राजस्थान का ही उदहारण लें तो यहाँ पशुपालन एक जीवन शैली है, राजस्थान के बड़े शुष्क व अर्धशुष्क भू भाग में महत्वपूर्ण सहायक उद्योग है व राजस्थान की अर्थव्यवस्था व रोजगार में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पशुधन का सर्वांगीण विकास व विस्तार एक अनिवार्यता है। पशुधन का विकास कृषि की सर्वांगीण प्रगति का आवश्यक अंग है। कृषि पशुपालन के साथ सामंजस्य अत्यन्त आवश्यक है। पश्चिमी शुष्क क्षेत्रों में कृषकों का स्वास्थ्य, आर्थिक जीवन, पशुओं की संख्या व किस्म पर निर्भर करता है। पश्चिमी क्षेत्र में जीविका का मुख्य साधन है यद्यपि अकाल व प्राकृतिक विपदाओं में प्रतिकूल असर पड़ता है। रोजगार, परिवहन, अकाल, कृषि कार्य, चमड़ा व खाल, पोष्टिक पदार्थाें की उपलब्धता में पशुपालन की महत्वपूर्ण भूमिका है।
न केवल राजस्थान बल्कि समूचे देश में विकासशील अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए पशुधन को रोजगार एवं दुग्ध उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। ऐसे में विभिन्न योजनाओं से रोजगार वृद्धि के लिए पशु सम्पदा को विकास व डेयरी व्यवसाय को उच्च प्राथमिकता प्रदान की चाहिए। नहरी इलाकों में तो भेड़पालन ऊन व्यवसाय का माध्यम है।
डेयरी उद्योग निजी, सहकारी, सार्वजनिक तीनों क्षेत्र में है। असंगठित क्षेत्र की इकाईयों व सहकारी क्षेत्र का उल्लेखनीय योगदान है। पशुओं के लिए क्रय-विक्रय बाजार का अभाव, अशिक्षा, चरागाह की कमी, पूंजी का अभाव, उत्तम चारे का अभाव, संतुलित आहार व खनिज तत्व की कमी, रोग विरोधी टीके व उपचार की कमी के कारण कठिनाईयां उत्पन्न होती है। दुधारू पशुओं में कम दूध की मात्रा, अनुपयोगी पशुओं की बड़ी संख्या, पशु रखने की मजबूरी अच्छी नस्ल व चारे का अभाव, देशी नस्ल सुधार का दोषपूर्ण अभिजनन, अस्वास्थकर स्थान, समय पर सुलभ उचित इलाज का अभाव है। वैज्ञानिक व कृत्रिम गर्भाधान, नियमित प्रजनन, संतुलित पशु आहार, संक्रमण रोगों से बचाव, विपणन में सुधार तथा पशुपालकों को शिक्षा प्रसारण की कमी है।
बेकार पशुओं की देशी नस्ल अनार्थिक गाय, भैसों की बहुतायत, दोषपूर्ण अभिजनन अनार्थिक अस्वास्थकर स्थान, उचित इलाज नहीं होना किसान की निर्धनता, सरकारी विभागों की उपेक्षा व उदासीनता प्रमुख कमियां हैं। गाय, भैसों की बहुतायत, अपर्याप्त पोषाहार, पशु स्वास्थ्य व वैज्ञानिक प्रबन्ध के अभाव के कारण सरकारी कार्यक्रम का पूरा लाभ नहीं मिलता। संघन मवैशी कार्यक्रम व परियोजनाएं, गौशाला विकास, चारा पोषाहार विकास योजनायें, संघन व समन्वित ग्रामीण विकास की सफल क्रियान्विति से इस व्यससाय को प्रोत्साहन दिया जा सकता है।
गौशाला विकास, पशुरोग सर्वेक्षण व रोग निदान, पशुआहार व विपणन लम्बे समय सुरक्षित रखने हेतु भंडारण, प्रसंस्करण, परिवहन, पैकिंग में सुधार आदि कदमों से पशुपालन को अधिक लाभप्रद बनाया जा सकता है। बडे़ नदी बेसिन चम्बल, इन्द्रागांधी नहर, उदयपुर, बनास के तालाबों आदि में बडे़ पैमाने पर मत्सय उत्पादन होता रहा है जिन्हें सुचारू प्रबन्धन व उत्तम मत्सय बीज से बढाया जा सकता है व आय के साथ रोजगार प्रदान किया जा सकता है।