के समय में जब दुनिया बड़ी और दूर लगती थी तब यह बालगीत का मुखड़ा सभी की जुबान पर हुआ करता था। जब से विज्ञान और तकनीक ने मनुष्य और सूचना के आवागमन की रफ्तार बढ़ा दी, तब से यह दुनिया और विभक्त और द्वेषपूर्ण नजर आने लगी और इसी के मद्देनजर सन् 2005 में संयुक्त राष्ट्र ने कुछ उद्घोषणाओं और संकल्पनाओं के साथ प्रत्येक वर्ष 20 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानव एकता दिवस मनाने के रूप में चिह्नित किया। इस घोषणा के बाद दुनिया में अनेक नए युद्ध शुरू हुए, अनेक नए विवाद उत्पन्न हुए, अनेक पुराने विवाद गहरे हुए और अनेक देश लोकतंत्र एवं भूख के सूचकांक पर कई पायदान फिसले। इन सब ‘अनेक’ के बीच मानव एकता का विमर्श समता और समानता के मध्य तैरता रहा और साथ ही ‘सॉलिडेरिटी’ के लिए उपयुक्त हिंदी अनुवाद भी किसी ऐक्य/समैक्य या एकजुटता तक नहीं पहुंच पाया।
वस्तुत: बहुत सारे लोकतांत्रिक देशों ने अपने संविधान में सभी नागरिकों को ‘समान’ घोषित तो कर दिया परंतु संसाधनों के समतामूलक बंटवारे के अभाव में यह मात्र घोषणा बन कर ही रह गया। हर एक दिन के बीतने के साथ दुनिया में विभाजन, अनुक्रम, वर्चस्व और अस्तित्व की लड़ाई गहराती जा रही है। रंग-रूप, वेश, भाषा, धर्म, जाति, नस्ल, लिंग, यौनिकता, वर्ग और तमाम अन्य अस्तित्व और आस्था के कारक जिस अवधारणा के मूल में हैं, वही ‘अनेकता में एकता’ की अवधारणा और नारा मात्र स्कूली किताबों और स्कूली दीवारों की शोभा बन कर रह गया है।
इस दुनिया में फिलहाल अंतरराष्ट्रीय हथियारों की खरीद-फरोख्त का व्यापार 592 करोड़ डॉलर का है, यह व्यापार प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। जाहिर है कि ये हथियारों का बाजार किसी भी मानव एकजुटता को पनपने नहीं देगा। पिछले वर्ष की तुलना में ही इस वर्ष इस व्यापार में दो प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। इनसे इतर एटम बमों के खिलाफ तमाम मुहिम के बावजूद सभी देश एटमी देश का खिताब पाने को आतुर हैं और वर्तमान साढ़े बारह हजार से अधिक नाभिकीय अस्त्र किसी भी एकजुटता की निकटतम संभावना को धूमिल करते हैं।
इस राष्ट्र-राज्य समर्थित हिंसा के अलावा आपसी रंजिश, संपत्ति और यौन संबंधों में विवाद के कारण दुनिया भर में वर्ष 2021 में पांच लाख लोगों की ‘हत्या’ हुई। अभी इस हिंसा के आंकड़े में गंभीर रूप से घायल अथवा बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के आंकड़े शामिल नहीं हैं और इनमें नस्लीय और नफरत से पनपने वाले अपराध की संख्या भी शामिल नहीं है। इन सबको जोड़ कर प्रत्येक वर्ष ‘अपराध’ के एक करोड़ मामले दर्ज किए जाते हैं। जिस दुनिया में दस प्रतिशत आबादी प्रतिदिन भूखी सोती हो, 83 करोड़ लोग भुखमरी का शिकार हों, पूरी दुनिया की संपत्ति का 52 प्रतिशत मात्र एक करोड़ लोगों के नियंत्रण में हो, और दुनिया के शीर्ष दस अरबपतियों की आय जोड़ दी जाए तो दुनिया के अधिकतर देशों के कुल सकल घरेलू उत्पाद से अधिक ठहरे, ऐसी भीषण रूप से विभाजित दुनिया में मानव एकता का एक दिन नहीं, बल्कि प्रत्येक दिन घोषित करने से भी शायद ही यथास्थिति में कोई परिवर्तन हो।
अंतरराष्ट्रीय मानव एकता दिवस ‘भिन्नता में एकता’ का उत्सव है। साथ ही यह राष्ट्र-राज्यों को उनके अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर हस्ताक्षरी होने और कत्र्तव्य बोध के लिए चेताने का दिन है। एकजुटता के लिए सार्वजनिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता, गरीबी और शोषण के उन्मूलन के लिए भी सबके साथ के आह्वान का दिन है। यह भी जानने, समझने और मनाने का दिन है कि बिना मानव एकता के मानव समुदाय का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा और शायद पृथ्वी के लिए भी। यह समझने के लिए हमें हॉलीवुड सरीखे किसी चलचित्र से पृथ्वी पर परग्रहवासियों के आक्रमण का इंतजार नहीं करना है, बल्कि काले-गोरे, स्त्री-पुरुष, स्वर्ण-दलित, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक, अमीर-गरीब, सधर्मी-विधर्मी और तमाम अन्य विवादों को सुलटाने की जरूरत है। यह सब तलवार और ताकत की अपेक्षा संवाद, आपसी सहमति और सदाशयता से ही संभव है।
दुनिया के तमाम विवादों की जड़ों में यह भी सर्वमान्य है कि मनुष्य स्वयं से असंतुष्ट और असहमत है, इसलिए वैश्विक एकजुटता के महापर्व को मनाने के लिए हमें स्वयं से भी एका स्थापित करने की जरूरत है। इसके लिए किसी बुद्ध, गांधी, मंडेला और मार्टिन लूथर के होने की प्रतीक्षा नहीं करनी है, लेकिन बालगीत की यह पंक्ति जरूर गुनगुनानी है – बेला, गुलाब, जूही, चंपा, चमेली, फूल हैं अनेक किंतु माला फिर एक है… सभी जन एक हैं।