मलक्का जलडमरूमध्य पर दुविधा में चीन
चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति हू जिन्ताओ ने पहली बार 2003 में मल्लका जलसंधि को ‘मलक्का दुविधा’ के रूप में वर्णित किया था। चीन को भय है कि कुछ शक्तियां-जैसे अमरीका इस तंग, लेकिन महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग को अवरुद्ध करने के लिए अपने प्रभुत्व का इस्तेमाल कर सकती हंै। चीन मध्यपूर्व से तेल, अफ्रीका, लेटिन अमरीका, मध्य एशिया और रूस से अधिक ऊर्जा के लिए इसी मार्ग पर निर्भर है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि चीन अगले तीस-चालीस वर्षों तक तेल और गैस के लिए मध्यपूर्व पर अत्यधिक निर्भर रहेगा।
मलक्का जलडमरूमध्य पर दुविधा में चीन
सुधाकरजी
रक्षा विशेषज्ञ, भारतीय सेना में मेजर जनरल रह चुके हैं हिन्द महासागर पृथ्वी का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है। पृथ्वी की सतह पर मौजूद पानी का लगभग 20 फीसदी भाग इसमें समाहित है। हिन्द महासागर क्षेत्र (आइओआर) में नौ बड़े रणनीतिक मार्ग हैं, जहां से दूसरे समुद्री क्षेत्र में जाने के लिए मार्ग मिलता है। आइओआर अटलांटिक और प्रशान्त महासागर को भी जोड़ता है। वैश्विक समुद्री व्यापार में हिन्द महासागर का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सभी समुद्री जहाजों को यहीं से पारगमन करना होता है। सबसे प्रमुख समुद्री चौकियों में फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से जोडऩे वाला होर्मुज रास्ता, लाल सागर को अदन की खाड़ी से जोडऩे वाला बाब-अल-मंडेब रास्ता और मलक्का जलडमरूमध्य है, जो हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ता है। मलक्का जलसंधि की लम्बाई 930 किलोमीटर है, जो उत्तर में मलेशिया और दक्षिण में इंडोनेशियाई द्वीप को जोड़ती है। यहां पानी अधिक गहरा नहीं है। इसकी बनावट शीर्ष पर चौड़ी और नीचे की ओर संकीर्ण है। दक्षिण में इसकी चौड़ाई केवल 65 किलोमीटर है, जबकि उत्तर की ओर 250 किलोमीटर तक फैली है। दुनिया को जोडऩे वाले सबसे महत्त्वपूर्ण शिपिंग रास्तों में से यह एक है।
मलक्का जलसंधि मार्ग ऐतिहासिक ‘मैरीटाइम सिल्क रूट ‘ का खंड है, जो दक्षिण पूर्व एशिया, चीन, भारतीय उपमहाद्वीप, अरब प्रायद्वीप, सोमालिया, मिस्र और मध्य यूरोप और उत्तरी सागर को जोड़ता है। हर वर्ष 94 हजार से ज्यादा पोत, जिसमें 60 हजार जहाज भी शामिल हैं, इसी रास्ते से गुजरते हैं। वैश्विक व्यापार का 60 फीसदी व्यापार इसी क्षेत्र से होता है। समुद्री व्यापारिक मार्ग होर्मुज जलसंधि से लेकर मलक्का जलडमरूमध्य तक की लम्बाई 5,325 किमी से ज्यादा है। समुद्र में लूटपाट और पायरेसी की घटनाएं लगातार खतरनाक रूप लेती जा रही हैं। मलक्का जलडमरूमध्य दुनिया के सबसे तंग समुद्री रास्तों में एक है। चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति हू जिन्ताओ ने पहली बार 2003 में मल्लका जलसंधि को ‘मलक्का दुविधा’ के रूप में वर्णित किया था। चीन को भय है कि कुछ शक्तियां-जैसे अमरीका इस तंग, लेकिन महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग को अवरुद्ध करने के लिए अपने प्रभुत्व का इस्तेमाल कर सकती हंै। चीन मध्यपूर्व से तेल, अफ्रीका, लेटिन अमरीका, मध्य एशिया और रूस से अधिक ऊर्जा के लिए इसी मार्ग पर निर्भर है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि चीन अगले तीस-चालीस वर्षों तक तेल और गैस के लिए मध्यपूर्व पर अत्यधिक निर्भर रहेगा।
चीन ने मलक्का दुविधा को दूर करने के लिए हिन्द महासागर में अपना वर्चस्व बनाना शुरू कर दिया है। इसकी एक अभिव्यक्ति ‘स्ट्रिंग ऑफ पल्र्स रणनीति के रूप में हुई है। हर पर्ल यानी चीन की नौसेना किसी न किसी तरह से क्षेत्र में स्थायी तौर पर मौजूद है। म्यांमार से लेकर बांग्लादेश में चटगांव, श्रीलंका में हंबनटोटा, पाकिस्तान के ग्वादर और जिवानी बंदरगाह, अदन की खाड़ी में जिबूती तक चीन ने अपने सैन्य अड्डे बना लिए हैं।
भारत ने हिन्द महासागर में पाकिस्तान और चीन की नापाक गतिविधियों का मुकाबला करने और ‘स्ट्रिंग ऑफ पल्र्स ‘ रणनीति का जवाब देने के लिए ‘इंडियन नेकलेस ऑफ डायमंड ‘ रणनीति अपनाई है। चीन मलक्का जलसंधि की दुविधा से निकलने के लिए वैकल्पिक समुद्री रास्ते की तलाश में है। इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप और जावा द्वीप के बीच की सुंडा जलसंधि, लोम्बोक और मकस्सर जलडमरूमध्य उसके लिए नाकाफी साबित हुए हैं। यह लम्बा समुद्री मार्ग है। यदि चीन के जहाज लंबा रास्ता चुनते हैं, तो चीन को एक वर्ष में 220 अरब डॉलर तक का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है। इसके अलावा, चीन के लगभग 80-90 फीसदी पेट्रोलियम उत्पाद मध्यपूर्व से आयात किए जाते हैं। चीन के पास केवल 55-60 दिनों के लिए रिजर्व में पेट्रो उत्पाद हंै। ऐसे में वह 60 दिनों से अधिक समय तक तेज सैन्य संघर्ष को सहन नहीं कर सकता है। रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के लम्बा खिंचने और इसमें अमरीका एवं पश्चिम के चीन के विरोध में खड़ा होने से तेल आपूर्ति में रुकावट की आशंका के मद्देनजर चीन विकल्प की तलाश कर रहा है। वास्तव में चीन की बेल्ट रोड इनिशिएटिव इसी रणनीति का हिस्सा है। चीन-म्यांमार इकोनॉमिक कॉरिडोर और चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर उसकी ‘स्ट्रिंग ऑफ पल्र्सÓ नीति का हिस्सा हैं। चीन सीपीइसी परियोजना पर गंभीर है, लेकिन एक सवाल हमेशा ही चिन्ता उत्पन्न करता है कि इसके प्रस्तावित मार्ग कराकोरम इलाके में हमेशा ही भू-स्खलन, भूकम्प आते रहते हैं। यह कह देना बहुत आसान है कि ऊंची पहाडिय़ों पर से तेल का परिवहन किया जा सकता है। क्या ऐसी ऊंचाई पर रेलवे या पाइप लाइन के जरिए तेल का परिवहन सम्भव है, जहां हमेशा ही मौसम की चुनौतियां रहती हैं। चीन ने थाईलैंड में 120 किमी लम्बे क्रा कैनाल प्रोजेक्ट के निर्माण पर रुचि दिखाई है। बीजिंग को इससे ‘मलक्का दुविधा ‘ से निपटने में मदद मिलेगी, क्योंकि इससे उसकी सीधी पहुंच हिन्द महासागर तक हो जाएगी। थाईलैंड का दावा है कि भारत, अमरीका और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने इस प्रस्तावित नहर के निर्माण में रुचि दिखाई है। तेल और गैस पर अंतरराष्ट्रीय निर्भरता में वृद्धि, साथ ही इन संसाधनों के लिए चीन की बढ़ती भूख ने ईंधन पर प्रतिस्पर्धा को तेज किया है। भारत को कोई अवसर नहीं चूकना चाहिए, जहां वह बुरी तरह से आहत हो रहा हो।
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